चमन में रंग-औ-बू है, तो होली है,
प्यार की जुस्तजू है, तो होली है।
मैं ही मैं हूं, तो फाग क्या ख़ाक होगा,
संग में मेरे ‘गर तू है, तो होली है।
हिज़्र की रात आंसुओं में बह जाए,
वस्ल की आरजू है, तो होली है।
ज़हर नफरत का दिल से निकल जाए,
खुशी से गाल सुर्खरू है, तो होली है
क़त्ल-औ-ग़ारत से तंग आ गई दुनिया,
अम्न-औ-चैन हर-सू है, तो होली है।
– अविनाश सैनी
रंग-औ-बू : रंग और खुश्बू
जुस्तजू : तलाश
हिज़्र : जुदाई
वस्ल : मिलन
आरजू : इच्छा
क़त्ल-औ-ग़ारत : मारकाट और तबाही
हर-सू : हर तरफ
