देशभर में हुए लॉकडाउन के कारण सबसे बुरी हालत मजदूरों की हुई है।शासन-प्रशासन की घोर अनदेखी के चलते वे सैकड़ों किलोमीटर की यात्रा पैदल ही तय करने को मजबूर हैं। लेकिन घर लौटने की जद्दोजहद में पुलिस की मार खाते, भूख-प्यास से दम तोड़ते और दुर्घटनाओं में जान गंवाते इन मजदूरों की मार्मिक कथाओं के बीच झारखंड सरकार ने एक सकारात्मक कदम उठाया है। अन्य सरकारें जहां दूसरे राज्यों में फंसे भूखे-प्यासे, बेबस कामगारों को घर तक जाने के लिए बस और ट्रेन भी उपलब्ध नहीं करवा पा रही, वहीं झारखंड सरकार ने लद्दाख में फंसे अपने 60 श्रमिकों को विमान से वापिस लाने की पहल की है।
ये सभी प्रवासी मजूदर लद्दाख में सीमा सड़क संगठन यानी, बॉर्डर रोड ऑर्गेनाइजेशन, की एक परियोजना में कार्यरत थे और अनिश्चितता के माहौल में दो महीने से तनाव में जी रहे थे। आखिर घरेलू उड़ान शुरू होते ही हेमंत सोरेन सरकार ने इन्हें विमान के जरिए अपने घर पहुंचाने का फैसला लिया। 29 मई को 60 मजदूरों का यह समूह स्पाइसजेट की उड़ान से नई दिल्ली पहुंचा और फिर शाम को इंडिगो की फ्लाइट से अपने गृह राज्य झारखंड की राजधानी रांची के लिए रवाना हुआ।
आपको बता दें कि 25 मई से घरेलू यात्री उड़ान शुरू होने के बाद कई संस्थानों और नियोक्ताओं ने अपने यहां फंसे हुए श्रमिकों को विमान के जरिए वापिस भेजने का प्रबंध किया है। सोनू सूद जैसे इन्सानियत के फरिश्तों ने भी अपने सीमित साधनों से मजदूरों को विमान से घर भेजने का बड़ा काम किया है। लेकिन यह पहला मामला है, जब किसी राज्य सरकार ने एक साथ कई प्रवासी मजदूरों को वाणिज्यिक उड़ानों के माध्यम से वापिस लाने का प्रबंध किया हो।
प्राप्त जानकारी के अनुसार झारखंड के दुमका जिले के रहने वाले मजदूर लद्दाख में कारगिल जिले के बटालिक में फंसे हुए थे। सभी मजदूरों को चिकित्सीय परीक्षण के बाद सीमा सड़क संगठन की सहायता से 28 मई को लेह में लाकर एक शिविर में ठहराया गया। झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने ट्वीट के माध्यम से बताया, ” हम अपने प्रवासी मजूदरों को सुरक्षित घर वापिस लाने के लिए प्रतिबद्ध हैं। हमारी सरकार 60 मजदूरों को विमान के जरिए वापस ला रही है जोकि बटालिक-कारगिल में फंसे हुए थे। उन्हें लेह से रांची लाया जा रहा है।”
पता चला है कि सोरेन ने गृह मंत्री अमित शाह को पत्र लिखकर अंडमान-निकोबार, लद्दाख और उत्तर-पूर्वी राज्यों में फंसे मजदूरों को निजी विमान से वापिस लाने की अनुमति देने की मांग की थी, क्योंकि वहां से मजदूरों को लाने के लिए कोई अन्य परिवहन सुविधा उपलब्ध नहीं है। मुख्यमंत्री कार्यालय से प्राप्त जानकारी के अनुसार, उन्हें केंद्र की ओर से कोई सकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं मिली और मुख्यमंत्री ने स्वयं आगे बढ़कर वाणिज्यिक उड़ानों का प्रबंध किया। उन्होंने बताया कि मजदूरों को वापिस लाने के लिए करीब आठ लाख रुपए का खर्च आया है।
लेह हवाईअड्डे से एक प्रवासी मजदूर जॉन पोलस हंसदा ने फोन पर पीटीआई-भाषा को बताया, ”हमारे कुछ लोग इस बात की उम्मीद खो चुके थे कि वे दोबारा अपने परिवार को देख सकेंगे, लेकिन मैंने अपने साथियों से कहा कि हम अपने गांव लौटेंगे। मैंने झारखंड सरकार से संपर्क किया, जिसने तत्काल प्रतिक्रिया दी और हमारी वापसी का प्रबंध किया।”
झारखंड सरकार ने जिस तरह अपना राजधर्म निभाया है, उसने उम्मीद की एक नई किरण दिखाई है। संभव है कि हेमंत सरकार की यह मानवीय पहल केन्द्र तथा अन्य राज्य सरकारों की संवेदना को झकझोरने का काम करे और वे भी मजदूरों के प्रति अपने फर्ज को निभाने की दरियादिली दिखाएं।