कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और गांधी परिवार के संकट मोचक अहमद पटेल नहीं रहे। कोरोना संक्रमण के चलते उन्होंने 25 दिसंबर को तड़के साढ़े तीन बजे गुरुग्राम के मेदान्ता अस्पताल में अंतिम सांस ली। वे 71 वर्ष के थे। कांग्रेस के तालुका पंचायत प्रमुख से सियासी सफर शुरू करने वाले अहमद पटेल आठ बार संसद के सदस्य रहे। उन्हें सियासी मंच पर कांग्रेस के ‘चाणक्य’ के रूप में देखा जाता था।
आपातकाल के चलते 1977 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पूरे मुल्क में काफी खराब दौर से गुजर रही थी। इसकी वजह से कांग्रेस यह चुनाव बुरी तरह हार गई थी। उस समय भी अहमद पटेल उन मुट्ठीभर कांग्रेसी नेताओं में शामिल थे, जो संसद पहुंचे थे। अहमद पटेल ने 1977 का लोकसभा चुनाव 26 साल की उम्र में लड़ा था। वे भरुच से लोकसभा चुनाव जीतकर तब के सबसे युवा सांसद बने थे। उनकी जीत ने इंदिरा गांधी समेत अधिकतर राजनीतिक पंडितों को चौंका दिया था।1980 में कांग्रेस की सत्ता में वापसी के बाद जब इंदिरा गांधी ने अहमद को कैबिनेट में शामिल करना चाहा, तो उन्होंने संगठन में काम करने को प्राथमिकता दी और फिर सियासी सफर में पीछे मुड़ कर नहीं देखा। उन्होंने गांधी परिवार की तीन पीढ़ियों के साथ काम किया और उनके सबसे करीबी बनकर रहे, लेकिन कभी भी मंत्री बनना पंसद नहीं किया।
अहमद पटेल हर मुश्किल घड़ी में गांधी परिवार के साथ खड़े रहे और हमेशा कांग्रेस के संकट मोचक के तौर पर अपनी भूमिका निभाते रहे। वो, सोनिया गांधी के राजनीतिक सलाहकार अहमद पटेल ही थे जिन्होंने सोनिया को भारतीय राजनीति में स्थापित करने में अहम् किरदार निभाया।
गौरतलब है कि गुजरात के भरूच जिले के अंकलेश्वर में 21 अगस्त 1949 को पैदा हुए अहमद पटेल तीन बार लोकसभा सांसद और पांच बार राज्यसभा सांसद रहे। अहमद पटेल के पिता मोहम्मद इशकजी पटेल कांग्रेस के नेता और भरूच की तालुका पंचायत के सदस्य थे। अहमद पटेल ने अपने पिता की उंगली पकड़कर राजनीति सीखी और पंचायत के प्रधान, यानी सरपंच बने। यह भी महत्वपूर्ण है कि खुद राजनीति के महारथी होने के बावजूद पटेल ने अपने बच्चों को सियासत से दूर ही रखा।
अहमद पटेल को 10 जनपथ के चाणक्य के तौर देखा जाता था। कांग्रेस के सबसे ताकतवर गांधी परिवार के करीबी होते हुए भी वे ‘लो प्रोफ़ाइल’ में रहना पसंद करते थे। कांग्रेस संगठन ही नहीं, बल्कि अलग-अलग सूबों से लेकर केंद्र तक में बनने वाली पार्टी की सरकारों में कांग्रेस नेताओं का भविष्य भी अहमद पटेल तय करते थे। यूपीए सरकार के दौरान पार्टी की बैठकों में सोनिया जब यह कहतीं कि वे सोचकर बताएंगी, तो मान लिया जाता था कि वे अहमद पटेल से सलाह लेकर फैसला करेंगी। यहां तक कि यूपीए-1 और यूपीए-2 के ढेर सारे फैसले पटेल की सहमति के बाद ही लिए गए। इतना ही नहीं, कांग्रेस की कमान भले ही गांधी परिवार के हाथों में रही हो, लेकिन अहमद पटेल के बिना पार्टी में पत्ता भी नहीं हिलता था। यह भी अतिश्योक्ति नहीं होगी कि कांग्रेस का रिमोट उन्हीं के पास रहता था।
निस्संदेह अहमद पटेल के रूप में देश ने राजनीति का एक बड़ा रणनीतिकार खो दिया है। उनके निधन से कांग्रेस को ही नहीं, गांधी परिवार को भी गहरी क्षति पहुंची है।