क्या पाना है, क्या खोना हैअपना-अपना ग़म ढ़ोना है। सारी दुनिया का महाभारतअपने ही भीतर होना है। गर्म हवा में तन झुलसा हैबर्फ मगर मन का कोना है। अपना दिल है शीश महल साएक अंधेरा भी कोना है। सभी कहकहों में डूबे हैंनई तरह का यह रोना है। घटनाओं की नब्ज टटोलोरहो देखते क्या होना…
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ग़ज़ल
कदम कदम आगे बढ़ना हैसीढ़ी दर सीढ़ी चढ़ना है। बाहर-भीतर कुरुक्षेत्र हैहर पल महाभारत लड़ना है। रोज़ नया धोखा मिलना हैरोज़ भरोसा भी करना है। नहीं लिखा जो कभी किसी नेहमको तो वह ख़त पढ़ना है। खुद के भीतर से ही खुद कोएक नया इंसान गढ़ना है।। – अविनाश सैनी# 9416233992