लरिटा अड्डा बाग़ (ऋचा नागर) :
इस बार ‘सरहद पार से’ के लिए एक अलग तरह का लेख, जिसे लिखने वालीं ऋचा नागर एक अर्थ में कई सरहदों के पार से ‘हमारी दुनिया’ के साथ जुड़ी हैं। वे यूनिवर्सिटी ऑफ़ मिनिसोटा (संयुक्त राज्य अमेरिका) में ‘प्रोफ़ेसर ऑफ़ द कॉलेज,’ ‘बेनेट चेयर इन एक्सिलेंस’ एवं ‘फ़िंक प्रोफ़ेसर इन लिबरल आर्ट्स’ के सम्मान के साथ कार्यरत हैं। उन द्वारा अर्जित साहित्य के संस्कार दादा अमृतलाल नागर के साये में पनपे। वे सामाजिक हिंसा के विभिन्न पहलुओं पर काम कर रहे संगतिन किसान मज़दूर संगठन, सीतापुर (उ.प्र.) के सदस्यों के साथ सामूहिक चिन्तन और लेखन में भी शामिल रहती हैं और हर वर्ष कुछ माह भारत में रचनात्मक कार्यकलापों में लीन हो कर बिताती हैं। वे भारत और पड़ोसी मुल्कों, ख़ास तौर से पाकिस्तान, के बीच सौहार्द एवं मित्रता के सम्बन्धों की हिमायती हैं और इसी साल के शुरू में पाकिस्तान की यात्रा कर के आई हैं। उसी यात्रा के संस्मरण ‘सरहद पार से’ के लिए साझा कर रही हैं।
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“सरहद पार से” के अन्य भाग
लाहौर, क़सूर और भिटाई की नगरी हर तान है दीपक (असलम ख़्वाजा)बिना नक़्शों का इक सफ़र – सलमान रशीदOpen BookSarhad Paar Se 5Sarhad Paar Se 7