लेखक: शशिकांत श्रीवास्तव
(प्रोफेसर शशिकांत अंग्रेज़ी के प्राध्यापक, उर्दू साहित्य के ज्ञाता, कॉलेज प्रिंसीपल और क्रिकेट खिलाड़ी व चयनकर्ता होने के साथ-साथ हरियाणा क्रिकेट एसोसिएशन में महत्वपूर्ण पदों पर रहे हैं।)
बाएं हाथ के स्पिनर, राजेन्द्र गोयल एक महान गेंदबाज थे। 27 साल के लंबे अरसे तक वह भारत में होने वाले फ़र्स्ट क्लास मैचों में छाए रहे।कुल मिलाकर फ़र्स्ट क्लास क्रिकेट में 750 विकेट्स का रिकॉर्ड उनके नाम है। दूसरे नम्बर के गेन्दबाज़ इस रिकॉर्ड के आस पास भी नहीं हैं। गोयल साहब को बस भारतीय टीम के लिए नहीं चुना गया, बाकी सभी सम्मान (including life-time achievement award by BCCI )इन्हें मिलते रहे। क्रिकेट जगत के सभी दिग्गज खिलाड़ियों और जानकारों ने इनकी गेन्दबाज़ी की विशेषताओं, इनकी उपलब्धियों और इनके बारे में भी बहुत कहा और लिखा है, जिसे मैं दोहराना नहीं चाहता।
मेरे गोयल साहब के साथ दोस्ताना सम्बन्ध थे। वे मेरे हम उम्र थे। मैं रोहतक के किला रोड पर और वे रेलवे रोड और रहते थे। सन 1956 में हमारे मोहल्ले की क्रिकेट टीम ने रेलवे रोड की टीम से मैच रख लिया। अब, क्योंकि अपनी गली में एक बैट्समैन और कीपर के तौर पर मेरी धाक थी, इसलिए हमारा कप्तान मुझे बुलाने आया। मैंने कुछ उल्टा सीधा कहकर उसे टाल दिया। असली बात यह थी कि मुझे पता था कि उधर से गोयल साहब खेलेंगे। यानी, सन 55-56 से ही बाएं हाथ के एक ज़बरदस्त उभरते हुए खिलाड़ी के रूप में उनकी छवि बन चुकी थी। ख़ैर उस दिन तो मैं बच गया लेकिन 61-62 में नहीं बच सका। गोयल पंजाब यूनिवर्सिटी और मैं कुरुक्षेत्र यूनिवर्सिटी की ओर से खेल रहे थे। मैदान में मुझे देखा तो पास आए, दुआ सलाम के बाद कुछ इधर उधर की बात हुईं। फिर हंस के कहने लगे, “तू रोहतक में तो मुझसे बचा रहा, अब कैसे बचेगा।” मैं भी हंस दिया, “अब तो तू इतना बड़ा खिलाड़ी बन चुका है कि तेरी बॉल पर आउट होना इज़्ज़त की बात है।” फिर वही हुआ जो होना चाहिए था….. मुझे गोयल ने दोनों पारियों में 14 और 08 रन पर आउट किया।
इसके बाद यह जुझारू खिलाड़ी आगे ही आगे बढ़ता रहा। पटियाला और साउथ पंजाब की तरफ़ से रणजी खेलने के बाद गोयल फ़ाइनली हरियाणा से खेलने लगा। मैं भी HCA के साथ जुड़ गया। बाहर कहीं खेलने जाते और अगर मैं टीम के साथ होता तो खेल ख़त्म होने के हम एक साथ ही रहते थे और ऐसे कई मौके आए। साथ गुज़ारे वक़्त की वजह से मुझे क्रिकेट खिलाड़ी गोयल की पर्सनैलिटी के अन्य पक्ष भी देखने को मिले।
सबसे ख़ास बात गोयल साहब में यह थी कि वह एक बहुत ही आत्म-संतोषी थे। वे जानते थे उनका इंडिया टीम में न चुना जाना उनके साथ अन्याय था, पर इसको लेकर कभी उन्होंने कोई शिकवा, शिकायत नहीं की। मेरे कुरेदने पर इतना ही कहते थे, जो किस्मत में होगा, मिल जाएगा और जो नहीं होगा, वह रोने धोने से भी नहीं मिलेगा। वैसे, ज़िन्दगी में कमी भी क्या है ?
गोयल साहब एक बहुत ही नेक और साफ़ दिल इन्सान थे। किसी के भी प्रति कोई ईर्ष्या, कोई जलन, कोई ill-will नहीं! एकदम निष्कपट, निश्छल, सरल, सीधे सादे इन्सान! पकौड़ों के साथ चाय के शौकीन! आलू टिक्की, गोलगप्पे, चाट के इस हद तक शौकीन की, कि इंग्लैंड में काउंटी क्रिकेट खेलने का लालच भी उन्हें वहां देर तक रोक नहीं पाया और वह रेलवे रोड पर भूरू की चाट खाने वापस आ गए। और हां, सरकस देखना वह फ़िल्म देखने से ज़्यादा पसंद करते थे।
बहुत घरेलू और affectionate! कम से कम हमारे बच्चों के तो वे बहुत ही favourite uncle थे। उनका बड़ा बेटा तो हमारी बेटी से राखी बंधवाता था।
गोयल साहब के रूप में भारतीय क्रिकेट का एक चमकता सितारा डूब गया। उनके निधन से क्रिकेट जगत, ख़ास तौर पर हरियाणा के क्रिकेट प्रेमी बेहद शोकग्रस्त हैं। मेरे जैसे लोगों के लिए तो यह व्यक्तिगत क्षति है। आखिर, उनसे दिल के तार जो जुड़े थे।