दिन पर दिन कोरोना की स्थिति भयावह होती जा रही है। चीन के बाद इटली, अमेरिका, ब्रिटेन, स्पेन,फ्रांस आदि उन देशों में भी हालात बेकाबू हैं, जहां मेडिकल सुविधाओं की कोई कमी नहीं है और स्वास्थ्य सेवाओं का ढांचा काफी चुस्त-दुरुस्त है। इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि वहां के लोगों ने इसके खतरे को गंभीरता से नहीं लिया। शिक्षित होने के बावजूद उन्होंने जागरूकता का परिचय नहीं दिया और इस भ्रम में रहे कि उन्हें क्या होगा! उन्होंने सरकारों की एक दूसरे से दूरी बनाने, खुद को आइसोलेट करने और अस्पताल में रहकर उचित सावधानी बरतने की सलाह को अनदेखा किया और परिणाम हम सबके सामने हैं।
स्वास्थ्य सेवाओं पर दुनिया में सबसे अधिक खर्च करने वाले देशों में से एक, इटली इस समय कोरोनावायरस के सामने निस्सहाय नजर आ रहा है। डॉक्टर हैं, अस्पताल हैं, पर कोविड 19 पीड़ितों की संख्या इतनी अधिक है कि संभावित मौतों को रोकने का कोई रास्ता नहीं बचा।
अब भारत की बात करते हैं। हम भी यूरोप के देशों की तरह इस खतरे को बहुत हल्के से ले रहे हैं, जबकि हमारे यहां तो हालात वैसे ही काफी खराब हैं। निरक्षरता और अंधविश्वास के चलते यहां जागरूकता का स्तर काफी कम है। अनेक स्थानों पर आबादी का घनत्व इतना अधिक है कि एक कमरे की जगह में ही ऊपर नीचे कई परिवार रहने को मजबूर हैं। गरीबी के चलते इन इलाकों के लोगों, खासकर बच्चों और औरतों में कुपोषण, कमजोरी व खून की कमी आम बात है। नशे का प्रकोप भी अधिक है जिससे पुरुषों में भी रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर है। साफ-सफाई की स्थिति बेहद खराब है। देश के लगभग 16 करोड लोगों को पीने का साफ पानी नहीं मिल पाता। इतना ही नहीं, दुनिया के 49% मधुमेह रोगी हमारे यहां हैं। कैंसर और टीबी के मरीजों की संख्या में भी हम काफी आगे हैं। ऐसे में अंदाजा लगाइए कि अगर कोरोनावायरस का प्रकोप एक बार भारत के घनी आबादी वाले स्लम इलाके में पहुंच गया, तो वह कितनी तेजी से फैलेगा और कितनी तबाही मचाएगा!
भारत में स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति भी बहुत अच्छी नहीं हैं। स्वास्थ्य सेवाओं में भारत का दुनिया में 112 वां स्थान है। यहां जीडीपी का 1.6 प्रतिशत ही स्वास्थ्य सेवाओं पर खर्च हो रहा है। भारत में 2018-19 में स्वास्थ्य पर प्रति व्यक्ति 1675 रुपए खर्च किए गए, जो इंडोनेशिया और श्रीलंका जैसे देशों से आधे से भी कम हैं। यही कारण है कि यहां करीब 1700 की आबादी पर एक डॉक्टर है, जबकि डब्ल्यूएचओ के अनुसार प्रति 1000 लोगों पर एक डॉक्टर होना चाहिए। बिहार जैसे राज्यों में तो एक डॉक्टर को 28000 से ज्यादा लोगों की देखभाल करनी पड़ती है। सरकारी डॉक्टरों की बात करें तो भारत में 10926 व्यक्तियों पर एक एलोपैथी सरकारी डॉक्टर है। यही नहीं, हमारे यहां 1000 लोगों पर केवल 1.1 बेड उपलब्ध है। इंटेंसिव केयर यूनिट में तो कुल एक लाख बिस्तर ही हैं। इसके अलावा, मात्र तीस हजार वेंटीलेटर हैं, जिनमें से 80% प्राइवेट अस्पतालों में हैं। यानी, गंभीर रोगियों के लिए पर्याप्त बिस्तर और वेंटिलेटर भी हमारे पास नहीं हैं। इसके विपरीत, इटली में, जहां कोरोनावायरस ने सर्वाधिक तबाही मचाई है, एक हजार की आबादी पर 4 डॉक्टर कार्यरत हैं और 3.5 बेड उपलब्ध हैं।
यानी, केवल और केवल स्वास्थ्य ढांचे के बल पर कोरोना के खिलाफ जंग नहीं जीती जा सकती। वायरस को हराने में फिजिकल डिस्टेंसिंग कारगर उपाय है। फिजिकल डिस्टेंसिंग का अर्थ है आपस में दूरी बनाना, सार्वजनिक स्थानों पर न जाना और छूना तो बिल्कुल नहीं। फिजिकल या सोशल डिस्टेंसिंग कितना असरदार है, इसे इस तरह समझा जा सकता है कि यदि हम सामान्य मेलजोल बनाए रखते हैं तो एक कोरोना पीड़ित 406 लोगों को संक्रमित कर सकता है। लेकिन अगर हम आपसी मेलजोल को 75% तक कम कर लेते हैं, तो वह केवल 2.5 लोगों को ही संक्रमित कर पाएगा।
असल बात यह है, कि 25 फीसदी लोगों को तो पता ही नहीं चलता कि वे कोरोना संक्रमित हैं। अगर हमने मेलजोल बंद नहीं किया, तो ऐसे लोग अन्य लोगों से मिलते रहेंगे और अनजाने में ही अपने मित्रों और परिजनों को कोरोना से संक्रमित कर देंगे। दूसरी बात यह है कि कोरोनावायरस से संक्रमित 80% मरीज स्वतः ही 14 दिन में ठीक हो जाते हैं। यदि वे अपने आपको 14 दिन के लिए अलग-थलग (आइसोलेट) कर लें, तो अन्य लोगों को संक्रमित नहीं कर पाएंगे।
इसलिए जहां तक संभव हो अपने घर से बाहर न निकलें। न किसी के यहां जाएं, न किसी को अपने यहां बुलाएं। जनता कर्फ्यू को अपनाएं और अपने घर पर एकांत में रहें। यदि बाहर जाना भी पड़े, तो पूरी सावधानी बरतें।भीड़ से बचें और दूसरों से 1 मीटर की दूरी बनाकर रखें। बार-बार हाथ धोएं, खांसी आने पर मुंह पर कपड़ा रखें। मुंह पर कम से कम हाथ लगाएं। पैन व अन्य चीजों को मुंह में लेने से बचें। यदि बुखार हो और स्थिति गंभीर दिखाई दे, कोरोना होने की आशंका लगे, तो भी घबराएं नहीं, हड़बड़ी न करें, डॉक्टर को दिखाएं।
सीधी सी बात है कि इस समय देश के लोग, यानी हम और आप ही असली सिपाही हैं। हमीं पर खुद को और देश को बचाने की सबसे बड़ी जिम्मेदारी है; और हथियार हैं केवल सावधानी और जागरूकता! जीत का मूल मंत्र फिजिकल अथवा सोशल डिस्टेंसिंग में ही छुपा है।