महंगाई की मार देख ल्योहो रहे अत्याचार देख ल्यो जात, धर्म अर गोत के नां पैकिसी छिड़ी तकरार देख ल्यो खूब तरक्की होई देस म्हैंघट ग्ये पर रुजगार देख ल्यो रेप, नसा, नफरत, बेकारीहत्या के औजार देख ल्यो ढोंग रचैं शरधा के नां पैधर्म के ठेकेदार देख ल्यो मेहनत करैं, बांट कै खावैंइसे होवैं सरदार…