घर फूँक थियेटर फेस्टिवल में नाटक बीवियों का मदरसा का हुआ मंचन
– नाटक ने धर्म और परंपराओं के नाम पर औरत को अपने आधीन रखने की पुरुषवादी सोच का नमूना किया पेश
– दुनिया के प्रसिद्ध नाटककार मोलियार की रचना को उतारा मंच पर
– तमाम बाधाओं के बावजूद इश्क चढ़ा परवान
– हास्य और व्यंग्य के माध्यम से किया भरपूर मनोरंजन
रोहतक, 13 दिसंबर। ‘प्यार को रुपए-पैसे व ताकत के पिंजरों में कैद नहीं किया सकता, वह किसी भी दीवार, किसी भी ताले को तोड़कर अपनी मंजिल पा ही लेता है।’ सप्तक रंगमंडल, पठानिया वर्ल्ड कैंपस और सोसर्ग द्वारा आयोजित घरफूंक थियेटर फेस्टिवल में मंचित इस बार के नाटक “बीवियों का मदरसा” का कुछ यही लब्बोलुआब रहा। नाटक से यह संदेश भी मिला कि समाज का एक तबका महिलाओं को पैर की जूती समझने और घर की चारदीवारी में कैद करने की कोशिश करता है, लेकिन अंततः वे अपनी मंजिल पा ही लेती हैं।
गौरतलब है कि सप्तक नाट्य संस्था लंबे समय से रंगमंचीय कला को समाज में जीवित रखने और जन-जन तक सुलभ व सार्थक मनोरंजन पहुँचाने के लिए प्रयासरत है। इसी दिशा में साप्ताहिक आयोजन घरफूँक थियेटर फेस्टिवल में इस बार दिल्ली के ‘मास्क प्लेअर्स आर्ट ग्रुप’ के नाटक “बीवियों का मदरसा” का मंचन किया गया। कार्यक्रम का शुभारंभ विशिष्ठ अतिथि एवं व्यापारी नेता गुलशन डंग, पीजीआई में यूरोलॉजी विभाग के प्रमुख डॉ. वजीर सिंह राठी, वरिष्ठ सर्जन व समाजसेवी डॉ. आर. एस. दहिया, नाटक के निर्देशक चंद्र शेखर शर्मा और सतीश कक्कड़ के दीप प्रज्जवलन से किया गया। प्रसिद्ध फ्रांसिसी नाटककार मौलियर का लिखा ये नाटक समाज के ऐसे लोगों पर व्यंग करता है जो अपने स्वार्थ के लिए धन-दौलत और रीति-रिवाज़ों की आड़ में लोगों को अपना ग़ुलाम बनाना चाहते हैं।
नाटक की कहानी एक अमीर बूढ़े के इर्दगिर्द घूमती है जो एक ग़रीब बच्ची को अच्छी परवरिश का वादा करके घर ले आया था। लेकिन उसका शैतानी दिमाग उस छोटी सी बच्ची से शादी करने की साज़िश में लग जाता है। वह बच्ची को इस तरह से शिक्षा देता है कि उसका समाज से कोई संबंध न रहे। वह लड़की के दिमाग में यह भरता रहता है कि उसे उसकी अच्छी पत्नी बनना है। लड़की को दुनिया की नज़रों से बचाने की लाख कोशिशों के बावजूद भी एक नौजवान लड़का उसकी जिंदगी में आ ही जाता है और फिर इस त्रिकोण में अनेकों मज़ेदार घटनाएं घटती है।
नाटक को देख दर्शकों के हँसी-ठहाकों से किसनपुरा चौपाल गूँज उठा। हँसाने के साथ-साथ नाटक दर्शकों को बाँधे रखने में कामयाब रहा। जतिन जोशी की मंच सज्जा दृश्यों को प्रभावशाली व उदयन गुप्ता के संगीत संचालन ने नाटक को गतिशील बनाए रखा। विनीत त्रिपाठी ने फैयाज़ के रूप में दर्शकों को खूब गुदगुदाया। आरा के किरदार में मनोज, भोली-भाली नायिका परिज़ाद के रूप में मृणालिनी शर्मा, दिलनवाज के रूप में निखिल झा व हुस्ना के चरित्र में शान त्यागी का अभिनय भी दर्शकों को बहुत भाया। चन्द्र शेखर शर्मा का निर्देशन काफी प्रभावी रहा।
इस अवसर पर सतीश कक्कड़ ने 1978 में खेले गए इस नाटक के हीरो विश्वदीपक त्रिखा व चन्द्र शेखर शर्मा को सम्मानित किया। डॉ. राठी, अविनाश सैनी व यतिन वधवा मन्नी ने अतिथियों को बुके व स्मृति चिह्न प्रदान किए। मंचन के दौरान डॉ. महेश महला, डॉ. राजीव मनचंदा, डॉ. आनंद शर्मा, देवदत्त, मिस निशु, वीरेन्द्र फोगाट, ब्रह्म प्रकाश सैनी, जगदीप जुगनू, शक्ति सरोवर त्रिखा, रिंकी बत्रा, मनोज कुमार, विकास रोहिल्ला, ललित खन्ना, राहुल हुड्डा सहित सुपवा के विद्यार्थी व अनेक गणमान्य नागरिक उपस्थित रहे। मंच संचालन सुजाता ने किया।