Mental health challenges during Covid-19
– डॉ. मधु आनंद
कोविड-19 ने पिछले थोड़े से समय (14 महीने) में ही सामान्य मानव जनजीवन को अस्त-व्यस्त कर दिया है। लोगों में बढ़ती हुई चिंता, क्रोध, भय तथा दुख से जुड़े व्यवहार को मनोवैज्ञानिक तथा मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने सामान्य व्यवहार माना है। जैसे-जैसे यह संकट की घड़ी लंबी हो रही है (जिसमें कि लोगों को सब काम-धंधे छोड़कर घरों के अंदर रहना पड़ रहा है), तो वित्तीय अनिश्चितता तथा एक अनजाना सा डर लोगों को मानसिक बीमारियों की ओर अग्रसर कर रहा है। इनमें से टेंशन (तनाव), डिप्रेशन (अवसाद), एंग्जायटी (चिंता), डिस्ट्रेस (पीड़ा) और इनसॉम्निया (अनिद्रा) इत्यादि मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी अधिकतर समस्याएं आबादी के हर हिस्से में मिल रही हैं। यदि हम मेंटल हेल्थ से जुड़ी इन चुनौतियों को जान लें तो जागरूकता (awareness) तथा शिक्षा (education) के माध्यम से आम आदमी के दिल और दिमाग तक पहुंचा जा सकता है।
इस प्रकार की मानसिक परेशानियों से घिर जाने के बाद व्यक्ति में आत्मविश्वास (self confidence), भरोसा (trust), जीवन संतुष्टि (life satisfaction) तथा स्वयं को पहचानने की क्षमता में कमी आने लगती है। मनोवैज्ञानिकों का इस विषय में कहना है कि व्यक्तियों को पूर्ण रूप से नींद लेनी चाहिए, भरपेट खाना खाना चाहिए, संतुलित आहार लेना चाहिए तथा इसके साथ ही शारीरिक रूप से सचेत रहना चाहिए, जिसमें व्यायाम आदि करना भी शामिल है। आमतौर पर देखा गया है कि लोगों में डिप्रेशन हो जाता है और मानसिक संतुलन बिगड़ जाता है। उस समय आत्म करुणा अर्थात self compassion की कमी हो जाती है, जो व्यक्ति को life dis-satisfaction की ओर ले जाती है। कभी-कभी तो हम चिंतन भी नहीं कर पाते और ऐसी परिस्थिति (यानी, सामाजिक और वित्तीय समस्याएं तथा नकारात्मक मनःस्थिति) हमें बुरी तरह से घेर लेती है, जैसी वर्तमान समय में कुछ-कुछ बनने जा रही है। ऐसे में हमें किसी भी सूरत में मानसिक संतुलन नहीं खोना चाहिए, अपितु पूरे धैर्य के साथ खुद को यह विश्वास दिलाना है कि यह परिस्थिति सदा ही नहीं बनी रहेगी, यानी यह समय भी बीत जाएगा (this time will also go)।
हमें याद रखना है कि अब हमें कोविड-19 के साथ ही जीना है, और सभी सावधानियां रखते हुए जिज्ञासा बनाकर जीना है। मनोवैज्ञानिकों का एक सुझाव यह भी है कि महामारी से जुड़ी खबरें, मीडिया रिपोर्ट्स तथा टीवी चैनलों व सोशल मीडिया के कार्यक्रमों को बार-बार न देखें। इसके लिए दिन का कुछ समय ही सुनिश्चित करें और वही चैनल देखें जो आपको विश्वसनीय सूचना प्रदान करता है। दूषित साधनों द्वारा दी गई सूचनाएं कहीं न कहीं हमारे माइंडसेट को बदलती हैं और हमें नकारात्मक सोचने पर मजबूर करती हैं।
इसके अतिरिक्त, इस कठिन समय में अपनी दिनचर्या में से कुछ समय निकालकर पुराने मित्रों व रिश्तेदारों से संपर्क करें, जिनसे अन्यथा बातचीत करने का समय नहीं निकाल पाते। यही नहीं, घर में बड़े-बूढ़ों के साथ बैठकर बातचीत करने का समय भी निकालना चाहिए। साथ ही, बच्चों को चुटकुले आदि सुनाएं और उनके साथ खेलें। कुछ समय सेल्फ जॉक, यानी मनगढ़ंत कहानियां व बातें करने में बिताएं। इस समय हम अपने बच्चों में छिपी हुई प्रतिभाओं अर्थात स्किल्स को निखारने के लिए उनसे कुछ रचनात्मक (creative) काम भी करवा सकते हैं।
सारांश में यही कहा जा सकता है कि इस समय हमें अपने भीतर के डर को निकाल कर सकारात्मक और रचनात्मक चीजों पर ध्यान केंद्रित करना होगा। अपनी सुरक्षा (सेफ्टी) को सुनिश्चित (इंश्योर) करना ही आज की सबसे बड़ी जरूरत है।
– डॉ. मधु आनंद (सेवानिवृत्त प्रोफेसर),मनोविज्ञान विभाग, म. द. विश्वविद्यालय, रोहतक।