अविनाश सैनी, सारी दुनिया। हरियाणवी सिनेमा एक नए दौर में प्रवेश करने जा रहा है और वह ऐतिहासिक दिन है 8 नवम्बर का। इस दिन प्रदेश के ख्यातिप्राप्त लोककवि पं. लख्मीचंद के जीवन संघर्ष पर मशहूर बॉलीवुड अभिनेता यशपाल शर्मा की बहुप्रतीक्षित फिल्म “दादा लख्मी” रिलीज होगी। यशपाल द्वारा निर्देशित यह फिल्म सर्वश्रेष्ठ हरियाणवी फिल्म के राष्ट्रीय अवार्ड (स्वर्ण कमल) सहित अभी तक 68 राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय अवार्ड्स जीत चुकी है। यही नहीं, यह पहली हरियाणवी फिल्म है, जिसे दुनिया के सबसे प्रतिष्ठित ‘कान्स फिल्म फेस्टिवल’ में दिखाए जाने का गौरव हासिल हुआ है। यशपाल शर्मा ने कहा है कि इस फिल्म के लिए उन्होंने और उनकी टीम ने जान लगाई है। उन्हें उम्मीद है कि फिल्म दर्शकों को खींचने में सफल होगी और उनका भरपूर मनोरंजन करेगी।
पिछले दिनों फ़िल्म की प्रमोशन के सिलसिले में यशपाल जी दादा लख्मी की टीम के साथ रोहतक के पठानिया स्कूल में आए। इस दौरान उन्होंने फिल्म और उसको बनाने के दौरान के अनुभवों को साझा करने के साथ साथ अपने फिल्मी केरियर व हरियाणवी सिनेमा से जुड़े सवालों पर बेबाक टिप्पणी की। उन्होंने कहा कि हरियाणवी सिनेमा अब परिपक्व हो रहा है। ‘हरफूल जाट जुलानी वाला’, ‘वीरा और शेरा’ के बाद ‘बहुराणी’ व ‘सांझी’ से शुरू हुए हरियाणवी सिनेमा ने ‘चन्द्रावल’ के रूप में स्वर्णिम सफलता के चरम को छुआ था। इसके बाद फिल्मों की जो बाढ़ आई उसमें बेहूदगी अधिक और संवेदनशील प्रयास कम नज़र आए। हालांकि बीच बीच में कुछ अच्छे प्रयास भी हुए। गुलाबो, छैल गेल्याँ जांगी, प्रेमी रामफल, जर जोरू और जमीन, जाट, जाटणी व चन्द्रावल 2 के रूप में जो प्रयास हुए उन्हें नकारा नहीं जा सकता। इस बीच लाडो जैसी फ़िल्म भी आई, जिसने पुनः हरियाणवी सिनेमा को एक नई दिशा देने का प्रयास किया।
हरियाणवी सिनेमा के इतिहास में एक दौर ऐसा भी आया जब बड़े फिल्मी घरानों व कलाकारों ने यहां की बोली में यहां के मुद्दों को उठाया। इस कड़ी में आमिर खान की दबंग, सलमान खान की सुलतान, कंगना रनौत की एनएच 10 काफी रचित व सफल रही। बाद में सुभाष कपूर ने गुड्डू रंगीला बनाई, बेशक वह ज्यादा प्रचार नहीं पा सकी।
बकौल यशपाल शर्मा, इस समय हरियाणवी सिनेमा में बेस्ट काम हो रहा है। पगड़ी, सतरंगी के रूप में प्रादेशिक स्तर पर जिस गंभीर किस्म के सिनेमा की शुरुआत हुई उसे स्टेट यूनिवर्सिटी ऑफ परफार्मिंग आर्ट्स (सुपवा) के विद्यार्थियों ने काफी तेजी से और सही दिशा में आगे बढ़ाया। स्टेज ऐप ने भी इसमें काफी अहम योगदान दिया। कोरोना के बाद, अभी भी कई अच्छी फिल्में आई हैं, लेकिन अफसोस कि बात है कि उन्हें पर्याप्त दर्शक नहीं मिल पाए। उन्होंने कहा कि प्रदेश के कलाकार अपनी संस्कृति को आगे बढ़ाने की लड़ाई लड़ रहे हैं, लेकिन दर्शकों के सहयोग के बिना यह लड़ाई अधूरी है। दर्शक सिनेमाघरों में आएं और फ़िल्म देखें,यह बहुत ज़रूरी है। फिर वे चाहे उनकी आलोचना करें, पर देखें तो!
दादा लख्मी के बारे में यशपाल ने बताया कि यह मात्र एक फ़िल्म नहीं, एक यज्ञ है, जिसमें सबकी आहुति आवश्यक है। उन्होंने कहा कि यह फ़िल्म बनाने के बाद उन्हें ऐहसास हुआ है, कि अब वे कलाकार होने का हक अदा कर पाए हैं। दर्शकों के लिए उन्होंने नारा दिया : अभी नहीं, तो कभी नहीं – दादा लख्मी। उन्होंने कहा कि यह फ़िल्म उनके 6 साल के सतत प्रयासों का फल है। हालांकि यह शुरुआत भर है। इस फ़िल्म से कई और फिल्मों की पृष्ठभूमि तैयार होगी। दादा लख्मी का अगला भाग बनाने की योजना है, जो और भी बेहतरीन होगा। इसके अलावा भी, फ़िल्म का एक एक किरदार पूरी पूरी फिल्म का हकदार है। बस, आप 8 नवम्बर को सिनेमाहाल में पहुंच कर हमारी कोशिश को सफल बना दो, हम आपको अच्छे सिनेमा से महरूम नहीं रहने देंगे।
इस अवसर पर फ़िल्म के प्रोड्यूसर रविन्द्र राजावत, लेखक व अभिनेता राजू मान, कोऑर्डिनेटर रामपाल बल्हारा, गायक प्रेम देहाती व सोमबीर कथूरवाल, कोरियोग्राफर लीला सैनी, किशोर लख्मी योगेश वत्स, किशोर लख्मी की बहन आकांक्षा भारद्वाज, लख्मी के पिता मुकेश मुसाफिर, सहायक निर्देशक रंजीत चौहान, कैमरा सहायक प्रवीन व विकास कौशिक, नरेश वत्स, अल्पना शर्मा, सोनू पाची, कबीर, रवि सहित फ़िल्म के प्रोमोशन से जुड़े अनेक व्यक्ति उपस्थित थे। पठानिया स्कूल की ओर से मैडम वर्षा और अंशुल पठानिया ने कलाकारों का स्वागत किया। फ़िल्म में किशोर लख्मी की महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाला योगेश वत्स इसी स्कूल का विद्यार्थी है।