सुप्रीम कोर्ट ने दिया 1962 के केदारनाथ सिंह बनाम बिहार सरकार मामले के फैसले का हवाला
– हिमाचल प्रदेश पुलिस ने बीजेपी नेता अजय श्याम की शिकायत पर पिछले साल 4 जून को किया था केस दर्ज।
– मामला विनोद दुआ की एक वीडियो से संबंधित था, जो 30 मार्च, 2020 को YouTube पर अपलोड की गई थी। इसमें उन्होंने लॉकडाउन को लेकर केंद्र सरकार की आलोचना की थी।
– IPC की धारा 124A (सेडिशन), धारा 268 (सार्वजनिक उपद्रव), धारा 501 (अपमानजनक सामग्री छापना) और धारा 505 (सार्वजनिक शरारत करने का इरादा रखना) के आरोपों में हुआ था केस।
– कोर्ट ने 6 अक्टूबर 2020 को रख लिया था फैसला सुरक्षित।
सारी दुनिया। सुप्रीम कोर्ट ने वरिष्ठ पत्रकार विनोद दुआ पर लगे राजद्रोह के केस को रद्द कर दिया है। 3 जून को मामले में अंतिम फैसला सुनाते हुए जस्टिस यूयू ललित और विनीत सरन की बेंच ने दुआ को 1962 के केदारनाथ बनाम बिहार राज्य केस का हवाला देते हुए दोषमुक्त किया। इस मौके पर कोर्ट ने केदार नाथ सिंह के फैसले के अनुसार हर पत्रकार की रक्षा करने की बात भी कही। बेंच ने कहा, “हम FIR और केस प्रोसीडिंग को रद्द कर रहे हैं। हर पत्रकार केदार नाथ सिंह फैसले के तहत सुरक्षा का हकदार होगा।”
आपको बता दें कि दुआ पर अपने यूट्यूब चैनल के एक कार्यक्रम में मोदी सरकार पर की गई कुछ टिप्पणियों के लिए हिमाचल पुलिस ने राजद्रोह का केस दर्ज किया था। एफआईआर में IPC की धारा 124A (सेडिशन), धारा 268 (सार्वजनिक उपद्रव), धारा 501 (अपमानजनक सामग्री छापना) और धारा 505 (सार्वजनिक शरारत करने का इरादा रखना) के तहत आरोप लगाए गए थे। उन पर डिजास्टर मैनेजमेंट एक्ट के तहत भ्रामक जानकारी और झूठे दावे करने के भी आरोप थे। एफआईआर के अनुसार, ‘विनोद दुआ शो’ के दौरान पत्रकार की टिप्पणियों से सांप्रदायिक नफरत फैल सकती थी और शांति भंग हो सकती थी। दुआ का ये शो 30 मार्च 2020 को स्ट्रीम हुआ था।
दुआ ने इस केस के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की थी। जून 2020 में सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में दुआ को गिरफ्तारी से अंतरिम राहत दी थी। हालांकि, तब बेंच ने FIR पर स्टे लगाने से इनकार कर दिया था। बाद में, 6 अक्टूबर 2020 को जस्टिस ललित और जस्टिस सरन की बेंच ने विनोद दुआ, हिमाचल सरकार और शिकायतकर्ता के तर्क सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था। इसी पर अंतिम निर्णय सुनते हुए कोर्ट ने अब प्राथमिकी और कार्यवाही को रद्द कर दिया। गौरतलब है कि दिल्ली पुलिस ने भी इस वीडियो के लिए विनोद दुआ के खिलाफ 4 जून को FIR दर्ज की थी।हालांकि, इस FIR पर दिल्ली हाई कोर्ट ने 10 जून को स्टे लगा दिया था।
कोर्ट ने दुआ को दोषमुक्त करते हुए पत्रकारों को प्रोटेक्शन देने वाले 1962 के केदारनाथ बनाम बिहार राज्य केस का हवाला दिया। इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने व्यवस्था दी थी कि सरकार की आलोचना या फिर प्रशासन पर कॉमेंट करने से राजद्रोह का मुकदमा नहीं बनता। राजद्रोह का केस तभी बनेगा जब कोई ऐसा वक्तव्य हो जिसमें हिंसा फैलाने की मंशा हो या फिर हिंसा बढ़ाने का तत्व मौजूद हो। यह फैसला सर्वोच्च न्यायालय की पांच सदस्यीय बेंच ने सुनाया था।