राम मोहम्मद सिंह आज़ाद…. ये नाम है एक ऐसे देशभक्त का, जिसने शेर की माँद में घुसकर देश के दुश्मनों को सबक सिखाया और हंसते हंसते फांसी के फंदे पर झूल गया। ….मात्र 19 साल की उम्र में जिससे प्रतिज्ञा ली, कि भारत की जनता पर जुल्म ढाने वाले ज़ालिमों को उनके अपने देश इंग्लैंड में जाकर सज़ा देगा। आप कहेंगे कि यह भारत माँ का कौन सा लाल है, जो राम भी है, मोहम्मद भी है, सिंह भी है और आज़ाद भी, तो इस देशभक्त शहीद का नाम है ऊधम सिंह, जिन्होंने जलियांवाला बाग हत्याकाण्ड के 21 साल बाद इस दरिंदगी के असली गुनाहगार माइकल ओ’ ड्वायर को इंग्लैंड में जाकर गोलियों से भून डाला।
असल में 13 अप्रैल 1919 को वैशाखी के दिन पंजाब के जलियांवाला बाग में, निहत्थी जनता पर अंग्रेजों ने गोलियाँ चलवा दी थी। इस गोलीकाण्ड में हज़ारों लोग घायल और शहीद हुए थे। गोली चलाने का हुक्म ‘जनरल एडवार्ड हैरी डायर’ नामक अंग्रेज अफ़सर ने दिया था किन्तु इसके पीछे पंजाब के तात्कालीन गवर्नर जनरल रहे ‘माइकल ओ’ ड्वायर’ का हाथ था। ब्रिटिश सरकार इस हत्याकाण्ड के माध्यम से पंजाब की जनता को आतंकित करना चाहती थी। ‘ओ’ ड्वायर’ ने ‘जनरल डायर’ की कार्रवाई का अन्त तक न सिर्फ समर्थन किया था, बल्कि उसका बचाव भी किया था।
इस जघन्य हत्याकांड के समय 26 दिसम्बर, 1899 को पंजाब के सुनाम में जन्मे ऊधम सिंह भी बाग में मौजूद थे। उस समय उनकी उम्र मात्र 19 साल थी। उन्होंने इस खूनी दृश्य को अपनी आँखों से देखा। गौरी हुकूमत द्वारा रचे गए इस कत्लेआम से क्षुब्ध होकर इस युवा ने उसी समय इसके ज़िम्मेदार पंजाब के तात्कालीन गवर्नर को मौत के घाट उतारने का फैसला ले लिया।
जलियांवाला गोलीकाण्ड के क़रीब 21 साल बाद, 13 मार्च 1940 को लन्दन के एक हॉल में उन्होंने ‘माइकल ओ’ ड्वायर’ को गोलियों से भून दिया। हाई सिक्योरिटी वाले उस कार्यक्रम में वे एक मोटी किताब के पन्नों के बीच रिवाल्वर छिपा कर ले गए थे। ‘ओ’ ड्वायर’ की हत्या के बाद उधम सिंह भागे नहीं बल्कि उन्होंने अपनी गिरफ़्तारी दी। उधम सिंह शहीद भगतसिंह से प्रभावित थे और उन्हें अपना आदर्श मानते थे। मुकदमे के दौरान उधम सिंह ने कहा, “मेरे जीवन का लक्ष्य क्रान्ति है। क्रान्ति जो हमारे देश को स्वतन्त्रता दिला सके। मैं अपने देशवासियों को इस न्यायालय के माध्यम से यह सन्देश देना चाहता हूँ कि देशवासियो! मैं तो शायद नहीं रहूँगा। लेकिन आप अपने देश के लिए अन्तिम सांस तक संघर्ष करना, अंग्रेजी शासन को समाप्त करना और ऐसी स्थिति पैदा करना कि भविष्य में कोई भी शक्ति हमारे देश को गुलाम न बना सके। हिन्दुस्तान ज़िन्दाबाद! ब्रिटिश साम्राज्यवाद का नाश हो!”
उधम सिंह हिन्दू, मुस्लिम और सिख जनता की एकता के कड़े हिमायती थे इसीलिए उन्होंने अपना नाम बदलकर ‘राम मोहम्मद सिंह आज़ाद’ रख लिया था। वे इसी नाम से पत्र-व्यवहार किया करते थे और यही नाम उन्होंने अपने हाथ पर भी गुदवा लिया था। उन्होंने वसीयत की थी कि फाँसी के बाद उनकी अस्थियों को तीनों धर्मों के लोगों को सोंप दिया जाये। 31 जुलाई 1940 को यह जांबाज देधभक्त लंदन की पेण्टोविले जेल में फाँसी पर लटका दिया गया।
सन् 1974 में उधम सिंह की अस्थियों को भारत लाया गया और उनकी इच्छा के अनुरूप उन्हें हिन्दू, मुस्लिम और सिख समुदायों के प्रतिनिधियों को सौंप दिया गया। हिन्दुओं ने अस्थि विसर्जन हरिद्वार में किया, मुसलमानों ने फतेहगढ़ मस्ज़िद में अन्तिम क्रिया की और सिखों ने करन्त साहिब में अन्त्येष्टि क्रिया संपन्न की।
आज जब देश मे जातिवाद और साम्प्रदायिकता का ज़हर घोलने की कोशिशें अपने चरम पर हैं, तो ऐसे में शहीद उधम सिंह का जीवन भटके हुए देशवासियों को आपसी प्यार -मोहब्बत और इंसानियत का नया रास्ता दिखा सकता है। आइये, भेदभाव और नफरत के खिलाफ मानवता की अलख जगाएं। यह हमारे शहीदों को हमारी सच्ची श्रद्धांजलि होगी।