सकल घरेलू उत्पाद, यानी जीडीपी किसी देश की खुशहाली का आधार हो, यह जरूरी नहीं है। इस तरह का दावा विश्व बैंक की एक ताजा रिपोर्ट में किया गया है। यह रिपोर्ट आईसीपीए (इंटरनेशनल कंपटीशन प्रोग्राम) के तहत 176 देशों के आंकड़ों पर आधारित है। ये आंकड़े 2017 के हैं।
आंकड़ों के मुताबिक, दुनिया में सबसे ज्यादा प्रति व्यक्ति आय लक्जमबर्ग की थी, जो 1.13 लाख डॉलर, यानी करीब 83 लाख रुपए थी। इसके बाद कतर और सिंगापुर की जीडीपी, 90 हज़ार डॉलर, अर्थात करीब 66 लाख रुपए थी। इस कड़ी के अगले देशों में आयरलैंड, बरमूडा, केमैन्स द्वीप, स्वीटजरलैंड, सयुंक्त अरब अमीरात, नॉर्वे और ब्रुनेई का नंबर था। देखने की बात यह है कि इनमें दुनिया की केवल आधा फीसदी, यानी 3.80 करोड़ आबादी ही रहती है, जबकि दुनिया की आबादी 780 करोड़ है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि जीडीपी को किसी देश की वास्तविक सम्पत्ति का पैमाना समझने में सावधानी बरतनी होगी। इस रिपोर्ट के मुताबिक, दुनिया के 70 देश उच्च आय वर्ग में हैं। इनमें अकेले उत्तर अमेरिका का विश्व जीडीपी में 17.8 फीसदी योगदान है, जबकि वहां दुनिया की महज पांच फीसदी आबादी रहती है। दूसरी ओर, दक्षिण एशिया में दुनिया की 23.9 प्रतिशत आबादी रहती है, लेकिन इसका विश्व जीडीपी में योगदान 8.5 फीसदी ही है।