यह तस्वीर कोज़ीकोड (केरल) के निवासी 16 वर्षीय आदित्य की है। आदित्य की दादी कालीकट यूनिवर्सिटी से रिटायर्ड शिक्षिका हैं। रिटायर्ड सीनियर सिटिजन्स के एक ग्रुप का नेपाल भ्रमण का कार्यक्रम बना, जिसमें आदित्य की दादी भी शामिल थी। इस यात्रा को और यादगार बनाने के लिये आदित्य का परिवार भी उनके साथ नेपाल भ्रमण के लिए जाने को तैयार हो गया।
आदित्य ने अपने परिवार के साथ नेपाल की यात्रा का खूब आंनद लिया। यात्रा समाप्त हो चुकी थी और 1 मई 2019 को 72 यात्रियों को लेकर 2 एसी बस नेपाल से लखनऊ की ओर आ रही थीं। इनमें से एक में आदित्य भी सवार था। बस में 43 अन्य यात्री थे। अधिकतर यात्री सीनियर सिटिज़न, यानी वरिष्ठ नागरिक थे।
इंडियन बार्डर से लगभग 60 किलोमीटर पहले बस में बैठी एक वृद्धा ने देखा कि बस के पिछले भाग से धुआं निकल रहा है। वृद्धा ने बस ड्राइवर को बताया तो उसने कहा के वह धुंआ नहीं बल्कि सड़क से उड़ती हुई धूल है। परंतु थोड़ी ही देर बाद कुछ जलने की बदबू आने लगी। ड्राइवर ने बस रोकी …..आदित्य अपने पिता के साथ बस से नीचे उतरा ही था कि अचानक से बस में चीख पुकार मच गई।
बस के ऐसी वेंट्स में से काला धुंआ निकलने लगा और कुछ ही क्षणों में बस के आगे के भाग में आग लग गयी। बस में बैठे अधिकतर लोग वृद्ध थे। वे बेहद घबरा गए और बस में से चीखने चिल्लाने की आवाज़ें आने लगी। इसी बीच आदित्य ने देखा कि स्थिति संभालने की बजाय बस का ड्राइवर वहां से भाग गया है।
आदित्य के पिता ने एक ईंट उठाई और खिड़कियां तोड़ने लगे। बस के अंदर धुंआ फैल रहा था। दरवाज़ा बस के अगले भाग में था जो आग की चपेट में था और वृद्धजनों को अपनी मौत सामने खड़ी दिखाई दे रही थी।
अचानक गाड़ी का अगला शीशा चकनाचूर हो गया और आग की लपटों में से एक जांबाज़ वृद्धों को बचाने के लिए बस में कूद पड़ा। वह आदित्य था।
आदित्य के हाथ में एक हथौड़ा था, जिससे उसने बस के अगले शीशे को तोड़ दिया था।
आदित्य ने एक-एक करके वृद्धों को पकड़ा और बस के अगले हिस्से से उन्हें बाहर का रास्ता दिखाता गया। आदित्य को देख कर बस में मौजूद लोगों में भी हौसला आ गया। वे एक-एक कर बस से कूदने लगे।
कुछ वृद्धजनों ने कूदने से इनकार किया तो आदित्य ने उन्हें बस से नीचे धकेल दिया। आदित्य के पिता को मालूम नहीं था कि वह अपनी जान दांव पर लगा कर जलती बस में कूद चुका है। जब उन्हें ज्ञात हुआ तो वे भी आग की लपटों के बीच कूद गए। लेकिन तब तक आदित्य अपना काम कर चुका था। वह बस में बैठे आखरी वृद्ध को भी बस से बाहर निकाल चुका था।
सभी यात्री सकुशल बाहर आ चुके थे।
लेकिन आदित्य कहीं दिखाई नहीं दे रहा था। …..सबकी साँसें थम गई।
बस का अधिकतर हिस्सा आग की चपेट में था और आदित्य का कोई अता पता नहीं था। पिता बदहवास होकर आदित्य को पुकारने रहे थे।
इसी बीच बस के एक शीशे को तोड़ कर वह जांबाज़ सुरक्षित बाहर निकल आया। संवेदनशीलता की पराकाष्ठा रही कि सभी यात्रियों को सुरक्षित निकालने के पश्चात आदित्य आग से सुलगती बस के आखिर तक यह देखने गया कि कहीं कोई यात्री रह तो नहीं गया।
किसी अनहोनी की आशंका से घिरे पिता ने अपने बेटे को गले से लगा लिया।
अगले कुछ ही क्षणों में बस में एक जोरदार धमाका हुआ और सारी बस जल कर राख हो गई।
एक जांबाज़ की बहादुरी ने 42 वृद्धजनों को मौत के मुंह में जाने से बचा लिया था।
आदित्य के इस अदम्य साहस और वीरता के लिये उन्हें महामहीम राष्ट्रपति द्वारा गणतंत्र दिवस पर “NATIONAL AWARD FOR BRAVERY” से सम्मानित किया गया।
सच में, यह राष्ट्र उन बुज़दिलों और कायरों का नहीं है जो धर्म के नाम पर किसी ज़िंदा आदमी को आग के हवाले कर देते हैं। यह तो आदित्य जैसे शूरवीरों का है जो अपनी जान दांव पर लगा कर, जलती बस में कूद कर, लोगों को मौत के मुंह से बाहर निकाल लाते हैं।
साभार : रचित सतीजा; प्रस्तुति सहयोग : महेश सिन्हा, विनय मालवीय एवं अरुण शुक्ला