आप सभी को 77वें स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं! बीते 76 वर्षों में भारत ने न केवल दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के रूप में प्रतिष्ठा हासिल की है, बल्कि अन्य देशों की स्वतंत्रता की रक्षा के लिए भी उल्लेखनीय भूमिका निभाई है। करीब 350 साल की औपनिवेशिक पराधीनता के चलते कंगाल हो चुका भारत अब विश्व की मजबूत अर्थव्यवस्थाओं में शुमार है। जिस ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारत को गुलाम बनाया, उसका मालिक अब एक भारतीय है। जिस ग्रेट ब्रिटेन की सत्ता का सूरज अस्त नहीं होता था, उस का प्रधानमंत्री भी भारतीय मूल से ही है। यह काबलियत का ही नमूना है कि दुनिया के सबसे विकसित और ताकतवर देशों की तरक्की में भारतीय अहम भूमिका निभा रहे हैं। लेकिन अपार सफलताओं के बावजूद आज भारतीय लोकतंत्र गहरी चुनौतियों से जूझ रहा है। निःसंदेह आगे का समय और भी चुनौतीपूर्ण होने वाला है, जिससे हमारे समाज को, विशेष रूप से युवाओं को दो-चार होना पड़ेगा।
भारतीय लोकतंत्र के सामने सबसे बड़ी चुनौतियों की बात करें तो आज विभिन्न समुदायों के बीच खाई लगातार बढ़ती जा रही है। हालांकि आपसी तनाव-टकराव की नींव अंगेज़ों के समय से ही डाली जा चुकी थी, जिसकी परिणीति आज़ादी के दौरान हुए दंगों के रूप में हुई थी। इसके बाद भी दंगे इस देश की हक़ीक़त बने रहे, लेकिन आपसी विश्वास और ज़रूरत के समय एक-दूसरे के साथ खड़े होने की सदियों पुरानी रिवायत इतनी मजबूत थी कि वक्ती नफ़रत से उभर कर जीवन चंद दिनों में ही पटरी पर लौट आता था। इसका सबसे बड़ा कारण था – संवाद की गुंजाइश और एक-दूसरे के अस्तित्व की स्वीकार्यता। लेकिन पिछले एक दौर में एक-दूसरे को लेकर ईर्ष्या, नफ़रत, शत्रुता इस कदर बढ़ गई कि हमारे भीतर अपने से अलग सोच व पहचान के व्यक्ति अथवा समुदाय को सहन करने की शक्ति बहुत घट गई है। आपसी संवाद शून्य हो गया है। ऐसे में नफ़रत का व्यापार करने वाली देश व समाज विरोधी ताकतें मुखर हो गई हैं। नफ़रत स्थाई होती जा रही है। इससे एक पूरी युवा पीढ़ी मानसिक विकृति का शिकार हो रही है। अगर ज हम अपने बच्चों को जेहादी मानसिकता और फ़ासीवाद के चंगुल से नहीं बचा पाए, तो देश व समाज का बहुत बड़ा नुकसान हो जाएगा और आने वाली पीढियां हमें कभी माफ नहीं करेंगी। मणिपुर की घटना हमारे सामने है, जहां गृहयुद्ध जैसे हालात पैदा हो गए हैं। हमारे देश के सबसे संवेदनशील राज्यों में शामिल यह हिस्सा पिछले 4 माह से जल रहा है। हमेशा साथ रहते आए समुदाय एक दूसरे के खिलाफ मोर्चा खोले हुए हैं और राज्य सरकार मूकदर्शक बनी हुई है। हरियाणा के मेवात में भी ऐसे हालात पैदा करने की कोशिश की जा रही है। निश्चित रूप से यह हमारी आज़ादी और लोकतंत्र के लिए नुकसानदायक है कि हम विकसित और सभ्य देशों की श्रेणी में शामिल होने की बजाय गृहयुद्धों में फंसे अराजक, तानाशाह और फ़ासिस्ट देशों की तरह बनते जा रहे हैं। इसलिए किसी भी सूरत में हमें अपने भीतर दूसरों के लिए स्थाई जगह बनाती जा रही नफ़रत को समझना है, उस से पार पाना है। एक दूसरे को समझना है, उसके अस्तित्व को स्वीकार करना है और सबसे बड़ी बात, आपस में संवाद बनाए रखना है। यदि हम यह कर पाए तो भारत को आर्थिक महाशक्ति और विश्वगुरु बनने से कोई नहीं रोक सकता।
- अविनाश सैनी।