क्या इतनी महत्वपूर्ण है स्टैंडिंग कमेटी?

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद आखिरकार राजधानी दिल्ली के Mayor और Deputy Mayor का चुनाव शांतिपूर्वक हो गया। आप की शैली ओबेरॉय मेयर और आले मोहम्मद डिप्टी मेयर चुने गए। लेकिन MCD की Standing Committee के 6 सदस्यों के चुनाव में बवाल हो गया। आप और भाजपा दोनों ही MCD House में पूरी रात डटे रहे, जमकर नारेबाजी, तू-तू मैं-मैं व हाथापाई हुई, एक दूसरे पर पानी की बोतलें फेंकी, मगर चुनाव प्रक्रिया आगे नहीं बढ़ पाई। असल में, मेयर व डिप्टी मेयर के चुनाव के बाद जब शाम को सदन की कार्यवाही शुरू हुई तो मोबाइल फोन मतदान केंद्र के अंदर ले जाने पर भाजपा पार्षदों ने आपत्ति जताई और फिर रातभर नारेबाजी व शोरगुल का दौर चला जो अगले दिन भी जारी रहा।
आखिर क्यों अड़े हैं दोनों पक्ष? क्या है Standing Committee और क्या इसके सदस्य इतने महत्वपूर्ण हैं कि एक-एक वोट के लिए मारामारी की नौबत आ जाए! सच में, दिल्ली एमसीडी की स्टैंडिंग कमेटी इतनी महत्वपूर्ण है कि मेयर चुनाव से भी ज्यादा ड्रामा इसमें देखने को मिला। स्टैंडिग कमेटी को हिंदी में स्थायी समिति कहते हैं। दिल्ली नगर निगम (MCD) में मेयर नाममात्र का मुखिया होता है। एमसीडी की सारी शक्तियां स्थायी समिति के पास होती हैं। मेयर की हैसियत कमोवेश सभापति जैसी होती है और स्थायी समिति को आप एमसीडी की सरकार कह सकते हैं। सारी कार्यकारी शक्तियां स्थायी समिति के पास ही होती हैं। स्थायी समिति में कुल 18 सदस्य होते हैं, इनमें से छह सदस्यों का चुनाव सदन में होता है। शेष 12 सदस्य अपने-अपने जोन के प्रतिनिधि होते हैं। दोनों दल स्थायी समिति में बहुमत हासिल कर एमसीडी की सत्ता पर काबिज होना चाहते हैं। इसीलिए स्टैंडिंग कमेटी के चुनाव में इतना बावेला मचा है।
एमसीडी और मेयर की शक्तियां
MCD जन्म प्रमाणपत्र, मृत्यु प्रमाणपत्र, संपत्ति कर, बिल्डिंग का प्लान, साफ-सफाई, मच्छरों की रोकथाम, सड़क पर आवारा पशुओं की रोकथाम आदि सुविधाओं तथा समस्याओं के समाधान के लिए काम करती है। MCD का प्रमुख मेयर होता है लेकिन सिर्फ नाम के लिए। कॉर्पोरेशन के प्रमुख के रूप में मेयर को बहुत सीमित शक्तियां मिलती हैं जिसमें से सबसे प्रमुख है सदन की बैठक बुलाना। इसलिए मेयर की हैसियत सदन के सभापति जैसी होती है।
क्या स्टैंडिंग कमेटी मेयर से अधिक शक्तिशाली है?
इसका जवाब है, हां। दिल्ली एमसीडी में स्टैंडिंग कमेटी ही सही अर्थों में प्रभावी तरीके से कॉर्पोरेशन का कामकाज और प्रबंधन करती है। उदाहरण के रूप में, स्टैंडिंग कमेटी की प्रोजेक्ट्स को वित्तीय मंजूरी देती है। नीतियों को लागू करने से पहले चर्चा करके उसे अंतिम रूप देने में भी स्टैंडिंग कमेटी की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। कहा जा सकता है कि एमसीडी की यह मुख्य डिसीजन-मेकिंग बॉडी होती है, जैसे किसी राज्य में मंत्रीमंडल फैसला लेने वाला समूह होता है। दिल्ली में स्थायी समिति के बगैर एमसीडी कुछ नहीं है।
स्थाई समिति का एक अध्यक्ष (Chairperson) और एक उपाध्यक्ष (Deputy Chairperson) होता है। इन्हें स्थाई समिति के सदस्यों में से ही चुना जाता है। किसी भी राजनीतिक दल के लिए स्टैंडिंग कमेटी में स्पष्ट बहुमत होना बेहद महत्वपूर्ण होता है। इससे नीतियां बनाने और वित्तीय फैसले लेने में आसानी होती है।
दिल्ली में एमसीडी 12 जोन में बंटी है। हर जोन में एक वार्ड कमेटी होती है जिसमें क्षेत्र के सभी पार्षद और नामित पार्षद (Alderman) शामिल होते हैं। स्थाई समिति में हर जोन का एक-एक प्रतिनिधि (कुल 12) शामिल होता है। मेयर चुनाव के बाद छह सदस्यों को एमसीडी हाउस में सीधे चुना जाता है। इन्हीं को लेकर सारा बवाल हो रहा है। आप ने 4 उम्मीदवार खड़े किए हैं और भाजपा ने 2 उम्मीदवार मैदान में उतारे हैं। आप को अपने चौथे प्रत्याशी की जीत में संदेह नज़र आ रहा है और भाजपा को खतरा है कि कहीं उसका दूसरा उम्मीदवार हार न जाए।
यही कारण है कि भाजपा और आप ने स्टैंडिंग कमेटी के सदस्यों के चुनाव को प्रतिष्ठा का मुद्दा बना लिया। अगर भाजपा हारती है तो उसके पास दिल्ली में निचले स्तर पर कुछ नहीं बचेगा। वहीं अगर बीजेपी स्थायी समिति में अपना दबदबा बनाने में सफल हो जाती है तो वह हार कर भी एमसीडी में जीत जाएगी।