छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी नहीं रहे। उनके बेटे अमित जोगी ने ट्वीट करके यह जानकारी दी। 29 मई को अंतिम सांस लेने वाले अजीत जोगी अनोखी हस्ती थे। उन्होंने राजनीति के क्षेत्र में ऐसी छाप छोड़ी है जो सदियों तक याद की जाएगी। अजीत जोगी के जीवन के सफर में अनेक ऐसे किस्से हैं जो काफी चौंकाने वाले हैं। आदिवासी समाज से आने वाले अजीत जोगी गांव की गलियों में नंगे पांव पले बढ़े और मिशनरी की मदद से शिक्षा पूरी कर पहले इंजीनियरिंग फिर यूपीएससी की परीक्षा पास कर कलेक्टर बने। जोगी ने जिंदगी में इतने उतार-चढ़ाव देखे जिन पर पहली नजर में भरोसा करना मुश्किल लगता है। आइए उनसे जुड़े 3 ऐसे किस्सों पर नजर डालते हैं जिनसे उनकी जिंदगी को समझा जा सकता है।
राजीव गांधी से गहरी दोस्ती
लगभग 14 साल जिलाधिकारी रहे अजीत जोगी गांधी परिवार के बेहद करीबी रहे। बताया जाता है कि अजीत जोगी जब रायपुर के जिला कलेक्टर थे तब राजीव गांधी पायलट हुआ करते थे। राजीव गांधी की फ्लाइट जब कभी रायुपर में लैंड होती तो तत्कालीन जिला कलेक्टर अजीत जोगी खुद उन्हें रिसीव करने एयरपोर्ट जाया करते थे। उस वक्त राजीव भी यंग थे और जोगी भी। इस वजह से दोनों के बीच काफी अच्छी दोस्ती जैसा रिश्ता बन गया था। इस तरह एक जिले के कलेक्टर अजीत जोगी की पहुंच तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के आवास तक हो गई।
मात्र ढाई घंटे में बन गए राजनेता
आपको आश्चर्य होगा कि अजीत जोगी ढाई घंटे में कलेक्टर से राजनेता बन गए थे। हुआ यूं कि
इंदौर के कलेक्टर के तौर पर अजीत जोगी ग्रामीण इलाके के दौरे पर गए थे। रात में जब वह घर लौटे तो पत्नी रेणु ने बताया कि प्रधानमंत्री कार्यालय से फोन आया था। पहले तो जोगी को लगा कि भला पीएमओ से किसी कलेक्टर को क्यों कॉल आएगा। लेकिन अगली सुबह तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के पीए ने उनसे संपर्क किया। उन्होंने जोगी से कहा कि प्रधानमंत्री चाहते हैं कि आप तत्काल कलेक्टर पद से इस्तीफा दे दें। यह सुनते ही जोगी थोड़े घबरा गए। लेकिन अगले ही वाक्य में पीएम के पीए ने कहा कि प्रधानमंत्री चाहते हैं आप मध्य प्रदेश से राज्यसभा के लिए नॉमिनेशन करें। उनसे कहा गया कि रात 12 बजे तक दिग्विजय सिंह उन्हें लेने इंदौर पहुंचेंगे। सुबह 11 बजे तक इस्तीफे की सारी औपचारिकता पूरी कर ली जाएगी। यही हुआ। कलेक्टर पद से इस्तीफा देने और कांग्रेस की सदस्यता लेने में करीब ढाई घंटे का वक्त लगा। इस तरह अजीत जोगी ढ़ाई घंटे में कलेक्टर से राजनेता बने।
समर्थक ऐसे-ऐसे
यूं तो अजीत जोगी कभी जनाधार वाले नेता नहीं माने गए, लेकिन समाज के एक तबके के बीच उनकी अच्छी पकड़ रही। इसकी बानगी 2004 के लोकसभा चुनाव के दौरान अखबारों में प्रकाशित एक रिपोर्ट से होती है। अजीत जोगी थे तो आदिवासी समाज से, लेकिन अनूसुचित श्रेणी में आने वाला सतनामी समाज भी उन्हें अपना नेता मानता था। उस दौर के अखबारों में एक खबर छपी थी कि अजीत जोगी पर बहस के चलते एक लड़का-लड़की की सगाई टूट गई थी। दरअसल, बात यह थी कि छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव हारने के बाद अजीत जोगी महासमुंद लोकसभा सीट से चुनाव मैदान में थे। इस सीट पर उनके विपरीत बीजेपी के वरिष्ठ नेता विद्याचरण शुक्ल थे।
इसी दौरान लड़का लड़की की सगाई की रस्म चल रही थी। भोजन का दौर चल रहा था। इसी दौरान लड़की पक्ष के लोगों ने नॉर्मल बातचीत में लड़के वालों से पूछ लिया कि इस बार के चुनाव में महासमुंद लोकसभा सीट से किसका पलड़ा भारी है। लड़के वालों ने कहा कि अजीत जोगी महासमुंद से चुनाव हार रहे हैं। यह बात लड़की वालों को नागवार गुजरी। देखते ही देखते बात इतनी बढ़ गई कि लड़की वालों ने कहा कि जो परिवार अजीत जोगी का विरोधी है वे उनके साथ रिश्ता नहीं करेंगे। गांव वालों के बीच-बचाव से दोनों परिवारों का झगड़ा तो टल गया, लेकिन सगाई टूट गई। बाद में अजीत जोगी यह चुनाव जीत गए।
दिलचस्प बात यह है कि इस लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान अजीत जोगी की कार दुर्घटनाग्रस्त हो गई, जिसमें उनके शरीर के कमर के नीचे के हिस्से ने काम करना बंद कर दिया था। दुर्घटना की वजह से अजीत जोगी प्रचार नहीं कर सके, लेकिन फिर भी वह जीत गए थे।