सारी दुनिया। सप्तक रंगमंडल और पठानिया वर्ल्ड कैम्पस द्वारा आयोजित ‘संडे थियेटर’ में इस रविवार नाट्यप्रेमियों ने दो नाटकों, ‘ड्रॉन मैन’ और ‘सर्जरी’ का लुत्फ उठाया। दुनिया के सर्वश्रेष्ठ नाटककारों में से एक एंटोन चेखोव के इन व्यंग्य नाटकों ने दिनों-दिन खत्म हो रही मानवीय संवेदनाओं पर गहरे कटाक्ष किए। स्थानीय रंगकर्मियों की पहल पर 17 जनवरी से शुरू हुए ‘संडे थियेटर’ की यह छठी प्रस्तुति थी।
पहले नाटक ‘ड्रॉन मैन’ में दिखाया गया कि किस तरह हम लोगों के मरने और तड़पने में भी मज़ा और आनंद ढूंढ लेते हैं। नाटक में एक ऐसे व्यक्ति की कहानी है जो पानी में डूबकर मरने का खतरनाक करतब दिखाकर अपनी आजीविका चलाने पर मजबूर है। दुःख की बात यह है कि उसे तड़प-तड़प कर मरते हुए देखने वाले दर्शक भी मिल जाते हैं। डूबने के करतब दिखाने वाले उस इंसान की त्रासदी यह है कि उसे तैरना तक नहीं आता। वह खुद को बचाने के लिए एक व्यक्ति को पैसे देता है, जबकि उसे खुद पता नहीं होता कि वह उसे बचाने के लिए सही समय पर पहुंचेगा भी या नहीं। आखिर में, लेखक उसके डूबने और तड़पने के खेल में इतना तल्लीन हो जाता है कि उसे बचाने वाले व्यक्ति को बुलाना भूल जाता है और ड्रॉन मैन डूब जाता है।
हास्य-व्यंग्य से भरपूर दूसरे नाटक ‘सर्जरी’ में दिखाया गया कि किस तरह किसी का दर्द भी हमारे हंसने का कारण बन जाता है। नाटक में दांत के दर्द से पीड़ित एक व्यक्ति डॉक्टर के पास जाता है। लेकिन वहां डॉक्टर का कंपाउंडर मिलता है जो उसके दांत को निकालना अपनी प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लेता है, जबकि उसे दांत निकालने का कोई अनुभव नहीं होता। इस दौरान अनेक ऐसी परिस्थितियां बनती हैं कि दर्शक हंसी से लोटपोट हो जाते हैं। सूत्रधार द्वारा बोला गया यह वाक्य नाटक पर सटीक बैठता है कि “इंसान सभी प्राणियों में सिर्फ इसलिए सर्वश्रेष्ठ है, क्योंकि वह हँस सकता है। लेकिन वह किस-किस बात पर हंसता है, यह अचरज का विषय है। दर्द, यानी पेन हंसने का विषय नहीं है, लेकिन लोग हंसते हैं, खासतौर से तब जब वह किसी दूसरे का हो!”
सप्तक के अध्यक्ष विश्वदीपक त्रिखा ने बताया कि दिल्ली के कैलाश जोशी द्वारा प्रस्तुत इन नाटकों का निर्देशन अंकित सत्ती ने किया था। ड्रॉन मैन में राहुल सक्सेना ने डूबते हुए व्यक्ति का जीवंत अभिनय किया। नागेश गोला ने नाटककार चेखव और जितेन्द्र सिंह परिहार ने पुलिसकर्मी की भूमिका निभाई। दूसरे नाटक ‘सर्जरी’ में शैलेश कुमार ने दांत-दर्द से पीड़ित पादरी और अंकित सत्ती ने कंपाउंडर की प्रभावशाली भूमिकाएं अदा की। संगीत राकेश सिंह भदौरिया और प्रकाश संयोजन अंकित सत्ती व राहुल सक्सेना का रहा।
संस्था के सचिव अविनाश सैनी के मुताबिक, नगर सुधार मंडल, रोहतक के पूर्व चेयरमैन सुशील शर्मा नाट्य संध्या के मुख्यातिथि एवं समाजसेवी भुवनेश विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित रहे। उन्होंने कहा कि विश्वदीपक त्रिखा की अगुवाई में सप्तक की यह पहल शहर के संस्कृतिप्रेमियों को नई ऊर्जा प्रदान कर रही है। इसकी जितनी प्रशंसा की जाए, कम है। इस अवसर पर द ट्रिब्यूनल के ब्यूरो चीफ सुनित धवन, साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित रामफल चहल, राघवेंद्र मलिक, पठानिया पब्लिक स्कूल के निदेशक अंशुल पठानिया, धर्मसिंह अहलावत, अनिल भाटिया, डॉ. दीपक भारद्वाज, वीरेन्द्र फौगाट, डॉ. हरीश वशिष्ठ सहित सप्तक के शक्ति सरोवर त्रिखा, विकास रोहिल्ला, डॉ. सुरेंदर शर्मा, यतिन वधवा, अनिल शर्मा, महक, रिंकी, पावनी सहित अनेक नाटक प्रेमी उपस्थित थे। मंच संचालन सुजाता रोहिल्ला ने किया।