दिल्ली की चहल-पहल, प्रदूषण और ट्रैफिक की समस्या के आज मुझे याद आ रहे हैं 1 से 3 नवम्बर, 1984 के वे दिन जब दिलवालों की दिल्ली बेदिल हो गई थी। यह बात 35 साल पुरानी है जब 31 अक्टूबर 1984 को तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इन्दिरा गांधी के निधन के बाद 3 दिनों में लगभग 3000 सिक्खों को सड़कों पर जीवित जला दिया गया या कत्ल कर दिया गया। गैर सरकारी आंकड़ों के अनुसार यह संख्या दोगुनी या इससे भी अधिक बताई जाती है। लोग इस घटना को 1947 के बटवारे जैसी ही भयानक बताते हैं क्योंकि इसमें भी एक खास वर्ग के प्रति जनाक्रोश चरम पर था और उन्हें घरों से निकाल कर उनके परिवार के सदस्यों में सामने जिन्दा जलाने जैसी वारदातें भी सामने आई थीं।
दिल्ली की इन घटनाओं के पीछे अन्य लोगों के अलावा कांग्रेस के 3 सीनियर नेता, एचकेएल भगत, जगदीश टाइटलर, एवं सज्जन कुमार, भी मुख्य साजिशकर्ता के रूप में सामने आए। बाहरी दिल्ली से सांसद सज्जन कुमार को 5 सिक्खों के मर्डर व राजनगर का गुरुद्वारा जलाने का दोषी पाया गया। 1984 से 2012 तक उन पर कई बार दिल्ली पुलिस एवं स्पेशल जांच टीम ने चारजेस लगाए परंतु हर बार वे जमानत पर या सबूतों के अभाव में छूट गए।
17 दिसम्बर 2018 चौरासी के इतिहास में खास दिन था जब दिल्ली हाई कोर्ट में सज्जन कुमार ने आत्मसमर्पण किया और उन्हें ताउम्र जेल की सजा सुनाई गई। 35 सालों बाद मिले इस इन्साफ से पीड़ित परिवार खुश तो हैं पर हर साल 1 से 3 नवम्बर की रात उन विधवा औरतों और बच्चों के जख्म हरे कर जाती है जिन्होंने अपने परिवार के लोगों को खोया था।
गौरतलब है कि 3000 सिक्खों की हत्या में सिर्फ 276 केस दर्ज हुए, जिनमें से 241 केस पुलिस ने बिना जांच किए, सबूतों का अभाव बताकर बन्द कर दिए। इन हत्याओं में केवल 21 लोगों को ही दोषी माना गया और उन्हें आजीवन जेल की सजा हुई। इस केस में गुनहगारों को सजा न होने से कहीं न कहीं भागलपुर 1989, हाशीमपुरा कश्मीर 1990, मुम्बई 1993, गोधरा 2002 और मुजफ्फरनगर 2013 आदि के दंगाइयों को भी हौसला मिला।
हर बार असामाजिक तत्व समाज में उत्पात मचाते हैं, निर्दोषों को लूटते हैं तथा विश्व पटल पर हमारे देश को बदनाम करवाते हैं। इसीलिए मैं सरकारों से अपील करुंगा कि ऐसे अमानवीय दंगों के दोषियों को कठोर से कठोर सजा दिलवाकर उदाहरण बनाए जाएं ताकि समाज में ऐसा कोई और वाक्या घटित न हो।
जो लोग इतिहास से नहीं सीखते वे इसके दोहराने से बर्बाद हो जाते हैं। इतिहास गवाह है कि दंगों या बदले की कार्यवाहियों से किसी भी घटना का हल नहीं निकलता। हल निकलता है तो सिर्फ प्यार से, अपनेपन से और माफ कर देने से।