14 अधिकारियों पर नौकरी करते हुए फर्जी डिग्री लेने का आरोप
प्रदेश के मछली पालन विभाग में फर्जी डिग्री हासिल करने का बड़ा मामला सामने आया है। प्राप्त जानकारी के अनुसार, विभाग के 14 अधिकारियों ने ड्यूटी पर रहते हुए राजस्थान और तमिलनाडु के दो विश्वविद्यालयों से ज्यूलॉजी जैसे प्रक्टिकल सब्जेक्ट में फर्जी मास्टर्स डिग्रियां हासिल की हैं। हैरानी की बात है कि इस दौरान उन्होंने बिना छुट्टी लिए उन विश्विद्यालयों में जाकर न केवल परीक्षा दी, बल्कि 20-20 दिन की क्लास (पीसीपी) भी लगा ली।
प्राप्त जानकारी के अनुसार, अधिकारियों ने यह सब प्रमोशन लेने के लिए किया था, लेकिन इससे पहले ही विजिलेंस जांच में उनके फर्जीवाड़े का भेद खुल गया। अब विजिलेंस ने इन 14 अधिकारियों और फर्जी डिग्री देने वाले दोनों विश्वविद्यालयों के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया है।
पंचकूला में विजिलेंस इंस्पेक्टर सुरेश कुमार की शिकायत पर दर्ज इस केस में पलवल के तत्कालीन मत्स्य अधिकारी धर्मेंद्र सिंह, जल-कृषि अनुसंधान एवं प्रशिक्षण संस्थान हिसार के तत्कालीन मत्स्य अधिकारी जगदीश चंद्र, उप निदेशक एवं गुरुग्राम के तत्कालीन मत्स्य अधिकारी संजय यादव, फतेहाबाद के तत्कालीन मत्स्य अधिकारी राजेश बैनीवाल, रोहतक के तत्कालीन ब्लॉक मत्स्य अधिकारी अमित सिंह, सिरसा के तत्कालीन मत्स्य अधिकारी बृजमोहन शर्मा, भिवानी के तत्कालीन व्यवसायिक मत्स्य लिपिक कुलदीप सिंह, अम्बाला के तत्कालीन मत्स्य अधिकारी रवि बठला, भिवानी के तत्कालीन मत्स्य अधिकारी बलबीर सिंह, हिसार के तत्कालीन मत्स्य अधिकारी एवं मत्स्य फार्म प्रबंधक सुरेंद्र ठुकराल, नारनौल के तत्कालीन मत्स्य अधिकारी सिकंदर सिंह तथा विभाग के रिटायर्ड उप निदेशक राजेंद्र कुमार और तत्कालीन उप निदेशक महेंद्र सिंह सहित विनायक मिशन यूनिवर्सिटी, तमिलनाडु और आईएएसई डीम्ड यूनिवर्सिटी, राजस्थान को आरोपी बनाया गया है।
प्राप्त जानकारी के अनुसार, विजिलेंस जांच में आरोपी अधिकारियों और विश्वविद्यालयों ने विरोधाभासी बयान दिए, जिससे इनके फर्जीवाड़े का भंडाफोड़ हो सका। पूछताछ के दौरान अधिकारियों ने बताया कि उन्होंने विवि द्वारा संचालित दूरस्थ शिक्षा केंद्रों पर पढ़ाई की थी और वहीं परीक्षा दी थी, जबकि विश्वविद्यालय ने कहा कि उनकी परीक्षा यूनिवर्सिटी कैंपस में हुई थी।
उन्हें शिक्षा संबंधी सभी कार्यों और पर्सनल कंडक्ट प्रोग्राम (पीसीपी) के तहत 20 दिन की अनिवार्य प्रेक्टिकल क्लास के लिए भी यूनिवर्सिटी कैंपस में ही आना पड़ा था।
यही नहीं, आरोपितों ने पीसीपी और परीक्षा के दौरान छुट्टी न लेकर भी अपने लिए मुसीबत खड़ी कर ली। उन्होंने विवि द्वारा हरियाणा में संचालित केंद्रों पर ही 20 दिन की अनिवार्य क्लास अटेंड्स करने की बात करके खुद को बचाने की कोशिश की, लेकिन विभाग से इस अवधि का कोई अवकाश नहीं लिया। कुछ ने परीक्षा के दौरान 4 से 7 दिन का अवकाश लिया था।
वहीं, कुछ ने तो परीक्षा के लिए भी छुट्टी नहीं ली। एक आरोपी महेंद्र सिंह ने तमिलनाडु में यूनिवर्सिटी कैंपस में जाकर परीक्षा देने की बात कही, जबकि इन्होंने कोई अवकाश नहीं लिया।
विजिलेंस की टीम को यूनिवर्सिटी ग्रांड कमिशन से जो जानकारी मिली, वह भी काफी चौकाने वाली रही। यूजीसी के अनुसार, विनायका (डीम्ड) यूनिवर्सिटी तमिलनाडु के पास डिस्टेंस एजुकेशन प्रोग्राम चलाने की मान्यता साल 2012 तक ही थी। इसे मास्टर ऑफ साइंस (ज्यूलॉजी) और अन्य प्रोग्राम की मान्यता 2011-2012 व 2013-2014 तक दी गई थी।
आईएएसई डीम्ड यूनिवर्सिटी को तो यूजीसी ने किसी तरह का टेक्निकल कोर्स चलाने की अनुमति ही नहीं दी थी। हालांकि डिस्टेंस एजुकेशन काउंसिल की ओर से उसे इसकी अनुमति 2005 तक और फिर 2007-08 के सत्र तक के लिए दी थी। जबकि दोनों ही विश्वविद्यालयों ने कई लोगों को उस अवधि की डिग्रियां दी हैं, जिसकी मान्यता ही उनके पास नहीं थीं।
विजिलेंस ने अपनी जांच में पाया कि आईएएसई डीम्ड यूनिवर्सिटी से धर्मेंद्र सिंह व कुलदीप सिंह ने 2013-2014 और 2014-2015 के बीच हरियाणा में संचालित शिक्षा केंद्र तथा संजय यादव ने बिहार के पटना में संचालित केंद्र पर शिक्षा प्राप्त करके डिग्री प्राप्त की थी।
इसी तरह संजय व सिकंदर सिंह ने भी इसी विश्विद्यालय से 2004-2005 तथा 2005-2006 के शैक्षिक सत्रों के दौरान हरियाणा में संचालित केंद्र से पढ़ाई करके डिग्री ली। जाहिर है कि इस समयावधि में यह विश्वविद्यालय दूरस्थ शिक्षा कार्यक्रम चलाने के लिए ही अधिकृत नहीं था।
जांच में यह भी खुलासा हुआ कि आरोपी अधिकारियों ने अपना माइग्रेशन सर्टिफिकेट तक विश्वविद्यालय में जमा नहीं कराया, जबकि यूजीसी और डिस्टेंस एजुकेशन काउंसिल के नियमों के अनुसार किसी भी नई यूनिवर्सिटी में एडमिशन के लिए माइग्रेशन सर्टिफिकेट देना अनिवार्य होता है।
आपको बता दें कि हरियाणा के सरकारी अधिकारियों द्वारा फर्जी डिग्री हासिल करने का यह अकेला मामला नहीं है। इससे पूर्व भी कई वरिष्ठ आईएएस और एचसीएस अधिकारियों पर एमडीयू रोहतक से रेगुलर पढ़ाई करते हुए लॉ की डिग्री लेने के आरोप लग चुके हैं। हालांकि हाई प्रोफाइल मामला होने के कारण तब कोई कार्यवाही नहीं हो पाई थी।