1. गर्भावस्था में जननी के स्वास्थ्य का प्रभाव बच्चे की वृद्धि और विकास पर अत्याधिक होता है। एक स्वस्थ जननी ही स्वस्थ शिशु को जन्म दे सकती है। गर्भ काल में निम्नलिखित हालत का बच्चों के ऊपर बुरा प्रभाव पड़ता है :-
- मां की खुराक में पोषक तत्वों की कमी।
- गिर जाने अथवा किसी दुर्घटना के कारण पेट पर चोट लग जाना और समय से पूर्व ही दर्दों के कारण शिशु का पैदा हो जाना।
- गर्भाधान के प्रथम 3 महीनों में वायरल इनफेक्शन होना।
- गर्भाधान के प्रथम 3 महीनों में एक्स रे आदि करवाना।
- गर्भाधान के अंतिम महीनों में सिफलिस का होना।
- गर्भ काल में मधुमेह अथवा टॉक्सेमिया का होना।
- गर्भकाल में आवल (प्लेसेंटा) की उचित वृद्धि न होने के कारण भ्रूण तक पूरी मात्रा में ऑक्सीजन के न पहुंचने से भी शिशु की वृद्धि में अवरोध उत्पन्न हो जाता है ।
2. खुराकी कारक (न्यूट्रीशनल फैक्टर्स): यदि गर्भ काल में जननी की खुराक अपूर्ण हो तो कम भार वाले बच्चे पैदा होते हैं, जो जन्म के बाद शीघ्र रोगी हो जाते हैं और कई बार मर भी जाते हैं। इसलिए गर्भ काल में मां के लिए संतुलित पोषक खुराक लेना आवश्यक है ताकि शिशु की वृद्धि और विकास उचित ढंग से हो सके।
3. अनुवांशिकता (Heredity) : अनुवांशिकता से तात्पर्य है कि माता-पिता से बच्चे को जींज द्वारा शारीरिक और मानसिक गुणों की प्राप्ति, जिनमें चमड़ी का रंग ,आंखों का आकार और रंग, कद, बुद्धिमता आदि शामिल हैं। अनुवांशिकी बच्चे के शरीर की वृद्धि और आकार का निर्णय करती है।
4. वातावरण (एनवायरमेंट ) : वातावरण बच्चे की विकास को अत्यधिक प्रभावित करता है । इसमें शामिल हैं :-
- ऋतु, धूप और प्रकाश
- साफ हवा और घर की स्वच्छता
- बच्चे को दी गई खुराक की मात्रा
- व्यायाम, आराम और मनोरंजन
- इंफेक्शन और चोट आदि।
5. सामाजिक-आर्थिक स्थितियां (सोशियो-इकनोमिक कंडीशन) : पारिवारिक जीवन-पद्धति का भी वृद्धि और विकास पर बहुत प्रभाव होता है। अमीर घरों के बच्चों का शारीरिक भार और कद सामान्य होता है क्योंकि उन्हें संतुलित खुराक मिलती है, जबकि गरीब परिवारों के बच्चों की मुख्य जरूरतें रोटी, कपड़ा आदि भी ठीक ढंग से पूरी नहीं हो पाती। बदहाली और गरीबी के सामाजिक और आर्थिक हालात के कारण बच्चों में अनेक रोग पैदा हो जाते हैं और कई बार तो मृत्यु तक हो जाती है।
6. हारमोंस : ग्रंथियां बच्चे की वृद्धि और विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। थायराइड हार्मोन की कमी के कारण बच्चा मानसिक रूप से असंतुलित हो सकता है। वृद्धि वाले हार्मोन अधिक मात्रा में पैदा होने के कारण दैत्याकार (gigantism) या कमी होने के कारण बौनापन हो सकता है।
7. व्यायाम (कसरत) : खून को गतिशीलता प्रदान करता है जिससे शारीरिक कार्य करने की योग्यता में वृद्धि होती है ।
8. शिशु की खुराक (इन्फेंट्स न्यूट्रिशन) : एक से 2 वर्ष के मध्य की आयु में खाई गई खुराक जीवन और शारीरिक वृद्धि तथा विकास के लिए अत्यंत आवश्यक है । बच्चे की खुराक संबंधी जरूरतें उसकी आयु, लिंग, वृद्धि की दर और योग्यता पर निर्भर करती है।
डॉ. रणबीर सिंह दाहिया
(जन स्वास्थ्य अभियान)