“शहीदों के रक्त से लथपथ हुई जलियांवाला बाग की जमीन को इंडियन नेशनल कांग्रेस द्वारा गठित समिति ने सर्वप्रथम 1923 में इसके 34 मालिकों से 5,65,000 रुपए में खरीदा था। इसके लिए गाँधी जी के नेतृत्व में 9 लाख से अधिक धनराशि एकत्र हुई थी। शेष लगभग चार लाख रुपए ब्याज पर बैंक में स्थायी रूप से फिक्स्ड डिपॉजिट करा दिए गए। गांधी जी देश के किसी भी महान कार्य के लिए धन एकत्र करने में निपुण थे। इस पुनीत कार्य के लिए तो गाँधी जी ने अपने साबरमती आश्रम को बेचने तक की घोषणा कर दी थी। इसका परिणाम यह निकला कि चंदा देने वालों की बाढ़ आ गई।”
20 फरवरी 1920 को अपने साप्ताहिक पत्र ‘यंग इंडिया’ में गांधीजी ने लिखा : “क्या मुसलमानों का खून, हिंदुओं के साथ और सिखों का खून सनातनियों के साथ एक ही स्थान पर नहीं बहा है? यह स्थान हमेशा हिन्दू-मुस्लिम एकता के सतत प्रयासों का राष्ट्रीय प्रतीक समझा जाएगा।”
(संदर्भ : ‘जलियांवाला बाग : कयामत तक दिलों में घाव बन कर रहने वाला हादसा’; लेखक : एम एम जुनेजा; प्रस्तुति : सुरेंदर पाल सिंह )