– लगातार 11 बार राष्ट्रीय हैवीवेट मुक्केबाजी चैंपियन रहने का रिकॉर्ड भी इन्हीं के नाम है
– मिन्नी क्यूबा के नाम से प्रसिद्ध भिवानी बॉक्सिंग क्लब के जनक हैं कैप्टन

कुश्ती के अलावा मुक्केबाजी एक और ऐसा खेल है, जिसमें हरियाणा के खिलाड़ियों ने विशेष नाम कमाया है। मुक्केबाजी में देश के पहले ओलंपिक पदक विजेता विजेंद्र सिंह हरियाणा से ही हैं। लेकिन यहां हम बात कर रहे हैं विजेंद्र सिंह सरीखे खिलाड़ियों को तराशने वाले भिवानी बॉक्सिंग क्लब के जनक कैप्टन हवा सिंह की। भारतीय मुक्केबाजी को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले कैप्टन हवा सिंह का जन्म भिवानी जिले के एक छोटे से गांव उमरवास में हुआ था। उन्हें भारतीय मुक्केबाजी का पितामह समझा जाता है।
प्रतिष्ठित अर्जुन पुरस्कार और द्रोणाचार्य अवार्ड हासिल करने वाले कैप्टन हवा सिंह भारतीय हैवीवेट मुक्केबाजी में एक बहुत बड़ा नाम रहे हैं। उन्होंने न केवल मुक्केबाज़ के तौर पर लगभग एक दशक तक राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर धाक जमाई, बल्कि प्रशिक्षक के रूप में भी देश को अनेक ओलंपियन मुक्केबाज़ दिए हैं। उनकी प्रमुख उपलब्धियों में लगातार 11 वर्ष तक राष्ट्रीय चैंपियन रहना और लगातार दो बार एशियाई खेलों का खिताब हासिल करना है, जो आज भी एक रिकॉर्ड है। इसके अलावा उन्होंने भिवानी में मुक्केबाज़ों को तराशने के लिए भिवानी बॉक्सिंग क्लब की स्थापना की, जो आज लिटिल क्यूबा के नाम से प्रसिद्ध है। ओलंपिक पदक विजेता और डब्ल्यूबीओ एशिया पेसिफिक सुपर मिडिल वेट चैंपियन विजेंद्र सिंह, अखिल कुमार, विकास कृष्ण यादव, जितेंद्र कुमार और दिनेश कुमार जैसे मुक्केबाज़ इसी क्लब की पैदाइश हैं।
16 दिसंबर 1937 को जन्मे हवा सिंह 1956 में भारतीय सेना में भर्ती हुए। उस समय उनकी उम्र मात्र 19 वर्ष थी। वहीं पर उन्होंने मुक्केबाज़ी की शुरुआत की और जल्दी ही बॉक्सिंग रिंग में छा गए। चार वर्ष बाद ही उन्होंने एक बड़ा धमाका किया और उस समय के मशहूर चैंपियन मोहब्बत सिंह को मात देते हुए वेस्टर्न कमांड बॉक्सिंग चैंपियनशिप का खिताब अपने नाम कर लिया। उसके बाद उन्होंने 1961 से 1972 तक लगातार 11 वर्ष राष्ट्रीय बॉक्सिंग चैंपियनशिप का खिताब जीता। हैवीवेट वर्ग में कोई भी मुक्केबाज़ आज तक उनके इस अद्भुत रिकॉर्ड के करीब तक नहीं पहुंच पाया है।
अंतरराष्ट्रीय मुक्केबाज़ी में उनका पदार्पण थोड़ी देरी से हुआ। अपने बेहतरीन प्रदर्शन के बल पर वे 1962 में हुए जकार्ता एशियाई खेलों के लिए हेवीवेट केटेगरी में देश की पहली पसंद थे, लेकिन चीन के साथ सीमा पर चल रहे तनाव के कारण वह इन खेलों में भाग नहीं ले पाए। 1964 में पाकिस्तान के खिलाड़ी के साथ हुए मैच में रेफरी ने उन्हें गलत तरीके से अयोग्य घोषित कर दिया। इसके बावजूद हवा सिंह ने हार नहीं मानी और 1966 के बैंकाक एशियाई खेलों की नई सनसनी के रूप में उभरे। इन खेलों में इराक के ओलंपिक पदक विजेता मुक्केबाज खटामिन को हराकर वे निर्विवाद रूप से एशियाई चैंपियन बने। 1970 में एक बार फिर उन्होंने एशियाई खेलों का स्वर्ण पदक जीता। इस बार उन्होंने खटामिन को सेमीफाइनल मुकाबले में धूल चटाई।
हवा सिंह देश के इकलौते मुक्केबाज़ हैं जिन्होंने लगातार दो एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक हासिल किया। उन्होंने 1974 के तेहरान एशियाई खेलों में भी भाग लिया। इस बार उन्होंने अपने ईरानी प्रतिद्वंद्वी को नॉकआउट मुकाबले में मात देकर लगातार तीसरी बार एशियाई खेलों का फाइनल जीता, परंतु रेफरी के विवादास्पद फैसले के कारण वे स्वर्ण पदक हासिल करने से चूक गए।

हवा सिंह को ओलंपिक में खेलने का मौका नहीं मिला। इतने ऊंचे पाए के मुक्केबाज़ और देश के निर्विवाद हैवीवेट चैंपियन को ओलंपिक में न भेजना हमेशा सवालों के घेरे में रहेगा। यदि वे ओलंपिक में जाते, तो संभवतः देश को बॉक्सिंग का ओलंपिक पदक बहुत पहले मिल चुका होता।
खैर! खिलाड़ी के तौर पर अपने कैरियर को विराम देने के बाद उन्होंने भिवानी में रहकर ग्रामीण खेल प्रतिभाओं को मुक्केबाज़ी के क्षेत्र में उभारने का बीड़ा उठाया। इसी उद्देश्य से उन्होंने भिवानी बॉक्सिंग क्लब की स्थापना की और अनेक खिलाड़ियों को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर तक पहुंचाया। 2008 के ओलंपिक खेलों में भारत की तरफ से पांच मुक्केबाज़ों ने शिरकत की थी, जिनमें से चार भिवानी बॉक्सिंग क्लब से थे। इनमें से विजेंद्र ने कांस्य पदक जीता, जबकि अखिल व भाई जितेंद्र क्वार्टर फाइनल तक पहुंचे। विजेंद्र सिंह के ओलंपिक पदक जीतने के बाद इस क्लब का बोलबाला और बढ़ गया। इससे प्रदेश के युवाओं में बॉक्सिंग के प्रति रुझान भी कई गुणा बढ़ा, जिसके पीछे नि:संदेह कैप्टन हवा सिंह की मेहनत और लगन का महत्वपूर्ण योगदान है।
खिलाड़ी के तौर पर हवा सिंह को 1966 में प्रतिष्ठित अर्जुन अवार्ड से सम्मानित किया गया। यही नहीं, 1968 में उन्हें भारत के चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ द्वारा बेस्ट स्पोर्ट्समैन ट्राफी प्रदान की गई। मुक्केबाज़ी कोच और मार्गदर्शक के रुप में अद्भुत प्रदर्शन करने के लिए उन्हें सन 2000 में द्रोणाचार्य अवार्ड से सम्मानित किया गया। लेकिन दुःख की बात है कि भारत के राष्ट्रपति के हाथों द्रोणाचार्य अवार्ड हासिल करने से 15 दिन पूर्व ही उनका आकस्मिक निधन हो गया। मुक्केबाज़ी में उनकी लोकप्रियता का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उनके जीवन पर एक फिल्म का निर्माण किया गया है, जिसमें मशहूर अभिनेता जॉन इब्राहिम ने उनका किरदार निभाया है।
– अविनाश सैनी
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