अंतिम मुग़ल बादशाह और स्वतंत्रता सेनानी बहादुर शाह जफर के 157 वें उर्स पर 7 नवंबर को दिल्ली की ग़ालिब अकादेमी में एक राष्ट्रीय सम्मेलन तथा सम्मान समारोह का आयोजन किया गया। मरहूम बादशाह सलामत के वर्तमान जीवित वंशज व पीठासीन नवाब शाह मो. शुएब खान की अध्यक्षता में हुए इस कार्यक्रम में देशभर में फैले 1857 के क्रांतिवीरों के वंशजों तथा स्वाधीनता एवं अमन-दोस्ती के लिए काम कर रहे अनेक संगठनों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया। इस मौके पर श्रीमती समीना खान ने मुग़ल खानदान की समृद्ध विरासत पर एक विस्तृत लेख पढ़ा तथा अंतिम मुग़ल बादशाह के जीवन, विचारों तथा दर्शन के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि अंतिम बादशाह एक खुद्दार हिंदुस्तानी थे जिन्होंने निर्दयी अंग्रेज़ी हुकूमत द्वारा अपने पुत्रों के कटे सिरों को पेश करने के बावजूद भी विदेशी दासता को स्वीकार नही किया। अंत मे निर्लज्ज विदेशी शासकों ने हिंदुस्तानी आवाम के इस सरपरस्त को मुल्क से जिला वतन कर रंगून भेज कर अपमानित जीवन व्यतीत करने को विवश कर दिया। वहां भी उन्होंने अपने देश के गौरव की बहाली की कामना की और स्वाधीनता की उम्मीद में हर दुख सहन किया। वे एक निर्भीक स्वतन्त्रता सेनानी थे जिन्होंने सन 1857 में भारत की आज़ादी की पहली जंग को नेतृत्व प्रदान किया। यह जनमानस में उनकी स्वीकार्यता ही थी कि इस देश के सभी तत्कालीन स्वाधीनता सेनानियों ने अपनी सांझा संस्कृति व विरासत के रूप में उन्हें अपना नेता माना।
बहादुर शाह जफर अनेक भाषाओं, साहित्य व धर्म ग्रंथों के मर्मज्ञ होने के साथ-साथ उर्दू तथा फ़ारसी के उच्च कोटि के कवि थे। उनकी कविताओं में उनका मातृभूमि के प्रति प्रेम व आस्था तथा उनकी बेबसी साफ तौर पर झलकती है। 7 नवम्बर ,1862 को रंगून (वर्तमान बर्मा) में गुमनामी तथा बेबसी का जीवन जीते हुए उनका निधन हो गया। उनकी मृत्यु के 49 साल बाद सन 1911 में काफी खोज खबर के बाद उनकी कब्र को खोजा गया और उनका मज़ार घोषित किया गया। हम भारतीयों को अफसोस है कि देश की आज़ादी के 72 साल बाद भी हम हिंदुस्तान में दफन होने की उनकी अंतिम इच्छा को पूरी करते हुए उनके अंतिम अवशेष वापिस नही ला सके।
कार्यक्रम को डॉ. रीमा ईरानी, महान तात्या टोपे के वंशज डॉ. राजेश टोपे, शहीद ठाकुर दुर्गा सिंह के वंशज विजय सिसोदिया, सन 1857 बहराइच शाही परिवार के वंशज आदित्य भान सिंह, राजा रसिया बलभद्र सिंह, आल इंडिया पीस मिशन के अध्यक्ष स. दया सिंह, हाली पानीपती ट्रस्ट व गांधी ग्लोबल फैमिली के महासचिव राम मोहन राय, मौलाना मुज़म्मिल हक़, डॉ ओंकार मित्तल, स. राजेन्द्र कुमार भट्टी , मुफ़्ती अताउर रहमान काज़मी, गोंडा परिवार से शहीद राजा बक्स सिंह के वंशज राजा माधव राव सिंह, इंडिया इस्लामिक कल्चरल सेन्टर के अध्यक्ष हाजी सिराज़ क़ुरैशी, आज़ाद हिंद फौज के सैनिक के. फूल सिंह के पुत्र डी पी राघव तथा कर्नल राम मालिक ने भी सम्बोधित किया ।
समारोह में शहीद परिवारों के सदस्यों को सम्मानित करने के साथ-साथ अमन-दोस्ती के लिए कार्यरत्त निर्मला देशपांडे संस्थान को भी सम्मानित किया गया। संस्थान की ओर से राम मोहन राय व दीपक कथूरिया ने यह सम्मान ग्रहण किया ।
इस अवसर पर भारत मे मंगोलिया राजदूतावास के कौंसलर बाथसूरी, राजा टोडरमल के वंशज राजा नमित वर्मा, डॉ संध्या अग्रवाल, खुदाई खिदमतगार हिन्द के मो. फैजान, रफत खान, मेहजबीन भट्ट, पादरी टीटू पीटर, एडवोकेट सयैद मंसूर अली, मो. तारिक, शाम लाल गढवाल, प्रज्ञा नारंग सहित बड़ी संख्या में लोग उपस्थित रहे । कार्यक्रम का संचालन दूरदर्शन व रेडियो के पूर्व अतिरिक्त डायरेक्टर जनरल अनिसुल हक़ ने किया।