भारत में कोरोना वायरस का संक्रमण तेजी से बढ़ रहा है और इसके सामने बड़े-बड़े महानगरों की स्वास्थ्य व्यवस्थाएं कमजोर साबित हो रही हैं। सरकारी अस्पतालों की क्षमताएं चुक जाने के साथ ही प्राइवेट अस्पतालों ने मरीजों से भारी-भरकम फीस वसूलनी शुरू कर दी है, जिससे स्पष्ट हो गया है कि जीने का हक केवल बड़े अमीर लोगों को ही है। यहां तक कि, कोरोना का इलाज मध्य वर्गीय परिवारों की पहुंच से भी बाहर हो चुका है। हाल यह है कि कोरोना किसी व्यक्ति की जान ले या न ले, प्राइवेट अस्पतालों में इसके इलाज का खर्च कई परिवारों की जान जरूर ले लेगा। हम आपको बता रहे हैं कि कैसे दिल्ली जैसे शहर के प्राइवेट अस्पतालों में कोरोना वायरस के इलाज पर 15 से 20 लाख रुपए तक का खर्च वसूला जा रहा है।
बड़े प्राइवेट अस्पतालों ने 2 से 3 बेड के वार्ड का किराया 40 हजार रुपए रोजाना के हिसाब से तय किया है।
सिंगल रूम बेड का चार्ज 50 हजार रुपए है। यानी, अगर आप अलग कमरा लेना चाहते हैं तो आपको प्रतिदिन 50 हजार रूपए किराया देना होगा।
इसी तरह, ICU के लिए 75 हजार रुपए और वेंटिलेटर का शुल्क एक लाख रुपए प्रतिदिन के हिसाब से वसूला जाएगा।
अस्पतालों के अनुसार, यह बेसिक खर्च है, अगर आप दूसरी सुविधाएं लेंगे, तो अलग से pay करना होगा।
अस्पतालों ने यह भी साफ कर दिया है कि मरीज को कम से कम 3 लाख रुपए का शुल्क तो देना ही होगा, बेशक इलाज का कुल खर्च इससे कम ही क्यों न बनता हो।
यही नहीं, इलाज से पहले, यानी एडमिशन के समय ही कम से कम 4 लाख रुपए एडवांस जमा करवाने जरूरी हैं, जो मरीज की हालत को देखते हुए 8 लाख रुपए तक हो सकते हैं।
देखने वाली बात यह है कि अस्पतालों के अनुसार इलाज की ये दर सरकार द्वारा तय की गई हैं। वे तो सरकार द्वारा फिक्स की गई न्यूनतम दर पर ही इलाज कर रहे हैं, जो 15-20 लाख रूपए तक ही बनता है। लेकिन अब सरकारों से कौन पूछे कि उन्होंने ये दर किस आधार पर तय की हैं और क्यों एक बहुत बड़े तबके को इलाज के दायरे से बाहर कर दिया है?
कुल मिलाकर यह खबर उस मध्यवर्ग के रौंगटे खड़े कर देने वाली है, जो अभी तक थाली, ताली और घंटी बजाता हुआ निश्चिंत बैठा था कि उसे तो कोई दिक्कत नहीं आने वाली, वह तो पैसा खर्च करके इलाज पा ही लेगा। असल मे, कोरोना संक्रमण ऐसा है कि अगर किसी एक व्यक्ति को हो गया तो परिवार के अन्य सदस्य भी इसकी चपेट में आने से नहीं रह सकते। यानी, एक व्यक्ति के संक्रमित होते ही परिवार के अन्य सदस्यों तक संक्रमण पहुंचने की गुंजाइश बन जाती है। अब अगर किसी परिवार में 4-5 व्यक्ति हों तो समझ लीजिए कि एक परिवार के लिए कोरोना से मुक्त होने का खर्च एक करोड़ तक पहुंचता है, जो शायद ही किसी मध्य वर्गीय परिवार के बूते की बात होगी। एक समान्य नौकरीपेशा या कारोबारी अगर अपनी जमापूंजी खर्च करके कुछ लाख रुपए जुटा भी लेगा, तो भी क्या वह परिवार के सभी व्यक्तियों का इलाज करवाने में सक्षम होगा?