
रोहतक, सारी दुनिया। प्रतिष्ठित पंचानन पाठक स्मृति हास्य नाटक समारोह में इस बार हरियाणा इंस्टीट्यूट ऑफ परफॉर्मिंग आर्ट्स (हिपा) रोहतक के नए नाटक अंधेर नगरी का सफल मंचन किया गया। समारोह का आयोजन मंच आप सब का ग्रुप द्वारा नई दिल्ली के मंडी हाउस स्थित लिटिल थिएटर सभागार में हुआ। हिंदुस्तान में नाटक के पितामह भारतेंदु हरिश्चंद्र द्वारा 400 साल पहले लिखे गए अंधेर नगरी की परिकल्पना और पुनर्लेखन विश्व दीपक त्रिखा ने और निर्देशन अविनाश सैनी ने किया।नौटकी शैली में प्रस्तुत एक घंटे का यह नाटक दर्शकों की तालियां बटोरने में सफल रहा।
गौरतलब है कि हिपा द्वारा इस नाटक का यह चौथा मंचन था। इस से पहले इस नाटक का प्रथम मंचन सूरजकुंड मेले में हरियाणा सरकार द्वारा करवाया गया था। तत्पश्चात ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज, झज्जर और अलवर में हुए पिचहत्तर दिवसीय राष्ट्रीय नाट्य समारोह ‘अलवर रंगम’ में किया गया। नाटक हर जगह दर्शकों की भूरी भूरी प्रशंशा पाने में नाटक कामयाब रहा।
नाट्य समारोह के मुख्य अतिथि राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय में गेस्ट फैकल्टी अजय मनचंदा रहे, जबकि कार्यक्रम की अध्यक्षता दिनेश अहलावत ने की।
नाटक में उस समय के समाज में व्याप्त भ्रष्टाचार पर करारा व्यंग्य किया गया है। मज़े की बात यह रही कि उस वक्त का व्यंग्य आज के भारत में भी बिलकुल प्रासंगिक नजर आता है। लोगों ने महसूस किया कि यह सारा भ्रष्टाचार और बौद्धिक दिवालियापन तो आज भी समाज और सत्ता के गलियारों में मौजूद है। अंधेर नगरी एक ऐसे राज्य की कहानी है, जिसमें मूर्ख और बुद्धिमान, सभी को बराबर माना जाता है। इसीलिए वहां सभी सामान टके सेर मिलता है, फिर चाहे वह सोना हो या भूसा। वहां का राजा चौपट खुद बेवकूफ है। नगर में एक औरत की बकरी किसी की दीवार के नीचे दब कर मर जाती है। न्याय करने का दिखावा करते हुए राजा बारी बारी से दीवार के मालिक, कारीगर, भिश्ती, कसाई, गडरिए और राज के कोतवाल को फांसी देने का हुक्म देता है, लेकिन सब लोग उसे बेवकूफ बना कर बच जाते हैं। बाद में वह चेले को केवल इसलिए फांसी का हुक्म दे देता है, कि फांसी का फंदा उसकी गर्दन में फिट आ जाता है। परन्तु अंत में गुरु व चेला अपनी बुद्धिमत्ता से राजा को ही फांसी पर चढ़ने को मजबूर कर देते हैं और राज्य को एक सनकी व मूर्ख राजा से छुटकारा मिलता है। नाटक में कलाकारों ने उम्दा अभिनय का परिचय दिया, जिसे दर्शकों की भरपूर सराहना मिली।
नाटक में चेले की मुख्य भूमिका अविनाश सैनी ने निभाई। सामाजिक-राजनीतिक स्थिति पर गहरे कटाक्ष करते हुए उन्होंने अपने सहज अभिनय से दर्शकों का भरपूर मनोरंजन किया। डॉ. सुरेंद्र शर्मा ने गुरू की, ललित खन्ना ने राजा और पान वाले की, अभिषेक ने मंत्री और सब्जीवाले की, चारु गिरधर ने नटी और नर्तकी की तथा उर्वशी विराट ने चेले की पत्नी, फूल वाली और फ़रियादन की भूमिका बखूबी अदा की। मिठाई वाले और भिश्ती की भूमिका में शक्ति सरोवर त्रिखा, चने वाले,गडरिया और द्वारपाल की भूमिका में समीर शर्मा, कल्लू बनिये, द्वारपाल 2 और कसाई की भूमिका में मनीष खरे और कोतवाल व कारीगर की भूमिका में नवदीप ने भी प्रभावित किया। संगीत सुभाष नगाड़ा का और मेकअप अनिल शर्मा का रहा। लाइट और साउंड पर सिद्धार्थ सोसर्ग तथा प्रोडक्शन में तरुण पुष्प त्रिखा व तरुण भारद्वाज का सराहनीय योगदान रहा।
