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हरियाणा के पहले ओलम्पियन भीम सिंह

Posted on May 25, 2021May 26, 2021 by अविनाश सैनी (संपादक)

।। अविनाश सैनी ।।

भीम सिंह के नाम पर बना भिवानी का भीम स्टेडियम


हरियाणा खिलाड़ियों की भूमि रही है। यहाँ की माटी ने देश को अनेक होनहार खिलाड़ी दिए हैं जिन्होंने अपनी प्रतिभा और कड़ी मेहनत के दम पर खेलों की दुनिया में नए कीर्तिमान स्थापित किए और देश-विदेश में हरियाणा का नाम रोशन किया। ऐसे ही प्रतिभाशाली खिलाड़ियों की फेहरिस्त में शामिल हैं बीते समय के मशहूर एथलीट भीम सिंह, जिन्होंने न केवल ओलम्पिक खेलों में देश का प्रतिनिधित्व किया, बल्कि “ऐशियाई खेलों” सहित विभिन्न अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में असंख्य पदक भी जीते।
जी हाँ, हम बात कर रहे हैं ऊँची कूद के पूर्व राष्ट्रीय रिकॉर्डधारी और हरियाणा के पहले ओलम्पियन भीम सिंह की। ठेठ गाँव से निकले भीम सिंह ने जहाँ खिलाड़ी के रूप में उत्कृष्ट प्रदर्शन करते हुए ऊँचा मुकाम हासिल किया, वहीँ कोच की ज़िम्मेदारी निभाते हुए खेल जगत को ऊँची कूद के बेहतरीन खिलाड़ी भी दिए।
13 अप्रैल 1945 को हरियाणा में भिवानी ज़िले के धनाना गाँव में जन्में भीम सिंह ने 1968 के मैक्सिको सिटी ओलम्पिक खेलों में भारत का प्रतिनिधित्व किया था। सन् 1967 में हरियाणा बनने के बाद यह पहले ओलम्पिक खेल थे। इस कारण से भीम सिंह को हरियाणा का पहला ओलम्पियन होने का गौरव हासिल है।
यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि मैक्सिको सिटी ओलम्पिक खेलों की ‘एथलेटिक्स’ की स्पर्धा में भारत के केवल “दो” खिलाड़ी ही हिस्सा लेने की योग्यता हासिल कर पाए थे – “हैमर थ्रो” में प्रवीन कुमार और “ऊँची कूद” में भीम सिंह।
अपने समय के चोटी के एथलीट रहे भीम सिंह ने ओलम्पिक में अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते हुए 2.09 मीटर की ऊँचाई नापी। लेकिन राष्ट्रीय रिकॉर्ड तोड़ने वाले इस प्रदर्शन के बावजूद वे फाइनल में नहीं पहुँच पाए।
बचपन से ही ऊँची कूद में विशेष दिलचस्पी रखने वाले भीम सिंह भारतीय सेना में कार्यरत थे। वहीं पर उन्होंने अपने खेल को निखारा और उसे नई ऊँचाइयाँ प्रदान की। राष्ट्रीय स्तर पर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाने के बाद उनका चयन 1966 के “जमैका राष्ट्रमंडल खेलों” के लिए हुआ जो उनका पहला अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट था। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पर्याप्त अनुभव की कमी के चलते वे अपनी तमाम कोशिशों के बावजूद इस मौके को पदक में नहीं बदल पाए और पोडियम तक पहुँचने में नाकाम रहे। लेकिन इन खेलों से उन्हें जो अनुभव और आत्मविश्वास मिला उसने उनके प्रदर्शन को निखारने में बड़ी भूमिका निभाई और जल्दी ही इसके सकारात्मक परिणाम भी सामने आ गए।
कॉमनवेल्थ खेलों के बाद उसी साल उन्हें बैंकॉक में आयोजित “पाँचवें एशियन गेम्स” में भाग लेने का मौका मिला। भीम सिंह ने इन खेलों में ज़बरदस्त जुझारूपन का परिचय दिया और “स्वर्ण पदक” जीतने में कामयाब रहे। यही नहीं, इस अवसर पर उन्होंने 2.05 मीटर ऊँची कूद लगाते हुए एशियाई खेलों का नया रिकॉर्ड भी स्थापित किया। उनके शानदार प्रदर्शन और आत्मविश्वास को देखते हुए उन्हें “ऐशियाई खेलों का सबसे आत्मविश्वासी खिलाड़ी” भी घोषित किया गया।
1970 में हुए ऐशियाई खेलों में उन्होंने एक बार फिर बेहतरीन प्रदर्शन किया और 2.03 मीटर की कूद के साथ “कांस्य पदक” जीता। ईरान के तैमूर घिएसी ने 2.06 मीटर की ऊँचाई नापते हुए स्वर्ण पदक हासिल किया। यानी, भीम सिंह का जम्प स्वर्ण पदक विजेता से केवल 0.03 मीटर ही नीचा रहा।
अपने लगभग दस वर्ष के खिलाड़ी जीवन में भीम सिंह ने लगातार बेहतर प्रदर्शन किया। इस दौरान उन्होंने सोवियत संघ, जर्मनी, चेकोस्लोवाकिया आदि देशों में हुई अनेक प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में हिस्सा लिया और अधिकतर में पहले, दूसरे या तीसरे स्थान पर रहे। मैक्सिको सिटी ओलम्पिक खेलों में उन्होंने 2.09 मीटर का नया राष्ट्रीय रिकॉर्ड बनाया था जो 1984 तक, यानी लगभग 16 वर्ष उनके नाम रहा।
राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर निरंतर सराहनीय प्रदर्शन करने और उल्लेखनीय उपलब्धियाँ हासिल करने के परिणामस्वरूप उन्हें 1967 में देश के सर्वोच्च खेल सम्मान “अर्जुन अवार्ड” से नवाजा गया। वर्तमान में अर्जुन अवार्ड राजीव गांधी खेलरत्न पुरस्कार के बाद देश का दूसरा सर्वोच्च खेल सम्मान है। भारत सरकार के साथ-साथ भारतीय सेना ने भी भीम सिंह की खेल उपलब्धियों को सम्मानित किया और उन्हें वर्ष 1969-70 के लिए “सेना के बेहतरीन खिलाड़ी” अर्थात “Best Sportsman of Services” का खिताब प्रदान किया।
भीम सिंह युवा खिलाड़ियों के लिए विशेष प्रेरणा के स्रोत रहे हैं। भारत में ऊँची कूद को लोकप्रियता और प्रतिष्ठा दिलवाने में तो उनकी काफ़ी अहम भूमिका रही है। वे लंबे समय तक ऊँची कूद के सिरमौर रहे। बहुत सारे युवाओं ने तो उनसे प्रेरित होकर ही ऊँची कूद के खेल को अपनाया।
1988 में भीम सिंह भारतीय सेना की जाट रेजिमेंट से ऑनरेरी कैप्टन के पद से सेवानिवृत्त हुए। सेवानिवृत्ति के बाद उन्होंने खिलाड़ियों को तराशने का ज़िम्मा लिया और कोचिंग के क्षेत्र में सक्रिय हो गए। वे सेना के हाई जम्प कोच रहे। इसके अलावा उन्होंने “राष्ट्रीय टीम” को भी कोचिंग दी। कुछ समय तक उन्होंने “जूनियर इंडिया टीम” के कोच की ज़िम्मेदारी भी निभाई। उनके मार्गदर्शन में भारतीय खिलाड़ियों ने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बेहतरीन प्रदर्शन किया तथा अनेक पदक जीते। बाद में कुछ समय वे मोतीलाल नेहरू खेल विद्यालय, राई से भी जुड़े रहे।
इतना ही नहीं, उन्होंने खिलाड़ियों के अधिकारों के लिए भी निरंतर संघर्ष किया। आज लागभग 75 वर्ष की आयु में भी वे उतने ही सक्रिय हैं जितने अपनी युवावस्था में थे। उनका जीवन और खेलों के प्रति उनका समर्पण भाव निःसंदेह उभरती हुई खेल प्रतिभाओं को प्रेरणा प्रदान करता रहेगा।


(लेखक रंगकर्मी-संस्कृतिकर्मी हैं और कई वर्षों तक नवभारत टाइम्स में रिपोर्टर रहे हैं। राज्य संसाधन केंद्र हरियाणा, रोहतक सीनियर फैलो एवं कार्यकारी निदेशकक रूप में कार्य करने के साथ-साथ हरकारा पत्रिका के संपादन से जुड़े रहे हैं। देस हरियाणा पत्रिका के संपादक मंडल में होने के अलावा कई समाचार पत्रों के संपादक रहे हैं। आकाशवाणी के उदघोषक हैं। करीब दो दशक तक साक्षरता अभियान में नेतृत्वकारी भूमिका निभाते रहे हैं।)

Mobile : 9416233992
E-mail : avi99sh@gmail.com

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