सेवानिवृत्ति के 4 माह बाद ही सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश जस्टिस रंजन गोगोई को राज्यसभा सदस्य के रूप में मनोनित किया गया है। इसे लेकर उन्हें चौतरफा आलोचना झेलनी पड़ रही हैं। विपक्षी नेताओं के साथ-साथ सुप्रीम कोर्ट के उनके पुराने सहयोगी भी इसे अनैतिक मान रहे हैं। न्यायपालिका की स्वतंत्रता और संविधान की रक्षा के लिए मुख्य न्यायाधीश के खिलाफ प्रेस कॉन्फ्रेंस कर चर्चा में आए रंजन गोगोई से कोई भी इस तरह की उम्मीद नहीं कर रहा था। खुद गोगोई ने 2018 में पांच जजों की पीठ के मुखिया के तौर पर सेवानिवृत्ति के बाद जजों की किसी भी तरह की नियुक्ति को न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर काला धब्बा बताया था।
इसी का हवाला देते हुए उनके पूर्व सहयोगी जस्टिस कुरियन जोसेफ ने कहा है कि गोगोई ने न्यायपालिका की आजादी और निष्पक्षता के साथ समझौता किया है। इससे न्यायपालिका पर लोगों का भरोसा कम हुआ है। उनके एक अन्य सहयोगी जस्टिस मैदान बी लोकुर ने भी गोगोई के इतनी जल्दी नामित किए जाने पर आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा – ‘क्या लोकतंत्र का आखिरी स्तंभ भी गिर गया।’
गौरतलब है कि 12 जनवरी 2018 को तत्कालीन चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की कार्यप्रणाली के खिलाफ प्रेस कॉन्फ्रेंस करके सवाल उठाने वाले सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन जजों में जे चेलमेश्वर और रंजन गोगोई के साथ जस्टिस कुरियन जोसेफ और जस्टिस मदन बी लोकुर भी शामिल थे। तब जस्टिस रंजन गोगोई ने कहा था कि वे देश के प्रति अपना कर्ज चुका रहे हैं। इसे याद करते हुए जोसेफ ने कहा, ‘मुझे आश्चर्य हो रहा है कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता के लिए ऐसा साहस करने वाले गोगोई ने पवित्र सिद्धांत से समझौता कैसे कर लिया।’ जजों की उस प्रेस कॉन्फ्रेंस को लेकर जस्टिस जोसेफ ने कहा कि वह अद्भुत अभूतपूर्व कदम था। इससे पहले कभी मौजूदा जजों ने प्रेस कॉन्फ्रेंस नहीं की थी। हम राष्ट्र को यह बताने के लिए सामने आए थे कि देश और संविधान के आधार को गंभीर खतरा है। लेकिन अब मुझे लगता है कि खतरा कहीं उससे बड़ा है।’
जस्टिस गोगोई के साथ प्रेस कॉन्फ्रेंस करने वाले तीन जजों का रिटायरमेंट के बाद पद लेने को लेकर साफ रुख है। जस्टिस कुरियन जोसेफ ने रिटायरमेंट के अगले दिन ही कहा था कि नौकरी के बाद सरकार द्वारा कोई पद बतौर ‘खैरात’ दिया जाता है। इसलिए जजों को यह नहीं लेना चाहिए। उन्होंने कहा था, ‘जब तक सरकार यह समझती हो कि रिटायर्ड जजों को पद देकर उन पर मेहरबानी कर रहे हैं, तब तक किसी जज को यह स्वीकार नहीं करना चाहिए।’ जस्टिस जे. चेलामेश्वर ने सार्वजनिक रूप से घोषणा की थी कि वह रिटायरमेंट के बाद सरकार द्वारा दिया जाने वाला कोई पद स्वीकार नहीं करेंगे। जस्टिस लोकुर का रुख भी यही रहा है।
यह भी महत्वपूर्ण है कि मुख्य न्यायाधीश बनने के बाद जस्टिस गोगोई कई विवादों में घिर गए थे।अयोध्या में राममंदिर के निर्माण और राफेल लड़ाकू विमान की खरीद में कथित घोटाले के मामले में सरकार को क्लीन चिट देने जैसे अहम फैसले सुनाने वाले जस्टिस गोगोई पर इन दोनों ही मामलों में सरकार की सुविधा का ख्याल रखकर फैसला देने का आरोप लगा था। रिटायरमेंट से कुछ वक्त पहले उन पर यौन शोषण के आरोप भी लगे थे। उस मामले पर आपात सुनवाई करते हुए उन्होंने कहा था कि उनके पास जो है, वह बस इज्जत ही है। पैसा तो उनके चपरासी के पास उनसे ज्यादा होगा। इसे उन्होंने एक जज के तौर पर अपनी स्वतंत्रता का सबूत भी बताया था। बाद में इन-हाउस कमेटी की जांच में उन्हें इस आरोप से बरी कर दिया गया और 17 नवंबर, 2019 को वह रिटायर भी हो गए। लेकिन, बस चार महीने बाद ही 16 मार्च, 2020 को उन्हें केटीएस तुलसी की जगह राज्यसभा सांसद मनोनीत करने का आदेश जारी हुआ। इस आदेश के बाद ही उनकी पुरानी बातों को याद किया जा रहा है।
इधर, पद ठुकराने की सलाह और मनोनयन की आलोचनाओं को दरकिनार करते हुए गोगोई ने कहा है कि शपथ लेने के बाद वह बताएंगे कि क्यों मनोनयन स्वीकार किया है!