महंगाई की मार देख ल्योहो रहे अत्याचार देख ल्यो जात, धर्म अर गोत के नां पैकिसी छिड़ी तकरार देख ल्यो खूब तरक्की होई देस म्हैंघट ग्ये पर रुजगार देख ल्यो रेप, नसा, नफरत, बेकारीहत्या के औजार देख ल्यो ढोंग रचैं शरधा के नां पैधर्म के ठेकेदार देख ल्यो मेहनत करैं, बांट कै खावैंइसे होवैं सरदार…
Category: साहित्य-संस्कृति
कौन हैं सुखविंदर सिंह सुक्खू ?
छात्र राजनीति से शुरुआत करने वाले सुखविंदर सिंह सुक्खू (Sukhvinder Singh Sukkhu) हिमाचल प्रदेश के नए मुख्यमंत्री बने हैं। इस कांग्रेसी दिग्गज का राजनीतिक सफर बेहद रोचक रहा है। छात्र नेता बनने के बाद सुक्खू ने नगर निगम शिमला से बतौर पार्षद के रूप में चुनावी राजनीति की शुरुआत की। वे नादौन से चार बार…
घरफूँक थियेटर फेस्टिवल में एकल नाटक ‘हाशिया’ का हुआ मंचन
इंसान को जब पता चलता है कि हाशिये से केंद्र में पहुंचने के लिए उसने क्या-क्या खो खो दिया, तब तक बहुत देर हो चुकी होती है रोहतक। ‘हाशिये पर रहने वाले आम लोग हमेशा केंद्र में पहुंचने, यानी खास बनने का सपना देखते रहते हैं और तमाम उम्र इस सपने को पूरा करने की…
गधे की बरात ने आसाम-मेघालय में मचाई धूम
– आसाम और मेघालय में 5 स्थानों पर किया गधे की बारात नाटक का मंचन।– हरियाणा का पहला नाटक, जिसे राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय की ओर से उत्तर-पूर्व में नाट्यमंचन के लिए चुना गया।– उत्तर-पूर्व के ख्यातिप्राप्त रंगकर्मी रहे उपस्थित।– मेघालय आईसीसीआर के निदेशक ने दिया दोबारा आने का न्यौता। रोहतक। स्थानीय सांस्कृतिक संस्था ‘सप्तक’ के…
ग़ज़ल
क्या पाना है, क्या खोना हैअपना-अपना ग़म ढ़ोना है। सारी दुनिया का महाभारतअपने ही भीतर होना है। गर्म हवा में तन झुलसा हैबर्फ मगर मन का कोना है। अपना दिल है शीश महल साएक अंधेरा भी कोना है। सभी कहकहों में डूबे हैंनई तरह का यह रोना है। घटनाओं की नब्ज टटोलोरहो देखते क्या होना…
सुनहरी सुबह का गीत
उस सुबह का इंतजार है मुझेजिस सुबह में सब की खातिर प्यार हो वास्ता एक दूसरे के हो गमों सेरास्ता एक दूसरे के हो दिलों सेएक सा हर शख्स से व्यवहार होउस सुबह का इंतजार है मुझे…. ज़्यादती कोई किसी पर न करेजी सके कमज़ोर भी यहां बिन डरेकर्ज़वान न कोई साहूकार होउस सुबह का…
ग़ज़ल
कदम कदम आगे बढ़ना हैसीढ़ी दर सीढ़ी चढ़ना है। बाहर-भीतर कुरुक्षेत्र हैहर पल महाभारत लड़ना है। रोज़ नया धोखा मिलना हैरोज़ भरोसा भी करना है। नहीं लिखा जो कभी किसी नेहमको तो वह ख़त पढ़ना है। खुद के भीतर से ही खुद कोएक नया इंसान गढ़ना है।। – अविनाश सैनी# 9416233992
“देश मेरे आबाद रहो”
ऐ देश मेरे आबाद रहोरहती दुनिया तक शाद रहो,तुम फूलो फलो महको चहकोऔर हर दम ही आज़ाद रहोए देश मेरे आबाद रहोरहती दुनिया तक शाद रहो। की खूब तरक्की है तूनेदुनिया में ऊंचा नाम कियानित नई मंज़िलें की हासिलजो हो ना सके वह काम किया।दिए इतने हीरे इस जग कोजिनका कोई पारावार नहींना ऐसा क्षेत्र…
मेरे गांव की माटी
वह मेरे गांव की माटी, भुला दूं किस तरह आख़िर,वह बूढ़े बाप की लाठी, भुला दूं किस तरह आखिर। जहां पर माफ हो जाती थी, मेरी गलतियां सारी,वह मां, वह प्यारी सी दादी, भुला दूं किस तरह आखिर। अभी भी याद आएं गांव की गलियां वो कच्ची सी,वहां बिछड़े हुए साथी, भुला दूं किस तरह…
आज मन एकाकी है
।। मीनू हुड्डा ।। दिशाएँ सर्वत्र ओढ़े नितांत मौन हैं,मर्यादाएँ समस्त, पूर्णतया गौण हैं,हवाओं में न कहीं गर्मजोशी है,अजस्त्र मरघट सी खामोशी है,ओ रे माझी! थाम लो पतवार,अविलम्ब चलो बीच मझधार,कि मुझमें अभी जीवन बाक़ी है।आज मन एकाकी है।। हुआ शुष्क तरु सा अतृप्त जीवन,आवेशों व आवेगों में लिप्त जीवन,ख़ालिस कुंठाओं से पटा जीवन,निर्बाध शंकाओं…