बेटी
जवान हो रही है
उसे सिखाओ-
चूल्हा-चौका
झाड़ू-पोछा
सीना-पिरोना
उसे सिखाओ –
उठने-बैठने
बोलने-चालने
सजने-संवरने
का सलीका।
बेटी
जवान हो रही है
आना चाहिए उसे
अपनी इच्छाओं का
गला दबाना
सपनों की
बलि चढ़ाना,
भावनाओं को मारने
जीत कर भी हारने
सब सहने
कुछ न कहने
जी-तोड़ कमाने
और
हक न जताने का हुनर।
बेटी
जवान हो रही है
उसे डालनी ही होगी
जल्दी उठने
देर से सोने
पिटने-रोने
और
परंपराओं को ढोने की
सहज आदत।
बेटी
जवान हो रही है
वर्जित है उसके लिए
अपने ख्वाबों को
पंख लगाना
उम्मीदों के
फूल खिलाना
खुद की सुनना
सच को चुनना
हंसना-गाना
जीवन के
उल्लास को पाना।
जवान हो रही
बेटी के लिए
ज़रूरी है जीना
ऐसा जीवन
ताकि
सदियों से चली आ रही
मर्दों की यह दुनिया
चलती रहे
बिना किसी खलल के
सदियों तक
यथावत।
– अविनाश सैनी