2020 और 2021 में कोरोना महामारी ने हमारे कई अज़ीज़ों को हमसे छीन लिया। इसी फेहरिश्त में वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक, चिंतक तथा ज्ञान विज्ञान आंदोलन के नेता डॉ. महावीर नरवाल का नाम भी शामिल है।उन्होंने 9 मई की शाम को रोहतक के पोजिट्रोन हॉस्पिटल में अंतिम सांस ली। ऑक्सीजन लेवल के कम होने की वजह से उन्हें हॉस्पिटल में भर्ती करवाया गया था, जहां डॉक्टरों की भरपूर कोशिशों के बावजूद उन्हें बचाया नहीं जा सका।
सच को करीब से जानने के बावजूद सच में यकीन नहीं हो रहा कि उन-सा हौसले वाला और जिंदादिल इंसान कोविड जैसी बीमारी से जंग कैसे हार सकता है! उस इंसान ने जवानी में पत्नी को खो दिया, पर हौसला नहीं हारा और दोनों बच्चों को मां-बाप का प्यार देते हुए पाला। एमरजेंसी में सत्ता से टकराने पर पुलिस की लाठियां खाईं, परंतु अन्याय का विरोध करना नहीं छोड़ा। बिना किसी कुसूर के जवान बेटी को जेल की सलाखों में यातना झेलते देखा, फिर भी डटकर खड़ा रहा और उस पर गर्व करते हुए उसे पीछे नहीं हटने की ताकत देता रहा। ऐसा इंसान इस कदर अचानक बिछुड़ सकता है, यह सचमुच नाकाबिले यकीन और नाकाबिले बर्दाश्त है।
बेहद संघर्षशील, मिलनसार और मानवीय संवेदनाओं से परिपूर्ण डॉ. नरवाल ने हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार से एमएससी व पीएचडी (1977 में) की थी। सन 1978 में वे वहीं पर सीनियर प्लांट ब्रीडर के पद पर नियुक्त हो गए और गेहूं और बाजरा की फसलों पर अनेक महत्वपूर्ण शोघ किए। डॉ. नरवाल छात्र जीवन से ही विद्यार्थी आंदोलन से जुड़ गए थे। नौकरी के दौरान भी वे शिक्षक संघ के नेता रहे। सेवानिवृत्ति के बाद तो वे पूर्णरूप से समाज सुधार के कामों में जुटे रहे। इस तरह वे जीवनपर्यंत छात्रों, कर्मचारियों, समाज के दबे-कुचले तबकों और आम नागरिकों के हितों, उन के अधिकारों तथा न्याय के लिए संघर्ष करते रहे। सन 1975 में एमरजेंसी के दौरान लोकतांत्रिक मूल्यों की बहाली के लिए वे कई माह जेल में रहे। उनकी बेटी नताशा नरवाल भी वर्तमान सरकार की नीतियों का विरोध करने के आरोप में UAPA के तहत पिछले 9 माह से तिहाड़ जेल में बन्द हैं। उन्हें पिता के संस्कार और अंतिम क्रियाओं के समापन हेतु दिल्ली हाई कोर्ट से बमुश्किल 3 सप्ताह की अंतरिम जमानत मिल पाई है। अंतिम समय में वह अपने पिता से मिलकर दो बात भी नहीं कर पाई।
कृषि वैज्ञानिक और स्वयं एक जागरूक किसान होने के नाते डॉ. नरवाल हाल ही में पास हुए कृषि कानूनों को किसान विरोधी मानते थे तथा इनके विरुद्ध चल रहे किसान आंदोलन के हिमायती थे। रोहतक में आंदोलन को मजबूती देने के लिए उन्होंने अलग-अलग स्थानों पर सेमिनारों, सभाओं, धरने-प्रदर्शनों आदि के आयोजन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। फरवरी 2016 में हुई आरक्षण हिंसा के बाद पीड़ितों को न्याय दिलाने तथा आपसी भाईचारे को बनाए रखने के लिए भी डॉ. नरवाल ने अथक प्रयास किए थे। इसके लिए उन्होंने अन्य लोगों के साथ मिलकर नागरिक एकता एवं सद्भावना मंच का गठन किया और नागरिकों में विश्वास बहाली, मानसिक रूप से टूट चुके लोगों को हौसला देने तथा ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति को रोकने की दिशा में अनेक कदम उठाए।
डॉ. महावीर ने 90 के दशक में प्रदेश में चले साक्षरता अभियान में भी नेतृत्वकारी भूमिका निभाई थी। वे अपने अंतिम समय तक हरियाणा के समाज को शिक्षित और जागरूक बनाने तथा लोगों में वैज्ञानिक चेतना पैदा करने के लिए निरंतर सक्रिय रहे। वर्तमान में वे राज्य संसाधन केंद्र हरियाणा, हरियाणा विज्ञान मंच और भारत ज्ञान विज्ञान समिति की प्रदेश इकाई के चेयरपर्सन की जिम्मेदारी निभा रहे थे। लैंगिक समानता के प्रबल समर्थक, नेतृत्वकारी सामाजिक कार्यकर्ता, राजनीतिशास्त्र के विद्वान तथा बेहद संवेदनशील इंसान डॉ. नरवाल अनेक सामाजिक संस्थाओं से जुड़े थे। पिछले एक वर्ष से कोरोना महामारी के बीच भी वे लगातार सामाजिक कामों में सक्रिय थे। सचमुच आपकी अनुपस्थिति बहुत खलेगी डॉ. नरवाल!