संपादकीय – 13
देश और दुनिया में कोरोना के मरीज लगातार बढ़ रहे हैं। मौतों का सिलसिला भी बदस्तूर जारी है। भारत अभी सामुदायिक संक्रमण से बचा हुआ दिख रहा है, लेकिन लगता है कि ‘धारावी’ जैसे कुछेक स्थानों पर यह समुदाय में घुस भी चुका है। भारत में कम केसों और कम मौतों के पीछे लॉक डाउन को बड़ा कारण माना जा रहा है और आगे भी इसका सख्ती से पालन करने का आह्वान किया गया है। इसी दृष्टि से 15 अप्रैल से लॉक डाउन 2 लागू किया गया है। हालांकि लॉकडॉउन-2 में ‘जान है तो जहान है’ की बजाय ‘जान भी और जहान भी’ के आदर्श वाक्य को अपनाया गया है। ‘जान है तो जहान है’ का अर्थ था कि सिर्फ कोरोना से जान बचाने पर ध्यान दें, बाकी सब काम छोड़ दें। इसके अलावा, ‘जान भी और जहान भी’ से तात्पर्य है कि जान बचाने के साथ-साथ भविष्य की तैयारी भी शुरू कर दें ताकि लॉकडाउन के बाद जीवन को पटरी पर लाया जा सके। समझ यह है कि संक्रमण से अछूते और कम संक्रमित इलाकों में कुछ छूट देकर आर्थिक गतिविधियों को शुरू किया जाए तथा कृषि, बागवानी, पशुपालन, निर्माण आदि जरूरी काम करते हुए गरीब-मजदूरों के लिए रोजगारों का सृजन किया जाए ।
जहां तक कोरोना से जंग की बात है, कुछ लोग यह मानते हैं कि लॉक डाउन का सख्ती से पालन करने के बावजूद कोरोना को हराने के लिए ज्यादा से ज्यादा स्क्रीनिंग और बेहतर इलाज ही अंतिम विकल्प है। यानी, लॉक डाउन से कोरोना वायरस से निजात नहीं मिली है, बल्कि संक्रमण का खतरा थोड़ा टल गया है, जो कभी भी बढ़ सकता है। ऐसे में, कोरोना को हराने के लिए देश भर में केरल मॉडल अपनाने की बात भी की जा रही है।
केरल मॉडल का मतलब है, सोशल डिस्टेंसिंग का कड़ाई से पालन करते हुए बेहतर मेडिकल सुविधा, अधिकाधिक टेस्ट और जन जागरूकता के रास्ते को अपनाना। केरल में 30 जनवरी को देश का पहला कोरोना संक्रमित केस मिला था। वह विहान से आई एक मेडिकल छात्रा थी। केरल सरकार ने इससे पूर्व ही अपने हेल्थ सिस्टम को अलर्ट कर दिया था। जब देशभर में 66000 टेस्ट हुए थे, तो उनमें सबसे ज्यादा 10 हजार के करीब अकेले केरल ने किए थे। प्राप्त जानकारी के अनुसार, केरल देश का पहला राज्य है जिसने अपने स्तर पर रेपिड पीसीआर किट खरीदने की शुरुआत की थी। इसके अलावा उसने हर जिले में 2 कोविड अस्पताल शुरू किए, 24 घंटे के भीतर सरकारी अस्पतालों में 300 डॉक्टर और 400 स्वास्थ्य निरीक्षकों की नियुक्ति की, प्लाजा थेरेपी के लिए आवेदन किया, टेली-मेडिसिन सेवा शुरू की, संपर्क ट्रेसिंग के 218 मापदंड तय किए और अस्पतालों को एयरपोर्ट से लोंक किया। इस के चलते केरल में कोरोना संक्रमितों की संख्या अधिक नहीं बढ़ी और मौतों की संख्या तो काफी कम रही। यही नहीं केरल सरकार ने सबसे अधिक 20 हजार करोड़ के राहत पैकेज की घोषणा की, 1400 सामुदायिक रसोई शुरू की, एपीएल-बीपीएल को एक महीने का मुफ्त राशन दिया और 5500 से अधिक अतिथि मजदूर शिविर स्थापित किए। यानी, वहां सरकार अपनी सामाजिक जिम्मेदारी निभाने में भी पीछे नहीं रही।
कोरोना से लड़ने का एक वैकल्पिक मॉडल राजस्थान के भीलवाड़ा में अपनाया गया। एक समय कोरोनावायरस का हॉट स्पॉट बन चुके भीलवाड़ा में 22 लाख लोगों की स्क्रीनिंग (गहन जांच) की गई, वह भी केवल एक बार नहीं, बल्कि दो बार। यही नहीं, सोशल डिस्टेंसिंग के लिए महाकर्फ्यू भी लगाया और इस दौरान प्रशासन ने घर तक राशन व जरूरी सहायता पहुंचाने की जिम्मेदारी ली। आज भीलवाड़ा में न के बराबर कोरोना संक्रमित हैं। यानी, कोरोना से जंग जीतने में सोशल डिस्टेंसिंग के साथ-साथ एक-एक संक्रमित तक पहुंच बनाने और उनको बेहतर मेडिकल सुविधाएं मुहैया करने की भी महत्वपूर्ण भूमिका है। कुछ देशों ने इसी दम पर बिना लॉक डाउन के कोरोना को हराने में सफलता पाई है। इनमें एक है जर्मनी, जिसने जनवरी में ही कोरोना टेस्ट किट विकसित कर ली थी, जबकि वहां पहला संक्रमित केस फरवरी में आया था। एक जानकारी के अनुसार, 16 अप्रैल तक जर्मनी में 1,35,663 लोग कोरोना संक्रमित केस आए थे, जिनमें से 3867 की मृत्यु हुई। इसके विपरीत, इसी समय तक उससे दो तिहाई या आधी आबादी वाले इटली में 22,000, स्पेन में 19,000, फ्रांस में 18,000 और इंग्लैंड में 13,500 से अधिक मरीजों की मौत हो चुकी थी।
आठ करोड़, बीस लाख की आबादी वाले जर्मनी में 20 मार्च तक 2 लाख 80 हजार टेस्ट किए जा चुके थे। वहां लोगों को टेस्ट के लिए हस्पताल नहीं जाना पड़ता, बल्कि एक फोन कॉल पर ही डॉक्टर घर आकर टेस्ट करते हैं। इसी के चलते जर्मनी ने हल्के लक्षण वाले मरीजों को भी ढूंढ निकाला। इसके अलावा, जर्मनी ने अपनी स्वास्थ्य सुविधाओं में भी काफी इजाफा किया। उसने वेंटीलेटर युक्त आईसीयू की संख्या 28,000 से बढ़ाकर 40,000 कर ली। बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं के बल पर अब जर्मनी फ्रांस, स्पेन, इटली आदि के कोरोना संक्रमितों का इलाज भी कर पा रहा है। आपको बता दें कि जर्मनी में हेल्थ केयर सिस्टम पूरी तरह मुफ्त है। इसलिए वहां कोरोना की टेस्टिंग और इलाज भी मुफ्त है। इसके कारण जर्मनी सरकार को जनता का काफी सहयोग मिला है।
इसी तरह जापान में 16 अप्रैल तक संक्रमित लोगों की संख्या 8626 और मृतकों की संख्या केवल 178 रहीं। दक्षिण कोरिया में 10,000 से अधिक संक्रमित मिले, लेकिन मृत्यु केवल 229 की हुई। वहां भी टेस्टिंग पर अधिक जोर दिया गया। निस्संदेह जर्मनी की चांसलर एंजेला मोर्कल और दक्षिण कोरिया के मून जे इन ने पूरे योजनाबद्ध तरीके से अभियान चलाकर कोरोना को मात देने में सफलता पाई। दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति को तो इसका प्रतिफल भी मिल गया।संसदीय चुनाव में जनता ने उनकी पार्टी को संसदीय चुनाव में भारी बहुमत से जीत दिलाई है।
भारत की बात करें, तो यहां अब इसलिए केस बढ़े हुए दिख रहे हैं, क्योंकि अनेक राज्यों में टेस्टिंग की संख्या बढ़ा दी गई है। महाराष्ट्र में संक्रमितों की संख्या इसी लिए अधिक है। इसके विपरीत, टेस्टिंग के अभाव में बंगाल, यूपी, बिहार आदि बड़े राज्यों में बहुत ही कम मामले हैं। एक अनुमान है कि बंगाल में महाराष्ट्र से 94 फीसदी कम टेस्ट हुए हैं, जबकि बिहार में 83 और यूपी में 62 फीसदी कम टेस्टिंग हुई है। अब अगर टेस्ट नहीं होंगे तो मरीजों का पता कैसे लगेगा; और मरीजों तक नहीं पहुंचेंगे तो कोरोना को हराएंगे कैसे?
इधर, देश में कोरोना के साथ-साथ सांप्रदायिकता का वायरस भी काफी तेजी से फैल रहा है। एक समुदाय के प्रति झूठी अफवाहों के माध्यम से जहर फैलाकर सामाजिक ताने-बाने को खराब करने की कोशिश की जा रही है। गरीब फेरीवालों का धर्म पूछकर मारपीट की जा रही है। यह देश की एकता और अखंडता के लिए बेहद खतरनाक बात है। सभी जागरूक नागरिकों को इसे रोकने के लिए आगे आना होगा। साथ ही, घरों से दूर, राशन-पानी के अभाव में जीने को मजबूर गरीब प्रवासी मजदूरों और उनके छोटे-छोटे बच्चों की हालत पर भी ध्यान दिए जाने की जरूरत है। जाहिर है, ऐसे मानवीय पहलुओं के प्रति हमारी संवेदनशीलता का बचा रहना देश के सुखद भविष्य के लिए बेहद जरूरी है।