9 आईपीएस अधिकारियों के ट्रांसफर के निर्णय में खुद को शामिल नहीं किए जाने पर हरियाणा के गृहमंत्रीअनिल विज ने सीएम को लिखी चिट्ठी। कहा, ‘विभागों के फैसलों में जब मैं शामिल ही नहीं तो क्यों बनाया होम मिनिस्टर?’
हरियाणा में लगातार दूसरी बार भाजपा की सरकार बनी है। लेकिन पार्टी के भीतर सबकुछ ठीक-ठाक नहीं चल रहा है। पिछले दो माह से पार्टी के वरिष्ठ विधायक और राज्य के गृह मंत्री अपने पैर जमाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। पिछले कुछ दिनों में उन्होंने राज्य के खुफिया विभाग (राज्य सीआईडी) की खिंचाई की है क्योंकि उनके द्वारा मांगी गई जानकारी नहीं दी गई। इसके साथ ही 9 आईपीएस अधिकारियों के ट्रांसफर के निर्णय में खुद को शामिल नहीं किए जाने पर उन्होंने चिट्ठी लिख सीएम को असहमति जताई। कथित चूक पर नाराजगी जताते हुए विज ने कहा कि सीएमओ ने उन्हें मानक प्रक्रिया के बीच में नहीं रखते हुए नजरअंदाज किया है। उन्होंने कहा, “अगर यही काम करना है तो राज्य का मंत्री का पद क्यों दिया गया। यदि यह पद वे खुद रखना चाहते हैं तो रख लें।”
अंबाला कैंट से छह बार विधायक बने विज ने अपना दर्द बयां करते हुए कहा, “हालांकि सीएम के पास मेरे विरुद्ध काम करने की शक्ति है, लेकिन मुझे कम से कम इस प्रक्रिया में रखा जाना चाहिए। निर्णय ले लिए जाते हैं और मुझे सिर्फ एक कॉपी दे दी जाती है। जब मैंने आईपीएस अधिकारियों के हालिया तबादलों का विरोध किया और यहां तक कि फाइल पर अपनी असहमति भी बताई, तो मामला खत्म करने से पहले मेरे साथ कम से कम चर्चा होनी चाहिए थी।”
हालांकि बाद में मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने ट्रांसफर के मामले में विज से मिलकर मामला खत्म करने का प्रयास किया है और विज ने भी कहा है कि सीएम सर्वोपरि हैं। उन्हें सीएम से नहीं, उन अधिकारियों से शिकायत है, जो खुद को सीएम समझते हैं। गौरतलब है कि उस समय गृह मंत्रालय देख रहे सीएम ऑफिस के कर्ताधर्ता एक आईएएस अधिकारी से उन्हें विशेष शिकायत है। कहा जाता है कि विज की आपत्ति के बावजूद उन्होंने ही ट्रांसफर लिस्ट जारी की थी।
सीआईडी मामले की बात करें तो उसमें भी गृहमंत्री की काफी फजीहत हुई है। सीआईडी के अधिकारियों ने तय समय सीमा के भीतर विज के सवालों का जवाब नहीं दिया। आईपीएस अधिकारियों के ट्रांसफर मामले के बाद जब यह मुद्दा भी बढ़ गया और अखबारों की सुर्खियों में आ गया, तो आनन-फानन में उन्हें जवाब तो दे दिया गया, लेकिन विज बाबा उससे संतुष्ट नहीं हुए। उन्होंने आरोप लगाया कि जो जानकारी मांगी गई थी, वह नहीं दी गई है।
इधर, भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सुभाष बराला ने इस मामले को “कम्युनिकेशन गैप” बताया और कहा कि “इस स्तर पर किसी भी हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं थी।” उन्होंने कहा, “आमतौर पर गृह विभाग हमेशा मुख्यमंत्री के पास होता था। हालांकि, इस बार किसी अन्य मंत्री को स्वतंत्र प्रभार के रूप में पोर्टफोलियो दिया गया है। इस वजह से कुछ कम्युनिकेशन-गैप है। लेकिन मुझे पूरा विश्वास है कि मुख्यमंत्री और गृहमंत्री दोनों इसे आपसी चर्चा से दूर करेंगे। एक पार्टी अध्यक्ष के रूप में मुझे नहीं लगता कि इस स्तर पर मेरी ओर से किसी भी हस्तक्षेप की आवश्यकता है।”