कुदरत की हालात बिगाड़ी, माणस नै,
अपणी बगिया आप उजाड़ी, माणस नै।
खूब तरक्की करी, मगर चमकार्यां म्हं
आंख्यां की लई मूंद किवाड़ी, माणस नै।
ऐश अमीरी नै बदली जीवन शैल्ली
सोच्ची कोनी अगत, अनाड़ी माणस नै।
पाणी, हवा, जमीन बणा दी जहरील्ली
धरती की तासीर बिगाड़ी, माणस नै।
ढ़ोर, जिनौर, मकोड़े, कीड़े खावण म्हं
छोड्डी कोनी कसर, कबाड़ी माणस नै।
कोरोना नै कहर मचाया दुनिया म्हं
देख किसी म्हामारी बाड़ी, माणस नै।
“चौधर किसकी हो जग पै” इस चक्कर म्हं
देक्खो सोच्ची कितनी माड़ी, माणस नै।
“खड़तल” कुर्सी भी खेल्लै सै खेल निरे
वरना पूच्छै कौण, खिलाड़ी मा