सारी दुनिया। दुनिया की मशहूर पत्रिका इकोनॉमिस्ट टाइम्स का मानना है कि 10 मई तक भारत में कोरोना से 10 लाख से अधिक मौतें हो चुकी हैं। पत्रिका के अनुसार, भारत में रोजाना लगभग 4000 मौतें रिपोर्ट की जा रही हैं, जबकि उसकी गणना के मुताबिक यहां प्रतिदिन 6000 से लेकर 31000 से भी अधिक मौतें हो रही हैं। इनके बीच का आंकड़ा लगभग 20000 मौत प्रतिदिन बनता है। स्वतंत्र अनुमानों के अनुसार तो यह संख्या इससे भी ज्यादा, यानी 8000 से 32000 के बीच प्रतिदिन है। फिर भी, अगर पत्रिका के मॉडल के औसत (20 हजार मौत प्रतिदिन) को भी मानें, तो आज तक कोरोना से हुई मौतों का अनुमान 12 लाख के करीब बनता है।
पूरी दुनिया की बात करें तो, पत्रिका के मुताबिक 10 मई तक दुनिया भर में एक करोड़ से ज्यादा मौतें हो चुकी है, जबकि इस तारीख तक कोरोना से हुई आधिकारिक मौतों की संख्या 33 लाख रिपोर्ट की गई है। यानी, पत्रिका के अनुसार 33 फीसदी मौतें ही रिपोर्ट की जा रही हैं। पत्रिका का यह भी कहना है कि महामारी का सबसे ज्यादा प्रभाव गरीबों पर पड़ा है और इनमें ज्यादातर मौतें भी गरीब देशों में हुई हैं। पत्रिका ने आशंका व्यक्त की है कि अगर गरीब अफ्रीकी देशों तक समय पर वैक्सीन नहीं पहुंचाई गई तो वहां बहुत अधिक जनहानि हो सकती है।
आपको बता दें की पत्रिका ने यह अनुमान 200 देशों से प्राप्त डेटा के आधार पर लगाया है। यह डेटा 121 संकेतकों पर आधारित है, जिनमें दर्ज हुई मौतें, आबादी की आयु, टेस्टिंग, पॉजिटिविटी दर, मृत्यु दर जैसे बिंदु शामिल हैं। पत्रिका ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि दुनियाभर में कोरोना वायरस से होने वाली वास्तविक मौतों की संख्या और सरकारी आंकड़ों के बीच भारी अंतर है। उदाहरण के लिए रूस में सरकारी कोविड-19 मृतक संख्या के मुकाबले 5.1 गुणा अधिक मौतों का अनुमान है। भारत में भी यह संख्या करीब 5 गुणा होने की आशंका है। पत्रिका के अनुमान 95 फीसदी सही होने का अंदाजा है।
इकोनॉमिस्ट टाइम्स ने भारत की गरीब आबादी पर पड़े कोरोना के दुष्प्रभाव पर अलग से भी रिपार्ट जारी की है। इसके अलावा, प्यू रिसर्च इंस्टीट्यूट ने भी इस बारे में एक अध्ययन किया है, जिसके अनुसार, पिछले साल भारत में कोविड-19 की पहली लहर आने से पहले जनवरी 2020 में रोजाना 175 रुपए से कम कमाने वाले भारतीयों की संख्या 4.3 प्रतिशत थी, जबकि एक वर्ष बाद ऐसे लोगों की संख्या बढ़कर 9.7 फीसदी हो गई है। माना जा रहा है कि अनेक देशों में जहां कोरोना के मरीजों को मुफ्त ईलाज दिया जा रहा है, वहीं भारत में हर मरीज को ईलाज का 60 फीसदी खर्च खुद उठाना पड़ता है।
निचले स्तर से मिल रही रिपोर्ट्स के अनुसार, ऑक्सीजन, दवाइयों, एम्बुलेंस, टेस्ट और अंतिम संस्कार का खर्च काफी बढ़ गया है। मरीजों अथवा उनके परिजनों को दवाइयों, ऑक्सीजन आदि के लिए पैसा उधार लेना पड़ रहा है। बहुत से लोग न मरीज का ईलाज करवाने में सक्षम हैं और न ही मृतकों का संस्कार करने के पैसे उनके पास हैं। ऐसी में यूपी के गंगा किनारे रहने वाले लोग लाशों को गंगा की रेती में दफनाने को विवश हुए, जिनकी दुर्दशा का अंदाजा सोशल मीडिया में दिखाई तस्वीरों व वीडियो से लगाया जा सकता है। इनमें से कई हजार लाशें तो गंगा में बह गई और बिजनौर से बलिया तक 1140 किलोमीटर के क्षेत्र में फैल गई। कितने दुख की बात है कि कई जगह एम्बुलेंस न मिलने या उसके लिए पैसे न होने पर लोगों को कंधों पर अपने परिजनों की लाशें ढ़ोते हुए देखा गया है।