मोदी सरकार ने लॉकडाउन के दौरान अपने कर्मचारियों को पूरी तनख्वाह देने की कंपनियों की बाध्यता को खत्म कर दिया है और इस संदर्भ में दिए गए अपने पुराने निर्देश को वापिस ले लिया है। गत 17 मई को लॉकडाउन के चौथे चरण की घोषणा के साथ गृह मंत्रालय द्वारा जारी नए दिशानिर्देशों में कहा गया है कि श्रमिकों को पूरी सैलरी देने के लिए 29 मार्च को जारी सरकारी आदेश अब प्रभावी नहीं रहेगा। यानी अब कंपनियां लॉकडाउन के दौरान कर्मचारियों को पूरी सैलरी देने के लिए बाध्य नहीं होंगी।
आपको बता दें कि सरकार का पहले दिया गया निर्देश आपदा प्रबंधन अधिनियम 2005 की धारा 10(2)(एल) के तहत 29 मार्च को जारी किया गया था। इसमें राष्ट्रीय कार्यकारी समिति (एनईसी) के अध्यक्ष के रूप में केंद्रीय गृह सचिव की ओर से कहा गया था कि सभी कंपनियों, उद्योगों इत्यादि को अपने श्रमिकों को पूरा वेतन देना होगा। गृह मंत्रालय ने शुरुआती लॉकडाउन के समय उन मकान मालिकों के खिलाफ कार्रवाई करने का निर्देश भी दिया था, जो लॉकडाउन के दौरान किराया देने में असमर्थ विद्यार्थियों या प्रवासी कामगारों पर मकान खाली करने के लिए दबाव बनाएंगे।
इस आदेश में कहा गया था कि चाहे इंडस्ट्री हो, शॉप हो या कॉमर्शियल प्रतिष्ठान हो, सभी को अपने श्रमिकों को समय पर पूरी सैलरी देनी होगी, बिना किसी कटौती के, उस समय तक जब तक कि लॉकडाउन के दौरान उनकी कंपनी बंद है।’ इसके अलावा इसमें ये भी कहा गया, ‘यदि कोई मकान मालिक मजदूरों और छात्रों को घर खाली करने के लिए कहता है तो उसके खिलाफ आपदा प्रबंधन अधिनियम के तहत कार्रवाई होगी।’ इसके विपरीत मंत्रालय के ताजा आदेश में कहा गया है कि, ‘आपदा प्रबंधन अधिनियम 2005 की धारा 10(2)(एल) के तहत एनईसी (राष्ट्रीय कार्यकारी समिति) द्वारा जारी किए गए सभी आदेश 18.05.2020 से अप्रभावी होंगे।’ गौरतलब है कि कामगारों को पूरा वेतन देने के सरकार के निर्देश को कुछ उद्योगपतियों और कंपनी मालिकों ने सुप्रीम कोर्ट में भी चुनौती दी है। उनका तर्क है कि उत्पादन और बिक्री ठप्प होने के कारण वे कर्मचारियों को वेतन कहां से देंगे!