देश में कोरोना संक्रमण के फैलाव को लेकर सरकारी एजेंसियों की घोर लापरवाही सामने आई है। सूचना अधिकार कानून के तहत मिली जानकारी के अनुसार खतरे का पता लगने के बाद से 24 मार्च को लॉकडाउन लगाने तक विदेशों से आए केवल 19 फीसदी लोगों की ही स्क्रीनिंग की गई थी। उड्डयन मंत्रालय से मिली सूचना के अनुसार 15 जनवरी से 23 मार्च की अवधि के बीच विदेशों से आने वाले कुल 78 लाख 4 हजार यात्री भारतीय हवाई अड्डों पर उतरे। इनमें से 15 लाख 24 हजार 266 यात्रियों की स्क्रीनिंग की गई। यानी, 62 लाख 79 हजार 734 यात्री अलग-अलग एयरपोर्ट्स से बिना किसी जांच के देश में दाखिल हुए। इनमें से कितने लोग कोरोना संक्रमित थे, वे देश में कहां-कहां गए और किस-किस से मिले? इसकी कोई जानकारी हमारे पास नहीं नहीं है।
ऐसे में कहा जा सकता है कि देश में संक्रमण फैलने के पीछे विदेशों से बिना जांच के आए इन यात्रियों की भी बड़ी भूमिका हो सकती है, क्योंकि 23 मार्च तक अनेक देशों में कोरोना संक्रमित लोगों की अच्छी-खासी संख्या हो चुकी थी। खास तौर पर यूरोपीय देशों में संक्रमण तेजी से फैल रहा था। परंतु मार्च के शुरुआती दिनों में भारतीय हवाई अड्डों पर यूरोप से आने वाले लोगों को स्क्रीनिंग से छूट दी गई थी।
आरटीआई कार्यकर्ता साकेत गोखले को 11 मई को मिली जानकारी के अनुसार, जनवरी के महीने में केवल चीन और हॉन्गकॉन्ग से आने वाले यात्रियों की ही स्क्रीनिंग की जा रही थी। सत्रह जनवरी को इन देशों से मुंबई, दिल्ली और कोलकाता के रास्ते आने वाले यात्रियों की स्क्रीनिंग शुरू की गई। चार दिन बाद चेन्नई, कोच्चि, बंगलुरू और हैदराबाद एयरपोर्ट को भी इस लिस्ट में शामिल कर लिया गया। दो फरवरी से थाईलैंड और सिंगापुर तथा बारह फरवरी को जापान, दक्षिण कोरिया से आने वाले लोगों की स्क्रीनिंग आरम्भ की गई। इटली को इस सूची में 26 फरवरी को शामिल किया गया, जब वहां कोरोना संक्रमितों की संख्या 322 हो चुकी थी। तब तक महामारी पूरी दुनिया के 37 देशों में फैल चुकी थी। यूरोप में संक्रमितों की संख्या 400 के करीब थी। इसके बावजूद इटली के अलावा अन्य यूरोपीय देशों से आने वाले यात्रियों की स्क्रीनिंग नहीं की जा रही थी। संक्रमण रोकने के भारत के प्रयासों पर टिप्पणी करते हुए 25 अप्रैल को डब्ल्यूएचओ ने भी रेखांकित किया था कि यहां कोरोना संक्रमण के अधिकतर केस फरवरी के अंत और मार्च के महीने में यूरोप से वापिस आए लोगों के माध्यम से फैले हैं।
गौरतलब है कि 24 फरवरी को ही अहमदाबाद में नमस्ते ट्रम्प कार्यक्रम आयोजित किया गया था, जिसके लिए सैंकड़ों अमेरिकी अधिकारी-कर्मचारी और नेता भारत आए थे। इस दौरान अहमदाबाद में ट्रम्प का रोड शो और सरदार वल्लभभाई पटेल स्टेडियम में लाखों लोगों की रैली का आयोजन हुआ था। ट्रम्प, उनकी पत्नी और बेटी, अमेरिकी अधिकारियों की फौज के साथ आगरा के ताजमहल और दिल्ली के स्कूल में भी गए थे। उस समय तक अमेरिका में संक्रमण काफी फैल चुका था और भारत में भी 30 जनवरी को कोरोना का पहला मरीज मिल चुका था।
भारत में 4 मार्च को सभी देशों से आने वाले हवाई यात्रियों के लिए स्क्रीनिंग अनिवार्य की गई। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार तब तक दुनिया के 76 देशों में कोरोना संक्रमितों की संख्या 93,000 को पार कर चुकी थी और इनमें से 14,000 चीन से बाहर के
थे। भारत में पहला केस मिलने के लगभग दो माह बाद अंतरराष्ट्रीय उड़ानों पर प्रतिबंध लगाया गया। तब तक तकरीबन 63 लाख लोग बिना जांच के देश में प्रवेश कर चुके थे।
देश के अनेक लोगों का मानना है कि यदि डब्ल्यूएचओ की चेतावनियों पर ध्यान देते हुए शुरुआती दौर में ही अधिक सावधानी बरती जाती तथा विदेशों से आने वाले यात्रियों की अच्छे से जांच करके उनको 14 दिन के लिए कॉरेन्टीन कर दिया जाता तो देश को वर्तमान स्थिति में पहुंचने से रोका जा सकता था। विपक्षी दलों सहित देश के एक बड़े वर्ग का कहना है कोरोना हवाई जहाजों के माध्यम से देश में अमीर लोग देश में लाए, लेकिन उसका सबसे अधिक नुकसान गरीबों, मजदूरों और किसानों को उठाना पड़ रहा है।