– अविनाश सैनी, राजनीतिक विश्लेषक
कांग्रेस के एसआरके गुट, यानी शैलजा, रणदीप सुरजेवाला और किरण चौधरी की कांग्रेस संदेश यात्रा का पहला चरण सोमवार को अम्बाला में पूरा हो गया। यात्रा को हरियाणा भर में भरपूर जनसमर्थन मिला। इससे न केवल कांग्रेस कार्यकर्ताओं में एक नया जोश पैदा हुआ, बल्कि प्रदेश की राजनीति में भूपेंद्र सिंह हुड्डा के एकाधिकार कोे भी चुनौती मिली है। यह संदेश यात्रा को मिली भारी सफलता का ही असर है कि यात्रा के शुरू में इसे शैलजा गुट का एक निजी कार्यक्रम बता कर कार्यकर्ताओं को इससे दूर रहने का संदेश देने वाले प्रदेश प्रभारी दीपक बावरिया को भी अब इसे कांग्रेस का अपना कार्यक्रम कहना पड़ा और इसकी सफलता के लिए कुमारी शैलजा और रणदीप व किरण को बधाई देनी पड़ी। यही नहीं, उन्होंने कहा कि वे खुद 4 और 5 फरवरी को यात्रा में शामिल होने वाले थे, लेकिन इन्हीं दिनों में अचानक पार्टी की एक महत्वपूर्ण बैठक आ जाने के कारण वे ऐसा नहीं कर पाए।
आपको बता दें कि 17 जनवरी को यात्रा शुरू होने से एक दिन पहले बावरिया ने कांग्रेस संदेश यात्रा को कांग्रेस पार्टी का अधिकृत कार्यक्रम मानने से इनकार कर दिया था। उन्होंने इसे शैलजा गुट का निजी कार्यक्रम कहते हुए पत्र लिखकर कार्यकर्ताओं को इसमें शामिल नहीं होने को कहा था। असल में कांग्रेस अध्यक्ष उदयभान और नेता प्रतिपक्ष भूपेन्द्र सिंह हुड्डा और उनके समर्थक विधायकों ने यात्रा का भरपूर विरोध किया था और बावरिया को भी कमोवेश हुड्डा का करीबी ही माना जाता है। इसलिए उन्होंने भरपूर कोशिश की कि SRK को यात्रा से रोका जाए। आरम्भ में संभवतः कांग्रेस अलाकमान का भी यही मानना था कि ऐसे आयोजनों से पार्टी में गुटबंदी बढ़ेगी और इससे पार्टी को नुकसान हो सकता है, लेकिन कुमारी शैलजा अपने फैसले पर अडिग रही और गांधी परिवार में अपनी पैठ के चलते धीरे धीरे आगे बढ़ती रही। तमाम विरोध के बावजूद यात्रा का शुरू होना और निरंतर आगे बढ़ते रहना शैलजा की पहली जीत कही जा सकती है। वे हिसार में यात्रा के उद्घाटन अवसर पर ही पूर्व उपमुख्यमंत्री चंद्रमोहन सहित कई विधायकों, पूर्व विधायकों और अन्य प्रभावशाली नेताओं को अपने साथ जोड़ने में सफ़ल रही। हालांकि हुड्डा गुट के नेता फिर भी लगातार यात्रा को कटघरे में खड़े करने के प्रयास करते रहे। उनकी तरफ से इसी दौरान ज़िला स्तर पर जनाक्रोश रैलियों के आयोजन का कार्यक्रम भी बनाया गया।
शुरुआत में कांग्रेस संदेश यात्रा के मंच से भूपेन्द्र हुड्डा की मंशा और कार्यप्रणाली पर कटाक्ष भी किए गए, जिससे प्रदेश कांग्रेस में गुटबंदी और मजबूत होती दिखाई दी। लेकिन राहुल गांधी के प्रयासों से न्याय यात्रा के बीच में ही अलाकमान ने दोनों पक्षों को बुलाकर गुटबाज़ी दूर करने और कार्यकर्ताओं को एकजुटता का संदेश देने को कह दिया। इसके बाद यात्रा के पोस्टरों पर प्रदेश अध्यक्ष उदयभान और भूपेंद्र हुड्डा के फ़ोटो भी दिखने लगे। साथ ही, हुड्डा गुट के नेता भी SRK पर टिप्पणी करने से परहेज़ करने लगे।
इस के चलते प्रदेश कांग्रेस प्रभारी दीपक बावरिया को भी संदेश मिल गया कि कांग्रेस का केंद्रीय नेतृत्व यात्रा के साथ है। इससे उनके सुर बदल गए और उन्हें खुद यात्रा में शामिल होने की बात कहनी पड़ी। एक समाचार पत्र को दिए इंटरव्यू में उन्होंने कहा कि उन्हें खुद 4 फरवरी को कैथल में और 5 फरवरी को अम्बाला में इस यात्रा में शामिल होना था, लेकिन दिल्ली में अचानक पार्टी की एक मीटिंग आ जाने के कारण वे इसमें नहीं पहुंच पाए। उन्होंने कहा कि यात्रा कामयाब रही है और इसके लिए कांग्रेस के नेता बधाई के पात्र हैं। इन सब बातों का सकारात्मक संदेश गया कि प्रदेश कांग्रेस में गुटबाजी पर अंकुश लग रहा है। ज़ाहिर है कि कांग्रेस की फूट के दम पर सत्ता में बने रहने के मनसूबे देख रहे भाजपा नेताओं के लिए यह एक झटके जैसा है।
कांग्रेस संदेश यात्रा का नेतृत्व कुमारी शैलजा ने किया और वे पहली बार अपने प्रभाव क्षेत्र वाले ज़िलों से बाहर निकलकर प्रदेश स्तर पर खुद को स्थापित करने में सफल रहीं। कहा जा सकता है कि ऐसी सफलता उन्हें तब भी हासिल नहीं हुई थी, जब वे प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष थीं। पूर्व मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा के हरियाणा की राजनीति के केंद्र में आने के बाद से संभवतः ऐसा भी पहली बार हुआ है कि उनकी सहमति के बिना प्रदेश स्तर पर इस तरह का कोई बड़ा आयोजन हो पाया है और उसे ठीक ठाक जनसमर्थन भी मिला है। आपको बता दें कि इससे पूर्व डॉ. अशोक तंवर ने प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रहते ऐसी यात्रा निकालने और प्रदेश स्तरीय कार्यक्रम करने की कोशिश की थी, लेकिन हुड्डा समर्थकों के विरोध के चलते वे इनमें सफल नहीं हो पाए थे।
ऐसा नहीं है कि इस एक यात्रा की सफलता से कांग्रेस ने प्रदेश में अपनी खोई ज़मीन हासिल कर ली है, या प्रदेश के कांग्रेसी नेता व्यक्तिगत स्वार्थों और महत्वाकांक्षाओं को छोड़कर एकजुट हो गए हैं। ड्राइंगरूम पॉलिटिक्स करने वाले कांग्रेस नेताओं ने क्या सच में संघर्ष की राजनीति शुरू कर दी है, यह भी कांग्रेस नेताओं के भविष्य के कदमों से ही तय होगा। हां! इस सब के बावजूद इतना ज़रूर कहा जा सकता है कि इसने प्रदेश में शैलजा के नेतृत्व की स्वीकार्यता को बढ़ाने का काम किया है। गांधी परिवार की गुडबुक्स में शामिल कुमारी शैलजा की स्वीकार्यता रणदीप सुरजेवाला और किरण चौधरी जैसे दिग्गज़ों के बीच भी बढ़ी है और आम लोगों व कार्यकर्ताओं के बीच भी। फ़िलहाल यह कहना जल्दबाज़ी होगा कि हुड्डा की ताकत और पकड़ कम हुई है, पर यह ज़रूर कहा जा सकता है कि SRK की ताकत बढ़ी है।…और सबसे बड़ी बात कि जन संदेश यात्रा से निष्क्रिय और हाशिये पर पड़े कांग्रेस कार्यकर्ताओं को एक नई ऊर्जा मिली है, जो कांग्रेस के लिए जीवनदायिनी साबित हो सकती है।
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