– भारत में लगभग 14.5 करोड़ किसान परिवार हैं।
– करीब 41.49 फीसदी लोगों का रोजगार खेती है। यानी, रोजगार में खेती की हिस्सेदारी अभी भी सबसे अधिक है।
– 2015-16 के आंकड़ों के अनुसार, 68 फीसदी किसानों के पास एक हैक्टेयर से भी कम जमीन है।
– 2016 में प्रकाशित नाबार्ड की रिपोर्ट के मुताबिक, एक कृषक परिवार की औसत मासिक आय 8931 रुपए है।
– नाबार्ड द्वारा 2015-16 में तैयार की गई एक रिपोर्ट के अनुसार, आधे से अधिक, यानी करीब 52.5 फीसदी किसान परिवार कर्ज के बोझ तले दबा है। हर किसान परिवार पर औसतन एक लाख रुपए से अधिक का कर्ज है।
– सेंटर फॉर डब्ल्यूटीओ स्टडीज की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में 2018 में प्रति किसान करीब 20 हजार रुपए सालाना सब्सिडी दी गई थी, जबकि अमेरिका में 2016 में ही 45.22 लाख रुपए प्रति किसान सब्सिडी दी जा रही थी।
– एनसीआरबी की 2019 की एक रिपोर्ट के मुताबिक, खेती पर निर्भर 28 व्यक्ति हर रोज आत्महत्या कर रहे हैं।
– भारत में करीब 200 तरह की फसलें होती हैं, जिनमें से सिर्फ 23 फसलों के लिए ही सरकार एमएसपी तय करती है।
– केरल सरकार ने 16 सब्जियों के भी न्यूनतम समर्थन मूल्य तय किए हैं। इनके लिए लागत से 20 फीसदी अधिक कीमत का प्रावधान किया गया है।
– पूरे देश में केवल 6 प्रतिशत फसल ही एमएसपी पर बिक पाती है। बाकी 96 फीसदी फसल अभी भी बाजार के हवाले है और समुचित दाम न मिल पाने के कारण इसको पैदा करने वाले किसान काफी बदहाली के शिकार हैं।
– हरियाणा और पंजाब में गेहूं और धान की फसलें सबसे अधिक मंडियों में बिकती हैं, जिसकी सबसे बड़ी खरीददार सरकार होती है। इसलिए यहां किसान अपनी फसल एमएसपी पर बेच पाते हैं।
– पंजाब में सरकारी संस्था पंजाब एग्रो फूड, ग्रेन इंडस्ट्रीज कॉर्पोरेशन सहित निजी कंपनियां जौ, आलू, मटर, टमाटर, मिर्च, सूरजमुखी, ब्रोकली, स्वीट कॉर्न और बेबी कॉर्न जेसीसी फसलों के लिए कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग करवाती हैं। किसानों के अनुसार, यहां कंपनियां खराब क्वालिटी बता कर या तो तयशुदा दामों में कटौती कर देती हैं या काफी सारा माल वापिस कर देती हैं। इसका नुकसान किसान को उठाना पड़ता है। प्राप्त जानकारी के अनुसार, महाराष्ट्र, कर्नाटक सहित और भी कई राज्यों में कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के ऐसे ही अनुभव हैं। हां! हिमाचल में सेब के कुछ किसान अवश्य कहते हैं कि उन्हें फायदा हुआ है। पर सब आवश्यक खाद्य पदार्थों में नहीं आता।