ऐ देश मेरे आबाद रहो
रहती दुनिया तक शाद रहो,
तुम फूलो फलो महको चहको
और हर दम ही आज़ाद रहो
ए देश मेरे आबाद रहो
रहती दुनिया तक शाद रहो।
की खूब तरक्की है तूने
दुनिया में ऊंचा नाम किया
नित नई मंज़िलें की हासिल
जो हो ना सके वह काम किया।
दिए इतने हीरे इस जग को
जिनका कोई पारावार नहीं
ना ऐसा क्षेत्र बचा कोई
जिसमें वे हिस्सेदार नहीं ।
फिर क्यों न कहूँ, आज़ाद रहो
ऐ देश मेरे आबाद रहो।
आबाद रहो कि आबादी
सारी तेरी खुशहाल रहे
ना लूट की छूट कोई पाए
ना कोई भूखा कंगाल रहे।
हर जननी भारत माता हो
और हर बालक हो लाल तेरा
इनकी खुशहाली से ही तो
ऊंचा है जग में भाल तेरा।
तब ही तो कहूं कि शाद शाद रहो
ए देश मेरे आबाद रहो।
एक ऐसी सी तस्वीर तेरी
यूँ मन में मेरे उभरती है
सब संसाधन होने पर भी
तेरी रूह भूखी मरती है।
तू भी रोता है देख देख
फांसी लटके अन्नदाता को
यूं भीख मांगते बच्चों को
और जिस्म बेचती माता को।
जब कुचली जाती हैं कलियां…
जब नोची जाती हैं बच्चियां
तब भी तू खूब तड़पता है
शिक्षा सेहत से महरूम
जनता की खातिर लड़ता है।
जात धर्म के नाम पे जब
यहां भीड़ की सत्ता होती है
तब देख के खतरा संविधान पर
तेरी आत्मा रोती है ।
तू है आज़ाद वतन प्यारे
पर जंगे आज़ादी बाकी है
सुख मिला न आज़ादी का जिसे
एक बड़ी आबादी बाकी है।
मौके पर जश्न ए आज़ादी के
हमको एक हलफ उठाना है
हक एक समान आज़ादी का
सब तक पूरा पहुंचाना है।
इसलिए सदा आज़ाद रहो
ऐ देश मेरे आबाद रहो,
रहती दुनिया तक शाद रहो।
तुम फूलो-फलो, महको चहको
और हर दम ही आज़ाद रहो
ऐ देश मेरे आबाद रहो…..
– अविनाश सैनी
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