‘दिल्ली चलो’ के आह्वान के साथ पंजाब, हरियाणा और देश के दूसरे कई राज्यों के किसान 26 नवंबर से आंदोलनरत हैं। ये किसान हरियाणा पुलिस द्वारा लगाई गई बाधाओं को तोड़ते हुए 27 नवंबर को दिल्ली के सिंघु और टीकरी बॉर्डर पर पहुंचे थे, लेकिन सरकार ने ये दोनों बॉर्डर सील करके किसानों को दिल्ली में घुसने से रोक दिया। तब से ये वहीं जमे हुए हैं। अपने राज्य में पिछले दो माह से धरने पर बैठे पंजाब के किसान आंदोलन को नेतृत्व दे रहे हैं। अब यूपी, राजस्थान और अन्य राज्यों के किसान भी बड़ी संख्या में दिल्ली के अलग-अलग बॉर्डर पर पहुंच गए हैं। धीरे धीरे अन्य तबके भी किसानों के पक्ष में आ जुटे हैं, जिनमें मुख्य रूप से बुद्धिजीवी, राजनेता, आढ़ती, बेरोजगार युवा, छात्र, मजदूर, आम शहरी, छोटे उद्योगपति, दुकानदार, ट्रांसपोर्टर और मनोरंजन जगत की बड़ी हस्तियां शामिल हैं। इसके चलते आंदोलनकारी किसानों की संख्या भी लगातार बढ़ती जा रही है और दिल्ली के दूसरे बॉर्डर भी बंद कर दिए गए हैं। दबाव बढ़ने के बाद सरकार ने किसानों के साथ बातचीत शुरू की है और 5 दिसंबर तक दोनों पक्षों के बीच पांच दौर की वार्ता हो चुकी है। अगली बैठक 9 दिसंबर को होनी निश्चित हुई है।
आंदोलन के मुद्दे

किसान मुख्य रूप से केंद्र सरकार द्वारा हाल ही में पारित तीन कृषि कानूनों को अपने हितों के खिलाफ मान रहे हैं और उनका विरोध करते हुए उन्हें वापिस लेने की मांग कर रहे हैं। सरकार इन्हें वापिस न लेने पर अड़ी हुई है। यही आंदोलन का केंद्रीय मुद्दा है। इसके अलावा, किसान सरकार के प्रस्तावित बिजली संशोधन अध्यादेश का विरोध कर रहे हैं। पंजाब के किसानों लगता है कि इससे उन्हें मुफ्त मिल रही बिजली की सुविधा खत्म हो जाएगी। तीसरे, किसान उस सरकारी नियम का भी विरोध कर रहे हैं, जिसके तहत पराली जलाने वाले किसानों पर एक करोड़ रुपए जुर्माना और सज़ा का प्रावधान है। किसान इसे वापिस लेने की मांग कर रहे हैं।
कृषि कानूनों को लेकर किसानों की आपत्ति
किसानों का मानना है कि ये कानून किसान के विरुद्ध और पूंजीपतियों के हित में हैं। नए कानूनों से एग्रीकल्चर प्रोडक्ट मार्केट कमेटी (एपीएमसी) खत्म हो सकती है, जिससे मंडी सिस्टम ध्वस्त हो जाएगा। किसान फसल की बुवाई और अन्य खर्चों के लिए आढ़ती के एडवांस पर निर्भर करते हैं। मंडी सिस्टम खत्म होने से किसानों को एडवांस मिलने में दिक्कत आएगी। नए कानून से प्राइवेट मंडियां विकसित होंगी जिसके कारण सरकारी खरीद पहले सीमित और फिर खत्म हो जाएगी। अब अगर सरकारी खरीद ही नहीं होगी तो उन्हें एमएसपी अर्थात न्यूनतम समर्थन मूल्य भी नहीं मिलेगा।
यही नहीं, अब कोई भी व्यक्ति मंडी से बाहर ही बिना किसी रजिस्ट्रेशन कराए, केवल पैन और आधार कार्ड के जरिए ही खरीद-फरोख्त कर पाएगा और उस पर टैक्स भी नहीं लगेगा। इससे किसान के साथ धोखा करना आसान हो जाएगा। किसान खरीददारों को कहां ढूंढता फिरेगा? इसके अलावा, सरकार ने न तो एमएसपी देने की गारंटी कानून में दी है और न ही एमएसपी से कम की खरीद करने वाले के लिए सज़ा का कोई प्रावधान किया है। कोई विवाद होने पर किसान को एसडीएम और डीसी की कोर्ट से आगे अपील करने का अधिकार भी नहीं होगा। बहुराष्ट्रीय कंपनियां और बड़े कारोबारी इसका नाजायज फायदा उठाएंगे। वे फसल का दाम अपनी शर्तों पर तय करेंगे और किसान न्याय के लिए गुहार भी नहीं लगा पाएगा। अभी भी, एमएसपी तय होने के बावजूद, सरकारी खरीद में कमी और देरी होने के कारण किसानों को अपनी फसल मजबूरी में कम कीमत पर बेचनी पड़ रही है। बाद में क्या हाल हो सकता है, उसका अंदाज़ा इसी से लगाया जा सकता है।
इतना ही नहीं, कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के कानून की वजह से किसान अपनी ही जमीन पर मजदूर बन जाएगा और पूंजीपति छोटे किसानों की जमीन तथा फसल हड़प लेंगे। धोखा होने पर किसान को न्याय के लिए कोर्ट जाने का अधिकार भी इन कानूनों की वजह से छिन जाएगा।
भंडारण संबंधी नए कानून के कारण विभिन्न आवश्यक खाद्य सामग्रियों के भंडारण की लिमिट खत्म हो जाएगी और बड़े पूंजीपति खाद्य वस्तुओं का अथाह भंडारण करेंगे। इससे जमाखोरी और महंगाई बढ़ेगी, जिसका नुकसान किसान को ही नहीं, आम उपभोक्ता – गरीब, मजदूर और मध्यम वर्ग को भी होगा।
किसानों का कहना है कि अभी तो इन कानूनों के अनुरूप सरकारी नियम बनाने की प्रक्रिया चल रही है। पराली जलाने पर एक करोड़ रुपए जुर्माने तथा सज़ा का नियम इसी का हिस्सा है। असली पता तो किसान को तब पता चलेगा, जब ऐसे और नियम सामने आएंगे। तब किसान कहीं का नहीं रह जाएगा।
किसानों की मांग
सरकार से वार्ता के दौरान किसानों ने एपीएमसी एक्ट में 17, एसेंशियल कमोडिटी एक्ट में 8 और कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग एक्ट में 12 जगह आपत्ति जताई हैं। उनकी मुख्य मांग एमएसपी को लेकर है। किसानों का कहना है कि सरकार ऐसा कानून पास करे कि कोई भी व्यक्ति या कंपनी एमएसपी से कम पर फसल न खरीद सके। इसी कड़ी में, एमएसपी से कम पर खरीदी करने वालों के लिए कड़ी सज़ा का प्रावधान किया जाए। इसके अलावा, वे प्रस्तावित बिजली संशोधन बिल और पराली जलाने पर सज़ा के नियम को भी वापिस लेने की मांग कर रहे हैं। इन सबके बीच किसान नेता तीनों कृषि कानूनों को वापिस लेने की मांग पर अड़े हुए हैं। वे एक ही बात कह रहे हैं कि सरकार एक दिन का संसद का विशेष सत्र बुलाए और तीनों कृषि कानूनों को रद्द करे। वे इससे कम पर कोई समझौता नहीं करेंगे।
वर्तमान स्थिति

अभी तक हुई पांच दौर की वार्ता में दोनों पक्षों के बीच कोई सहमति नहीं बनी है। किसान सरकार से कृषि बिलों की वापसी का ठोस आश्वासन चाहते हैं, जबकि सरकारी प्रतिनिधि उनकी शंकाओं का समाधान करने का आश्वासन मात्र दे रहे हैं। इतनी बड़ी तादाद में किसानों के आने और चारों ओर से दिल्ली को घेर लेने से सरकार काफी दबाव में है। इसलिए वह किसी भी तरह आंदोलन को खत्म करवाना चाहती है। इसके लिए, सर्दी और कोरोना संक्रमण का हवाला दिया जा रहा है। आंदोलन को बदनाम करने के साथ-साथ किसानों में फूट डलवाने की कोशिशें भी की जा चुकी हैं। खुले आसमान तले रात गुज़ार रहे किसान भी भयंकर सर्दी से परेशान हैं। लेकिन उनके हौसले ज्यों के त्यों बने हुए हैं। पीछे हटने की बजाए वे सरकार पर दबाव बढ़ाने के लिए आंदोलन को और तेज़ करने की रणनीति बना रहे हैं। इसके तहत उन्होंने 8 दिसंबर को भारत बंद का आह्वान किया है।
- अविनाश सैनी,
संपादक, सारी दुनिया।