सुप्रीम कोर्ट ने लॉकडाउन के दौरान दूसरे राज्यों में फंसे मजदूरों को जल्दी से जल्दी उनके घर पहुंचाने का फरमान सुनाया है। नौ जून को सुनाए अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि जिस भी राज्य में प्रवासी मजदूर फंसे हुए हैं, उन्हें 15 दिनों के अंदर अपने घर भिजवाया जाए। इसके साथ ही कोर्ट ने मजदूरों का रजिस्ट्रेशन करने और उनके रोजगार की व्यवस्था करने जैसे बिंदुओं पर केंद्र व राज्यों के लिए दिशा निर्देश जारी किए हैं। कोर्ट ने प्रवासियों के खिलाफ सभी शिकायतों व मुकदमों को वापिस लेने को भी कहा है।
जस्टिस अशोक भूषण, जस्टिस एसके कौल और जस्टिस एमआर शाह की बेंच ने आदेश सुनाते हुए कहा कि केंद्र/राज्य और केंद्रशासित प्रदेश उन प्रवासी श्रमिकों की पहचान करें, जो अपने कार्यस्थल से घर जाना चाहते हैं। कोर्ट ने सरकारों को उनकी यात्रा की व्यवस्था करने का भी आदेश दिया। कोर्ट ने कहा, ” बचे हुए 15 दिनों में सभी प्रवासियों को उनके गांव-घर तक भिजवाया जाए। प्रवासी मजदूरों के लिए काउंसलिंग सेंटर बनाए जाएं।…सभी शेष प्रवासी श्रमिकों के परिवहन की प्रक्रिया 15 दिनों में पूरी होनी चाहिए। केन्द्र सरकार श्रमिक ट्रेनों की संख्या बढ़ाए, ताकि उनको यात्रा के लिए अप्लाई करने के 24 घंटों में ही ट्रेन मिल जाए।”
अपने फैसले में कोर्ट ने मजदूरों पर आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 की विभिन्न धाराओं के तहत दर्ज मामलों को भी वापिस लेने को कहा है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उन प्रवासी कामगारों के खिलाफ सभी पुलिस शिकायतों को वापिस लिया जाए, जिन्हें अपने कार्य स्थलों से घर वापिस जाने का प्रयास करते हुए लॉकडाउन के मानदंडों का उल्लंघन करने के लिए दर्ज किया गया है।
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और राज्यों को सुव्यवस्थित तरीके से प्रवासी मजदूरों की पहचान करके सूची बनाने को भी कहा है। साथ ही, कोर्ट ने आदेश दिया है कि राज्य सरकारें मजदूरों की स्किल मैपिंग करके, यानी उनके हुनर का पता लगाकर, उन्हें अपने गृहराज्य में ही समुचित रोजगार उबलब्ध करवाएं। सरकारें प्रवासी मजदूरों की सूची बनाते समय उस काम का उल्लेख करें, जो वे तालाबंदी से पहले कर रहे थे। साथ ही, वे उनके लिए तालाबंदी के बाद की योजनाओं के बारे में भी बताएं। न्यायालय ने केंद्र और राज्यों से उन मौजूदा योजनाओं की पहचान करने को भी कहा है, जो उन प्रवासी श्रमिकों को रोजगार दे सकती हैं जो घर पहुंच चुके हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ”सभी प्रवासी श्रमिकों को पंजीकरण के माध्यम से पहचाना जाएगा। केंद्र और राज्य प्रवासियों को रोजगार देने के लिए योजनाएं प्रस्तुत करें। सभी राज्य सरकारें अपनी स्कीम कोर्ट को दें, जिसमें इस बात का जिक्र हो कि प्रवासी मजदूरों को रोजगार देने के लिए उनके पास क्या योजना है।”
आपको बता दें कि कोरोना संक्रमण के चलते पूरे देश में 24 मार्च से लॉकडाउन लगाया गया था। लॉकडाउन के कारण हो रहे उत्पीड़न तथा भोजन और रोजगार न रहने के कारण मजदूर परेशान होकर पैदल ही अपने घरों की तरफ निकल पड़े थे। हालांकि इसके बाद सरकार की तरफ से स्पेशल श्रमिक ट्रेन भी चलाई गई। लेकिन भारी अव्यवस्था, अनिर्णय और पुख्ता योजना व रणनीति के अभाव में सरकार के सारे प्रयास नाकाफी रहे तथा लाखों मजदूरों को उनके हाल पर छोड़ दिया गया। सैंकड़ों मजदूर भूख-प्यास, थकावट और दुर्घटनाओं के चलते मारे गए। सरकार की तरफ से दावा किया गया कि लाखों मजदूरों को श्रमिक ट्रेन से घर वापिस भिजवाया गया है, लेकिन यह भी सच है कि ट्रेनों में भी बदइंतजामी की वजह से कई लोगों को भूख और बीमारी के चलते जान गंवानी पड़ी थी। अब लॉकडाउन लगभग खत्म हो चुका है, लेकिन अभी भी कई मजदूर दूर-दराज के राज्यों में फंसे हैं।