कदम कदम आगे बढ़ना है
सीढ़ी दर सीढ़ी चढ़ना है।
बाहर-भीतर कुरुक्षेत्र है
हर पल महाभारत लड़ना है।
रोज़ नया धोखा मिलना है
रोज़ भरोसा भी करना है।
नहीं लिखा जो कभी किसी ने
हमको तो वह ख़त पढ़ना है।
खुद के भीतर से ही खुद को
एक नया इंसान गढ़ना है।।
– अविनाश सैनी
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