हरियाणा में विपक्ष ने सरकार को जुलाई में स्कूल-कॉलेज न खोलने की सलाह दी है। राज्यसभा सांसद और कांग्रेसी नेता दीपेंद्र हुड्डा ने जुलाई में स्कूल-कॉलेज खोलने के फैसले का विरोध करते हुए कहा है कि स्कूलों को खोलने की जल्दबाजी में सरकार छात्रों के जीवन के साथ खिलवाड़ कर रही है। उन्होंने कहा कि संक्रमण के काबू में आने और स्थिति की विस्तृत समीक्षा के बाद ही स्कूल- कॉलेज खोलने का फैसला होना चाहिए।
दीपेन्द्र हुड्डा ने कहा है कि सरकार को स्कूल खोलने के अपने फैसले को स्थगित करना चाहिए और स्कूलों तथा अभिभावकों से बातचीत करने के बाद ही स्कूल खुलने चाहिएं। इसके अलावा यूनिवर्सिटी और कॉलेज के छात्रों को बिना परीक्षा के प्रमोट करने के लिए एक जैसा पैमाना तय किया जा सकता है।
राज्यसभा सांसद का कहना है कि हरियाणा में हर दिन 300 से ज्यादा कोरोना संक्रमित मामले सामने आ रहे हैं। इसके अलावा यह बीमारी गांव में घुस चुकी है। ऐसे में स्कूल-कॉलेज शुरू करना काफी नुकसानदायक होगा। दीपेंंद्र का कहना है कि अगर आधे फार्मूले से भी क्लास शुरू हुई, तो भी एक क्लास में 15 से 20 छात्र रहेंगे और इससे भी संक्रमित होने का पूरा खतरा रहेगा।
गौरतलब है कि हरियाणा सरकार ने चरणबद्ध तरीके से स्कूल- कॉलेज खोलने की तैयारी शुरू की है। सरकार द्वारा जारी आदेशों के अनुसार पहले चरण में 10वीं से लेकर 12वीं तक की कक्षाएं खुलेंगी। बाद में छठी से लेकर नौंवी तक की कक्षाएं लगनी शुरू होंगी और अंतिम चरण में पहली से लेकर पांचवी तक की कक्षाएं शुरू होंगी। स्कूल खोलने की तैयारियों के संदर्भ में सरकार ने 8 जून से अध्यापकों को भी स्कूलों में बुला लिया गया है। हालांकि अभिभावक भी इस फैसले का विरोध कर रहे हैं।
आपको बता दें कि स्कूल खोलने को लेकर शिक्षा विभाग पूरी तरह दिग्भ्रमित नजर आता है। अधिकारी बिना सोचे-समझे रोज कोई-न-कोई नया फरमान जारी कर देते हैं और फिर उसे वापिस लेकर नया फैसला सुना देते हैं। दिल्ली और राजस्थान के विपरीत हरियाणा सरकार ने अध्यापकों की गर्मियों की छुटिटयां भी नहीं की हैं तथा भविष्य में भी छुटियां रद्द करने की बात की जा रही है। सरकार के अधिकारी यह मानकर चल रहे हैं कि घर पर बैठे अध्यापक छुट्टी मना रहे हैं, जबकि उन पर ऐसे गरीब विद्यार्थियों को फोन पर पढ़ाने का दबाव बनाया हुआ है, जिनके पास फोन ही नहीं है। अधिकारियों को यह भी नहीं मालूम कि स्कूल खुलने पर अध्यापकों को नए सिरे से पूरा सिलेबस करवाना पड़ेगा। इन बातों से जाहिर होता है कि सरकार के पास इस मुद्दे को लेकर कोई स्पष्ट योजना नहीं है।