वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन (डब्ल्यूएचओ) से लेकर दुनियाभर की सरकारें तक मानती हैं कि कोरोना वायरस के संक्रमण से बचने के लिए साबुन से बार-बार हाथ धोने ज़रूरी हैं। इस के प्रचार पर करोड़ों-अरबों रुपए विज्ञापनों पर खर्च किए जा रहे हैं। लेकिन एक सच्चाई यह भी है कि दुनिया की 40 फीसदी आबादी के पास आज भी साबुन और पानी से हाथ धोने की सुविधा नहीं है। यह जानकारी हाल ही में रिलीज हुई यूनिसेफ और डब्ल्यूएचओ की एक रिपोर्ट में सामने आई है।
15 अक्टूबर को ग्लोबल हैंड वॉशिंग डे के अवसर पर प्रकाशित यूनिसेफ और डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट 2019 के अनुसार, दुनियाभर में 300 करोड़ लोगों के घर पर हाथ धोने के लिए संसाधन नहीं हैं। कोरोना वायरस के खतरे के बीच यह काफी बड़ी संख्या है, जिसके पास हाथ धोने के लिए साफ पानी और साबुन तक नहीं है।
गौरतलब है कि भारत में भी एक बड़ी आबादी के पास हाथ धोने की समुचित सुविधा का न होना काफी चिंता की बात है। रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत में केवल 60 फीसदी परिवारों के पास ही साबुन से हाथ धोने की सुविधा है। ग्रामीण इलाकों में तो यह सुविधा न के बराबर या बहुत ही कम है। इससे पहले, राष्ट्रीय सैंपल सर्वे 2019 की रिपोर्ट के आंकड़ों से भी यह बात सामने आई थी कि 25.3 फीसदी ग्रामीण परिवार और 56 फीसदी शहरी परिवार ही खाना खाने से पहले साबुन या डिटरजेंट से अपने हाथ धोते हैं। हमारे यहां खाना खाने से पहले 2.7 फीसदी लोग हाथ धोने के लिए राख, मिट्टी या फिर रेत का इस्तेमाल करते हैं। पूरी दुनिया की बात करें, तो पांच में से तीन व्यक्तियों के पास ही हाथ धोने की बुनियादी सुविधाएं हैं।
यूनिसेफ के भारतीय प्रतिनिधि डॉ. यासमीन अली हक का कहना है ग्लोबल हैंड वॉशिंग डे मनाने का मुख्य लक्ष्य लोगों को यह समझाना है कि हाथ धोना बेहद ज़रूरी है और सिर्फ हाथ धोने से ही कई बीमारियों को खत्म किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि कोरोना-संक्रमण के फैलाव को देखते हुए यह याद रखना बेहद ज़रूरी हो गया है कि हाथ धोना अब व्यक्तिगत पसंद का मामला नहीं, बल्कि सामाजिक अनिवार्यता है। अच्छी तरह से हाथ धोकर कोरोना वायरस और दूसरे इंफेक्शन से खुद को बचाया जा सकता है। इसके लिए यह सबसे सस्ती प्रक्रिया है।