– रोहित नारा, सहायक प्रोफेसर, ऑल इंडिया जाट हीरोज मेमोरियल कॉलेज, रोहतक
अधिकांश उत्तर भारत चौधरी छोटू राम के नाम से परिचित है। समूचे पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और पश्चिमी उत्तर प्रदेश का किसान उन्हें अपना मानता है। उनके जीवन, कार्यों और उनकी विचारधारा पर अनेक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। किसान मसीहा और दलितोद्धारक के अलंकरणों से सम्मानित होने के बावजूद स्वतंत्रता आंदोलन में चौधरी छोटू राम की भूमिका और भारतीय राजनीति में उनके योगदान को लेकर अलग-अलग धारणाएं व्याप्त हैं। पिछले एक दौर में उनके व्यक्तित्व को काफी सीमित करने की कोशिश भी की गई है। इसलिए वर्तमान में एक ऐसे शोध की आवश्यकता महसूस की जा रही थी जो उनके चिंतन के समग्र पहलुओं और वर्तमान संदर्भ में उनकी प्रासंगिकता पर प्रकाश डाल सके, उनके चिंतन का उचित मूल्यांकन कर सके।
पिछले दिनों प्रकाशित हुई राजेंद्र सिंह ‘सोमेश’ की पुस्तक ‘चौधरी छोटूराम : एक चिंतन’ अन्य पुस्तकों से हटकर एक शोधपरक एवं समीक्षात्मक दस्तावेज है। लेखक ने कालखंड के अनुसार चौधरी छोटूराम के सामाजिक और राजनीतिक दृष्टिकोण का अध्ययन कर उन विशेष प्रकरणों को पुस्तक के केंद्र में रखा है जो उस समय ही नहीं, आधुनिक समाज के लिए भी आवश्यक प्रतीत होते हैं। पुस्तक के 5 अध्यायों में चौधरी छोटूराम के चिंतन के प्रमुख बिंदुओं पर विस्तार से प्रकाश डाला गया है, जिन्हें पूर्ववर्ती लेखकों ने या तो बिल्कुल छोड़ दिया था या फिर उन्हें बहुत कम शब्दों में समेट दिया था और जो वर्तमान समय में ज्यादा प्रासंगिक प्रतीत होते हैं।
पहले अध्याय में चौधरी छोटूराम के चिंतन का तुलनात्मक अध्ययन किया गया है। इसमें उस समय की सामाजिक-राजनीतिक परिस्थितियों तथा चौधरी छोटूराम के चिंतन के आधार बिंदुओं पर प्रकाश डाला गया है। इसके अलावा, उस दौर की अन्य विचारधाराओं के बारे में भी बात की गई है। दूसरा अध्याय है – चौधरी छोटूराम और प्रेस। तृतीय चिंतन ‘किसानों के मसीहा चौधरी छोटूराम’, चतुर्थ चिंतन ‘चौधरी छोटूराम और साम्प्रदायिक एकता’ तथा पंचम चिंतन ‘दलितोद्धारक चौधरी छोटूराम’ के शीर्षक से लिखा गया है। हर अध्याय में चौधरी छोटूराम के वक्तव्यों-भाषणों, उनके बारे में अन्य नेताओं के बयानों, विधानसभा की तहरीरों तथा उनके द्वारा लाए गए बिलों सहित विभिन्न प्रामाणिक उदाहरणों से उनके विचारों को प्रस्तुत किया गया है।
आज हम भली-भांति जान चुके हैं कि मीडिया किस तरह किसी व्यक्ति के जीवन को प्रभावित करता है और उसके व्यक्तित्व या उसकी छवि के निर्माण में कितनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। चौधरी साहब के समय में प्रेस और मीडिया उनके कितना विरुद्ध था यह अनेक उदाहरणों के साथ पुस्तक में बताया गया है। एक तरफ, जहां चौधरी साहब व्यक्तिगत रूप से कौमी एकता के पक्षधर थे, वहीं मुस्लिम लीग तथा हिंदू महासभा जैसे सांप्रदायिक संगठनों की आंख की किरकिरी बने हुए थे। ज्यादातर मीडिया इन्हीं संगठनों के प्रभाव में था। इसके अलावा, मीडिया शहरी और धनाढ्य वर्ग द्वारा संचालित था और उन्हीं के हकों की पैरवी करता था, जबकि चौधरी छोटू राम ग्रामीणों और गरीब किसानों के हित की बात करते थे। आर्थिक हितों की टकराहट के चलते उस समय की प्रेस न केवल उनकी उपेक्षा करती थी बल्कि उनके वक्तव्यों को तोड़ -मरोड़ कर पेश करके उन्हें एक खास वर्ग और तबके के खिलाफ दिखाने की कोशिश में रहती थी। इसी के चलते उन्हें अंग्रेजप्रस्त और आजादी का विरोधी दिखाने की भी कोशिश रहती थी। लेखक ने संदर्भों तथा उदाहरणों के साथ इस बात को प्रमाणित किया है कि उस समय की प्रेस ने किस तरह उनकी छवि को खराब करने का प्रयास किया।
लेखक के अनुसार चौधरी छोटूराम ने दलित एवं किसान जातियों के लिए सबसे ज्यादा काम किया। उन्होंने जहां किसानों के हित में अनेक कानून बनवाए वही कामगारों की हालत सुधारने के लिए भी अथक परिश्रम किया। यही कारण है कि उन्हें किसान मसीहा और दलितोद्धारक के रूप में स्मरण किया जाता है। वे हर उस व्यक्ति के हित में थे, जो सामाजिक-आर्थिक रूप से दबा-कुचला और त्रस्त था। उनका हृदय सदा मानवीय करुणा से भरा रहता था। भूमिहीन मजदूर वर्ग को भूमि दान तथा अलग-अलग जातियों पर लगाए गए बलात कर (लाग), जैसे चाक लाग, कतरन लाग, बुनकर लाग आदि से मुक्ति के लिए वे आजीवन संघर्ष करते रहे। जरूरतमंद और तथाकथित निम्न वर्ग के विद्यार्थियों के लिए उनके द्वार सदा खुले रहते थे। कितने ही छात्रों की पढ़ाई का भार वे स्वयं वहन करते थे।
देश के लिए उनके मन में अभूतपूर्व प्रेम था। भारत की एकता और अखंडता के लिए उन्होंने आजीवन विघटनकारी शक्तियों से लोहा लिया उनके जीते जी उनके जीते जी मुस्लिम लीग और जिन्ना पंजाब में अपने पैर नहीं पसार सके। जनता के व्यापक हितों के लिए वे अपने समकालीन नेताओं से भी संघर्ष करते रहे और अंग्रेजों से भी टकराते रहे।
काफी परिश्रम से एकत्रित आंकड़ों को आधार बनाकर लिखी गई यह पुस्तक वर्तमान समय में चौधरी साहब के विचारों की उपादेयता को स्थापित करती है। तथ्यात्मकता इस पुस्तक की सबसे बड़ी खासियत है। यही नहीं, सोमेश जी ने इसमें उस दौर की परिस्थितियों पर बात करते-करते आज के समय की परिस्थितियों का हवाला देने का प्रयास भी किया है, जो इसे प्रामाणिक और रोचक बनाने के साथ-साथ समसामयिक भी बनाती है। इसका अधिक से अधिक प्रचार प्रसार होना चाहिए।
पुस्तक : चौधरी छोटूराम एक चिंतन
लेखक : राजेंद्र सिंह सोमेश
संपादक : अविनाश सैनी
पृष्ठ 84, पेपरबैक संस्करण
सहयोग राशि : 100 रूपए
प्रकाशक : अमन प्रकाशन
मुद्रक: आकांक्षा प्रिंटिंग प्रेस रोहतक
वितरक : संसार बुक डिपो, मेडिकल मोड, रोहतक