महंगाई की मार देख ल्योहो रहे अत्याचार देख ल्यो जात, धर्म अर गोत के नां पैकिसी छिड़ी तकरार देख ल्यो खूब तरक्की होई देस म्हैंघट ग्ये पर रुजगार देख ल्यो रेप, नसा, नफरत, बेकारीहत्या के औजार देख ल्यो ढोंग रचैं शरधा के नां पैधर्म के ठेकेदार देख ल्यो मेहनत करैं, बांट कै खावैंइसे होवैं सरदार…
Category: कविता
सुनहरी सुबह का गीत
उस सुबह का इंतजार है मुझेजिस सुबह में सब की खातिर प्यार हो वास्ता एक दूसरे के हो गमों सेरास्ता एक दूसरे के हो दिलों सेएक सा हर शख्स से व्यवहार होउस सुबह का इंतजार है मुझे…. ज़्यादती कोई किसी पर न करेजी सके कमज़ोर भी यहां बिन डरेकर्ज़वान न कोई साहूकार होउस सुबह का…
“देश मेरे आबाद रहो”
ऐ देश मेरे आबाद रहोरहती दुनिया तक शाद रहो,तुम फूलो फलो महको चहकोऔर हर दम ही आज़ाद रहोए देश मेरे आबाद रहोरहती दुनिया तक शाद रहो। की खूब तरक्की है तूनेदुनिया में ऊंचा नाम कियानित नई मंज़िलें की हासिलजो हो ना सके वह काम किया।दिए इतने हीरे इस जग कोजिनका कोई पारावार नहींना ऐसा क्षेत्र…
मेरे गांव की माटी
वह मेरे गांव की माटी, भुला दूं किस तरह आख़िर,वह बूढ़े बाप की लाठी, भुला दूं किस तरह आखिर। जहां पर माफ हो जाती थी, मेरी गलतियां सारी,वह मां, वह प्यारी सी दादी, भुला दूं किस तरह आखिर। अभी भी याद आएं गांव की गलियां वो कच्ची सी,वहां बिछड़े हुए साथी, भुला दूं किस तरह…
आज मन एकाकी है
।। मीनू हुड्डा ।। दिशाएँ सर्वत्र ओढ़े नितांत मौन हैं,मर्यादाएँ समस्त, पूर्णतया गौण हैं,हवाओं में न कहीं गर्मजोशी है,अजस्त्र मरघट सी खामोशी है,ओ रे माझी! थाम लो पतवार,अविलम्ब चलो बीच मझधार,कि मुझमें अभी जीवन बाक़ी है।आज मन एकाकी है।। हुआ शुष्क तरु सा अतृप्त जीवन,आवेशों व आवेगों में लिप्त जीवन,ख़ालिस कुंठाओं से पटा जीवन,निर्बाध शंकाओं…
मेघा बरसो
मेघा बरसो रिमझिम-रिमझिम जीवन में उल्लास की खातिरसतरंगी आकाश की खातिरकृषक के विश्वास की खातिरऔर जातक की प्यास की खातिरमेघा बरसो रिमझिम-रिमझिम। बागों में सुबास की खातिरछोटी-छोटी घास की खातिरहर आम और खास की खातिरनव जीवन की आस की खातिरमेघा बरसो रिमझिम-रिमझिम। भंवरों के गुंजान की खातिरवन उपवन की शान की खातिरमोती के निर्माण की…
जवान हो रही बेटी
बेटीजवान हो रही है उसे सिखाओ-चूल्हा-चौकाझाड़ू-पोछासीना-पिरोनाउसे सिखाओ – उठने-बैठनेबोलने-चालनेसजने-संवरनेका सलीका। बेटीजवान हो रही हैआना चाहिए उसेअपनी इच्छाओं कागला दबानासपनों कीबलि चढ़ाना,भावनाओं को मारनेजीत कर भी हारनेसब सहनेकुछ न कहनेजी-तोड़ कमानेऔरहक न जताने का हुनर। बेटीजवान हो रही हैउसे डालनी ही होगीजल्दी उठनेदेर से सोनेपिटने-रोनेऔरपरंपराओं को ढोने कीसहज आदत। बेटीजवान हो रही हैवर्जित है उसके लिएअपने ख्वाबों…
चाहिए सारा जहां
एक टुकड़ा धूपएक मुट्ठी हवाथोड़ा सा खुलापनथोड़ी सी आज़ादीसांस लेने भर कोहो सकते हैं काफ़ीपरजीने के लिए तो चाहिएसारा जहांऔरखुला आसमांहमारी बेटियों को। – अविनाश सैनी
घूंघट
बिना आवाज़ केएक आवाज़बिना चेहरे केएक चेहराबिना नज़रों केदो आंखेंबिना एहसास केजज़्बातों भराएक दिल। ज़िन्दगी भर रहता हैहमारे आसपासहमें कोसते हुएबिना कसूर केचुपचाप सजा भोगते हुए। और हम21वीं सदी के रोबोटदेख नहीं पातेझीने से कपड़े कीसख्त दीवार के परेपल-पलदम तोड़ती संवेदना,महसूस नहीं कर पातेज़िंदगी भरअपनों के बीचमुंह छुपाकर जीने की पीड़ा। मात्र संवेदनहीनता नहींदुनिया कीआधी…
वह जीवनशक्ति
वहजन्म लेती है तोसहम जाती है दुनियाहिल जाती है पितृसत्ताबोझ से दब जाती है धरती। वह बड़ी होती हैकिंवदंतियां गढ़ती हुई,चुपचापसबसे आंख बचाकरऔर एकाएकहो जाती है ढींग कि ढींगकिसी तिलिस्म की तरह। दुनिया के माथे परलकीरें खिंच जाती हैं। जिसके दम पर हैंरंगीन नज़ारेसंसार का तमाम सौंदर्यजिसके होने में है,अपने दुख-दर्द कोखूबसूरत रचनाओं में ढालतीवह…