हरियाणा के वरिष्ठ लेखक, सामाजिक-राजनीतिक चिंतक, बुद्धिजीवी, पत्रकार और शिक्षाविद प्रो. दौलत राम चौधरी नहीं रहे। वे 86 वर्ष के थे और कई दिनों से बीमार चल रहे थे। उन्होंने 2 जून को तड़के अपने निवास पर अंतिम सांस ली। डीआर चौधरी के नाम से प्रसिद्ध डॉ. चौधरी मूलतः हरियाणा के चौटाला गांव के रहने वाले थे, लेकिन वे लम्बे समय से रोहतक में रह रहे थे। उनके एक बेटे अश्विनी चौधरी फिल्म निर्देशक हैं, जिनकी पहली हरियाणवीं फिल्म लाडो ने सर्वश्रेष्ठ हरियाणवीं फिल्म का खिताब जीता था। दूसरे बेटे डॉ. भूपेंद्र चौधरी दिल्ली में प्रोफेसर हैं और लेखन व सामाजिक कार्यों में सक्रिय हैं। बेटी प्रोफेसर कमला भी अध्यापन के क्षेत्र से जुड़ी हैं। उनकी पत्नी श्रीमती परमेश्वरीदेवी भी जन संगठनों से जुडी रही हैं।
दिल्ली विश्वविद्यालय में अध्यापन के बाद प्रो. डीआर ने पींग के नाम से साप्ताहिक समाचार पत्र का संपादन-प्रकाशन किया जो संभवत: हरियाणा का पहला खोजी अख़बार था। वे हरियाणा लोक सेवा आयोग के चेयरपर्सन और हरियाणा प्रशासनिक सुधार आयोग के सदस्य भी रहे। 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले उन्होंने नागरिक समाज की अगुवाई करते हुए पब्लिक मेनिफेस्टो तैयार किया और राजनेताओं को जनापेक्षाओं से अवगत करवाते हुए भारतीय राजनीति को नई दिशा देने की कोशिश की। वे ‘हरियाणा अध्ययन केंद्र’ के संस्थापक भी रहे।
समाज सुधारक तथा जनता के बुद्धिजीवी के रूप में मशहूर डीआर ने Haryana At Crossroads : Problems And Prospects और Khap Panchayat And Modern Age जैसी किताबें लिखीं। इनके साथ-साथ उन्होंने विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक, ऐतिहासिक एवं ज्वलंत मुद्दों पर सैंकड़ों लेख लिखे। डीआर बेहद अध्ययनशील और जिज्ञासु प्रवृत्ति के थे। इसका अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि खराब स्वास्थ्य के चलते जब वे सामाजिक जीवन में सक्रिय नहीं रहे, तब भी उन्होंने पुस्तकों को खुद से अलग नहीं होने दिया। अपने अंतिम दिनों में जीवन-मृत्यु के बीच संघर्ष करते हुए भी वे निरंतर पढ़ते रहे। हंसमुख और मिलनसार स्वभाव के धनी डीआर ने कभी अपनी विद्वता का अहंकार नहीं किया। वे हमेशा पत्रकारों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और और शोधार्थियों के लिए सुलभ बने रहे। कोई भी, किसी भी समय उनके साथ घंटों विमर्श कर सकता था। वे ताउम्र न्याय, समानता, लैंगिक संवेदनशीलता, सामाजिक एकता, संवैधानिक मूल्यों और दबे-कुचले लोगों के हक में डटे रहे। इसके चलते उन्हें रूढ़िवादियों की आलोचना भी झेलनी पड़ी, लेकिन बौद्धिक विमर्श में वे कभी उन्हें परास्त नहीं कर पाए।
बुद्धिजीवी और हरियाणवी समाज के गहरे जानकर होने के चलते उनके राजनेताओं से भी निकट संबंध रहे, लेकिन अपनी स्पष्टवादिता और ईमानदारी के चलते वे किसी के साथ भी लंबे समय तक नहीं चल पाए। डीआर चौधरी कभी सत्ता के पिछलग्गू नहीं बने। प्रदेश में सरकार किसी की भी रही हो, उन्होंने मुद्दों और नीतियों पर खुलकर लिखा। पींग ने कई मंत्रियों, बड़े नौकरशाहों के घोटालों का पर्दाफाश किया। एक समय चौधरी देवीलाल के करीबी रहे प्रो. चौधरी को पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला से मतभेदों के चलते जेल भी जाना पड़ा। पूर्व मुख्यमंत्री बंसीलाल की हरियाणा विकास पार्टी के निर्माण में उन्होंने केंद्रीय भूमिका निभाई और पार्टी के उपाध्यक्ष रहे। परंतु हमेशा अपनी बेबाक राय देने और राजनेताओं की जी-हुजूरी न करने के लिए प्रसिद्ध डीआर चौधरी की उनसे भी नहीं बनी। भूपेन्द्र हुड्डा के समय वे हरियाणा प्रशासनिक सुधार आयोग के सदस्य रहे, लेकिन राजनीतिक मतभेदों के चलते वहां से भी इस्तीफा देना पड़ा। सकारात्मक राजनीतिक बदलाव की उम्मीद में वे आम आदमी पार्टी से जुड़े, लेकिन केजरीवाल की कार्यप्रणाली उन्हें रास नहीं आई और जल्दी ही वे पार्टी से अलग हो गए। समाज में सक्रिय हिस्सेदारी निभाने के लिए डीआर साहब ने हरियाणा इंसाफ सोसाइटी बनाई। सामाजिक न्याय, नागरिक एवं लोकतांत्रिक अधिकारों की रक्षा में चलाए गए आंदोलनों में भी उन्होंने अग्रणीय भूमिका अदा की। डीआर चौधरी के रूप में हरियाणा ने निश्चित ही एक बेहतरीन इंसान और अनुकरणीय व्यक्तित्व को खो दिया है।
– अविनाश सैनी।