क्या पाना है, क्या खोना है
अपना-अपना ग़म ढ़ोना है।
सारी दुनिया का महाभारत
अपने ही भीतर होना है।
गर्म हवा में तन झुलसा है
बर्फ मगर मन का कोना है।
अपना दिल है शीश महल सा
एक अंधेरा भी कोना है।
सभी कहकहों में डूबे हैं
नई तरह का यह रोना है।
घटनाओं की नब्ज टटोलो
रहो देखते क्या होना है।
सपनों की भी फसल कटेगी
बीज आस का बस बोना है।
– अविनाश सैनी
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